संघ की यात्रा के 100 वर्ष: नए संकल्पों की ओर

By Sabal SIngh Bhati - Editor

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने कहा है कि हिन्दूराष्ट्र का मतलब मानव कल्याण है। उन्होंने बताया कि भविष्य में आरएसएस पांच संकल्पों-कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण, सामाजिक समरसता, आत्मनिर्भरता और संविधान एवं कानून का पालन जैसे मूल्यों के साथ आगे बढ़ेगा। समाज जीवन में यह सभी मूल्य धरातल पर उतरें। ताकि भारत मजबूत बने और दुनिया में शांति और समृद्धि आए। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को तीन दिवसीय संवाद श्रृंखला 100 वर्ष की संघ यात्रा-नए क्षितिज के दूसरे दिन यहां कहा कि सम्पूर्ण समाज को संघमय बनाना है।

क्योंकि हिन्दुत्व भारत का मिशन है। भारत का आत्मनिर्भर होना जरूरी है। भागवत ने कहा कि भारत का आत्मनिर्भर होना जरुरी है। क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार स्वेच्छा से हो। किसी दबाव में नहीं। आरएसएस प्रमुख ने बताया कि आज अनुकूलता है। लेकिन सौ साल की यह यात्रा उपेक्षा, तिरस्कार, विरोध एवं संघर्ष से गुजरकर यहां तक पहुंची है। आज समाज भी संगठन की बात सुन रहा है। क्योंकि इसकी साख है। धर्मतत्व का विचार किए बिना उन्नति नहीं होगी। उन्होंने विविधता को भारत की परंपरा बताते हुए कहा कि इसमें विरोधाभास भी है। लेकिन हमें सबको साथ लेकर चलना होगा।

भागवत ने कहा कि आज जड़तावाद एवं उपभोगतावाद के कारण संघर्षों का आलम है। धर्मतत्व का विचार किए बिना उन्नति नहीं होगी। इसी कारण भारत की गति प्राकृतिक है। भारत को जितना दिखाया जाता है उससे 40 फीसदी ज्यादा अच्छा है। भागवत ने कहा कि भारत को मीडिया की नजर से परे जाकर देखना होगा। आज भी जितना खराब बताया जाता है, उससे 40 फीसदी ज्यादा अच्छा है। धर्म को जीने वाले लोग गांवों में हैं। उनके काम एवं व्यवहार को देखने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि भारत वहीं है। बस रेखाएं खींच दी गई हैं।

इसकी विरासत में मूल्य हैं। इसीलिए भले ही मत, पंथ एवं सम्प्रदाय अलग हों। लेकिन संस्कार एक ही हैं।

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