दो शिष्यों (अमर गिरि और पवन महाराज) ने दावा किया कि उन्होंने केवल उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के बाघंबरी आश्रम में नरेंद्र गिरि की मौत के बारे में पुलिस को सूचित किया था और किसी का नाम आरोपी के रूप में नहीं लिया था।
दोनों ने अपने आवेदन में कहा, न तो हमने आत्महत्या या हत्या की आशंका व्यक्त की। हमने आरोपी के रूप में आनंद गिरि या किसी अन्य व्यक्ति के नाम का भी उल्लेख नहीं किया था। हमारा इरादा कभी भी इस मामले में किसी को फंसाने का नहीं था।
इससे पहले हाईकोर्ट ने महंत के शिष्य आनंद गिरि की जमानत अर्जी पर सुनवाई 18 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी थी।
20 सितंबर, 2021 को प्रयागराज के जॉर्ज टाउन थाना क्षेत्र के पास श्री मठ बाघंबरी गद्दी में महंत गिरि अपने कमरे की छत से कथित तौर पर लटके पाए गए थे।
नरेंद्र गिरि भारत में संतों के सबसे बड़े संगठन एबीएपी के अध्यक्ष थे।
महंत ने अपने सुसाइड नोट में आनंद गिरि और दो अन्य पर कथित तौर पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया था।
तीनों आरोपियों के खिलाफ जॉर्ज टाउन पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
इसके बाद आनंद गिरि और दो अन्य को गिरफ्तार किया गया। उन्हें 22 सितंबर को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया गया और 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
बाद में उत्तर प्रदेश सरकार की सिफारिश पर जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी गई।
11 नवंबर को विशेष न्यायाधीश ने आनंद गिरि की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि केस डायरी के मुताबिक गवाहों ने कुल मिलाकर अभियोजन का समर्थन किया है।
हालांकि आनंद गिरि अभी भी जेल में हैं।
आईएएनएस
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