पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का सेकंड फेज सिर्फ वोटिंग डेट नहीं, बल्कि सत्ता की दिशा तय करने वाला निर्णायक रण है। 20 जिलों की 122 सीटों पर होने वाला ये मुकाबला न सिर्फ नीतीश कुमार की सियासी साख की परीक्षा है, बल्कि बिहार की जनता के मूड को भी साफ-साफ दिखाएगा कि राज्य पुराने अनुभव पर भरोसा रखेगा या नई उम्मीद के तौर पर उभर रहे तेजस्वी यादव को मौका देगा। ये चरण इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछली बार 2020 में इन्हीं 122 सीटों पर एनडीए ने 66 और महागठबंधन ने 49 सीटें जीती थीं।
दोनों गठबंधनों की पूरी रणनीति इन इलाकों पर केंद्रित है, क्योंकि ये दूसरा चरण चुनावी भविष्य की दिशा तय करने वाला माना जा रहा है। तीन दर्जन सीटों पर बेहद कम अंतर से हुई पिछली जीत-हार ने इस बार मुकाबले को और रोमांचक बना दिया है। सेकंड राउंड से तय होगा कुर्सी किसकी ? बिहार चुनाव का दूसरा चरण सत्ता का दरवाजा साबित हो सकता है। 2020 के चुनाव में एनडीए के प्रमुख घटक भाजपा ने 42 और जदयू ने 20 सीटें जीती थीं, जबकि महागठबंधन की ओर से राजद को 33 और कांग्रेस को 11 सीटों पर जीत मिली थी। इस बार, जिन सीटों पर जीत का फासला कम था, वे सबसे बड़ी चुनौती पेश कर रही हैं।
राजनीति के जानकारों के मुताबिक, इस चरण के परिणाम से ये लगभग तय हो जाएगा कि बिहार में सत्ता किसकी ओर झुकेगी। पहले चरण में मतदाताओं की बड़ी संख्या में भागीदारी ने मुकाबले को और भी रोमांचक बना दिया है। दूसरे चरण में आरजेडी के सबसे ज्यादा कैंडिडेट : इस चरण में महागठबंधन की सबसे बड़ी घटक पार्टी राजद ने सबसे ज्यादा 71 उम्मीदवार उतारे हैं। इसके बाद भाजपा के 53 और जदयू के 44 उम्मीदवार मैदान में हैं। सेकंड फेज की एक खास बात महिला प्रतिनिधित्व का मजबूत होना है। महागठबंधन की 15 महिला प्रत्याशी मैदान में हैं, जबकि एनडीए के 25 महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ रही हैं।
ये आंकड़ा बिहार चुनाव में महिला प्रतिनिधित्व का अब तक का सबसे मजबूत प्रदर्शन माना जा रहा है। अब की बार अनुभव बनाम युवा शक्ति : नीतीश कुमार के लिए ये चरण सत्ता में लौटने का एक तरह से परीक्षण है, जहां उन्हें अपने पिछले कार्यकाल के अनुभवों और विकास कार्यों के आधार पर जनता का भरोसा दोबारा जीतना होगा। दूसरी ओर, तेजस्वी यादव के लिए ये मौका है युवा नेतृत्व को स्थापित करने का। जनता के सामने ये स्पष्ट विकल्प है, पुराने और अनुभवी नेतृत्व पर कायम रहना या नई उम्मीद के तौर पर उभर रहे युवा नेता को मौका देना।
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