छठ पर्व की शुरुआत: नहाय-खाय से लेकर सूर्य को अर्घ्य तक

जयपुर। लोक आस्था का महापर्व डाला छठ शनिवार से प्रारंभ होगा। सूर्यदेव और छठी मैया की आराधना के लिए समर्पित इस पर्व को लेकर गुलाबी नगरी में पूर्वांचल और बिहार के निवासियों में भारी उत्साह है। जीवन में शुद्धता, आत्मसंयम और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता के प्रतीक छठ पूजा को डाला छठ या सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तिथि तक चलता है।

त्रेतायुग में माता सीता, द्वापर में द्रौपदी और कर्ण द्वारा भी छठ पूजा किए जाने का उल्लेख मिलता है, जो इस पर्व की प्राचीनता और सनातन परंपरा को दर्शाते हैं। छठ महापर्व न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह प्रकृति, अनुशासन और आत्मसंयम का प्रतीक भी माना जाता है। सूर्योपासना के माध्यम से यह पर्व जीवन में ऊर्जा, संतुलन और सकारात्मकता बनाए रखने की प्रेरणा देता है। व्रती महिलाएं परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की दीर्घायु के लिए 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। किस दिन क्या होगा?

पहले दिन 25 अक्टूबर को नहाय-खाय, दूसरे दिन 26 अक्टूबर को खरना होगा। तीसरे दिन 27 अक्टूबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया जाएगा। चौथे और अंतिम दिन 28 अक्टूबर को कमर तक पानी में खड़े होकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पर्व का समापन होगा। बिहार समाज संगठन के सुरेश पंडित ने बताया कि पहले दिन व्रती महिलाएं स्नान कर लौकी-भात का शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। इसी दिन व्रत की पवित्र शुरुआत होती है। दूसरे दिन खरना के साथ 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत होगी।

खरना के दिन व्रती महिलाएं पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं। शाम को गुड़ की खीर और घी से बनी रोटी बनाकर सूर्यदेव की पूजा करती हैं। पूजा के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ होता है। तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाएगा।

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