चिलाय माता (Chilay mata) – तंवर वंश कुलदेवी के रूप में चिलाय माता की पूजा आराधना करता है। इतिहास में तंवरों की कुलदेवी के अनेक नाम मिलते हैं जैसे चिलाय माता, जोग माया (योग माया), योगेश्वरी (जोगेश्वरी), सरूण्ड माता, मनसादेवी आदि।
दिल्ली के इतिहास में तंवरो की कुलदेवी का नाम योगमाया मिलता है। तंवरों के पुर्वज पांडवों ने भगवान कृष्ण की बहन को कुलदेवी मानकर इन्द्रप्रस्थ में कुलदेवी का मंदिर बनवाया और उसी स्थान पर दिल्ली के संस्थापक राजा अनंगपाल प्रथम ने पुनः योगमाया के मंदिर का निर्माण करवाया।
इसी मंदिर के कारण तंवरों की राजधानी को योगिनीपुर भी कहा गया, जो महरौली के पास स्थित है। यह इतिहास ग्रंथो व भारतीय पुरातत्व विभाग से पुष्ट है।
तोमरों की अन्य शाखा और ग्वालियर के इतिहास में तंवरो की कुलदेवी का नाम योगेश्वरी ओर जोगेश्वरी भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि योगमाया (जोग माया) को ही बाद में योगेश्वरी, जोगेश्वरी के नाम से पुकारा जाने लगा। राजस्थान में तोरावाटी (तंवरावाटी) के नाम से नव स्थापित तंवर राज्य के तंवर कुलदेवी के रूप में सरूण्ड माता को पुजते है।
मंदिर में माता को पांडवो द्वारा स्थापित करने के साक्ष्य रूप में छत्री स्थित हैं।
मंदिर में माता को पांडवो द्वारा स्थापित करने के साक्ष्य रूप में छत्री स्थित हैं। मंदिर की परिक्रमा में चामुंडा की मूर्ति है जो आज भी सुरापान करती है। मंदिर की छत्री, जो लाल पत्थर की है का वजन लगभग 5 टन का है। मंदिर पीली मिट्टी से बना हुआ है इसके बावजूद बारिश में इसमें कहीं भी पानी नहीं टपकता। मंदिर तक पहुँचने के लिए 282 सीढियाँ है।
जिसके कारण माँ जोगमाया को चिलाय माता कहा जाने लगा और कालांतर में जोगमाया माता को चिलाय माता पुकारा जाने लगा।
कुलदेवी का वाहन चिल पक्षी के होने कारण यह चिलाय माता कहलाई
इतिहासकारों के अनुसार कुलदेवी का वाहन चिल पक्षी के होने कारण यह चिलाय माता कहलाई। राजस्थान के तंवर चिलाय माता को ही कुलदेवी मानते हैं। लेकिन चिलाय माता के नाम से कोई भी पुराना मंदिर नहीं मिलता। जिससे जाहिर होता है कि जोगमाया का नाम चिलाय माता सिर्फ तंवरावाटी में ही प्रचलित हुआ।
चिलाय माता के दो मंदिरों का विवरण मिलता है। जाटू तंवर और पाटन के इतिहास के अनुसार 12 वीं शताब्दी में जाटू तंवरो ने खुडाना में चिलाय माता का मंदिर बनाया था और माता द्वारा मनसा (मनोकामना) पूर्ण करने के कारण उसे मनसादेवी के नाम से पुकारा जाने लगा।
एक और चिलाय माता मंदिर का विवरण मिलता है जो पाटन के राजाओं ने गुडगाँव में 14 वीं शताब्दी में बनवाया और ब्राह्मणों को माता की सेवा के लिए नियुक्त किया। लेकिन 17 वीं शताब्दी के बाद पाटन के राजा द्वारा माता के लिए सेवा जानी बन्द हो गयी थी।
आज स्थानीय लोग चिलाय माता को शीतला माता समझ कर शीतला माता के रूप में पुजते है।
विभिन्न स्त्रोतों और पांडवो या तंवरो द्वारा बनवाये गये मंदिर से यही प्रतीत होता है कि तोमर (तंवर) की कुलदेवी माँ योगमाया है, जो बाद में योगेश्वरी कहलाई और योगमाया को ही बाद में विभिन्न कारणों से स्थानीय रूप में योगेश्वरी, जोगमाया, चिलाय माता, सरुंड माता, मनसा माता, शीतला माता आदि के नाम से पुकारा जाने लगा और आराधना की जाने लगी।
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