चीन और भारत: हाथ मिलाएं, विश्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र बनाएं

5 Min Read

बीजिंग, 22 जून ()। 14वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन होने वाला है और जिसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग भी एक महत्वपूर्ण विषय बना है। विश्व की प्राचीन सभ्यताओं के रूप में, चीन और भारत ने इतिहास में मानव विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में उत्कृष्ट योगदान दिया था। गणित, खगोल विज्ञान, कैलेंडर, धातु कास्टिंग और नेविगेशन तकनीक में, हम एक बार दुनिया के शीर्ष पर रहते थे। किसी एक देश की अंतरराष्ट्रीय स्थिति काफी हद तक इस बात पर निर्भर है कि क्या वह प्रौद्योगिकी में नेतृत्व कर सकता है और दुनिया में अधिक योगदान दे सकता है। उधर पिछली शताब्दी में आर्थिक सुधार की शुरूआत के बाद से, चीन और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में भारी वृद्धि हुई है, वैज्ञानिक अनुसंधान के निवेश में काफी वृद्धि हुई है, और कुछ वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की गई हैं।

औद्योगिक क्रांति के बाद से पिछले 500 वर्षों में, इटली, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और जर्मनी सभी विश्व के विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र रहे थे। वर्तमान में विश्व का विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र संयुक्त राज्य अमेरिका है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास अक्सर अर्थव्यवस्था के विकास के अनुरूप होता है। चीन और भारत दोनों उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं हैं। क्रय शक्ति समानता की गणना के मुताबिक चीन और भारत का आर्थिक पैमाना दुनिया के अग्रिम पंक्ति पर पहुंच गया है। तो, क्या विश्व प्रौद्योगिकी केंद्र भी अमेरिका से एशिया में स्थानांतरित हो सकेगा? उत्तर सकारात्मक होगा। हालांकि, केवल जीडीपी से यह निर्धारित नहीं हो सकता है कि हम जल्दी से विश्व प्रौद्योगिकी केंद्र बनेंगे या नहीं। इसमें सही नीतियों का चुनाव करना अनिवार्य है।

ब्रिक्स तंत्र को चीन और भारत के लिए मतभेदों को त्यागने, सहयोग को मजबूत करने और संयुक्त रूप से एक विश्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र बनाने का एक अच्छा मंच माना जाता है। हालांकि ब्रिक्स देशों का समग्र तकनीकी स्तर पश्चिमी देशों से पीछे है, लेकिन विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में उनके अपने तकनीकी फायदे हैं। उदाहरण के लिए, चीन के हाई-स्पीड रेल में, तथा भारत के पास सॉफ्टवेयर विकास और बायोफार्मास्युटिकल्स में विश्व-अग्रणी प्रौद्योगिकियां प्राप्त हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन और भारत ने अर्थव्यवस्था और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मजबूत पूरकता दिखाई है। चीन और भारत दुनिया के दो सबसे बड़े विकासशील देश हैं। दोनों देश विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी के बजाय एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों देशों को ब्रिक्स विज्ञान और प्रौद्योगिकी नवाचार कार्य योजना (2021-2024) की भावना के मुताबिक,जल्दी से ब्रिक्स प्रौद्योगिकी हस्तांतरण केंद्र नेटवर्क स्थापित करना चाहिये। ताकि उभय-जीत सहयोग करने वाले प्रौद्योगिकी उद्यमों के लिए अनुकूल परिस्थितियां बना सकें।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी की उन्नति न केवल आर्थिक विकास के बारे में है, बल्कि हमारे गौरव के बारे में भी है। चीन और भारत दोनों ही एक अरब से अधिक आबादी वाले देश हैं, और दोनों की दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताएं हैं। चीन और भारत दोनों के लाखों प्रतिभाशाली युवा यूरोप और अमेरिका में पढ़ रहे हैं, और कई चीनी और भारतीय प्रतिभाएं पश्चिमी उच्च तकनीक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। चीन और भारत के युवाओं के लिए प्रतिभा की कमी नहीं है, उनके पास जो कमी है वह है अपनी क्षमताओं का इस्तेमाल करने का अवसर। हम अपनी प्रतिभाओं के लिए नवाचार का अनुकूल वातावरण बनाने में ब्रिक्स सहयोग मंच का उपयोग क्यों नहीं करते हैं?

विश्व के आर्थिक गुरुत्वाकर्षण के पूर्व की ओर शिफ्ट के साथ, एशियाई देशों, विशेष रूप से चीन और भारत में प्रौद्योगिकी और नवाचार कंपनियां फलफूल रही हैं। हमारे यहां कुछ महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन गई हैं, और आज हमें दुनिया का प्रौद्योगिकी केंद्र बनाने की शर्तें भी प्राप्त हैं। विश्व स्तरीय प्रतिभाओं को आकर्षित करने का अनुकूल वातावरण स्थापित करने के लिए चीन और भारत को ब्रिक्स तंत्र का उपयोग एक मंच के रूप में करना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन और भारत को मानव सभ्यता की प्रगति में अधिक योगदान देने के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी विकास के क्षेत्र में हाथ मिलाना चाहिए।

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

एएनएम

Share This Article
Sabal Singh Bhati is CEO and chief editor of Niharika Times
Exit mobile version