भारतीय संस्कृति में कलावा (Kalawa), जिसे मौली, रक्षा सूत्र या राखी भी कहा जाता है, केवल एक धागा नहीं है, बल्कि यह विश्वास, परंपरा और सुरक्षा का प्रतीक है। पूजा, व्रत, हवन या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के बाद इसे बांधते समय लोग मानते हैं कि यह धागा उन्हें नकारात्मक शक्तियों से बचाएगा और सौभाग्य लाएगा। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस पवित्र धागे से जुड़ी कुछ विशेष मान्यताएँ हैं, जिनका पालन न करने पर इसका प्रभाव उल्टा हो सकता है।
कई लोग अनजाने में कलावा को महीनों तक हाथ में बांधे रखते हैं, जबकि शास्त्र इसके विरुद्ध चेतावनी देते हैं। कलावा व्यक्ति के आसपास की ऊर्जा को भी प्रभावित करता है। यह सकारात्मक तरंगों को समाहित करता है, लेकिन समय के साथ इसकी शक्ति कम होने लगती है, जिससे इसके अशुभ प्रभाव की संभावना बढ़ जाती है। कई पंडित समय-समय पर यह समझाते हैं कि कलावा न केवल श्रद्धा का धागा है, बल्कि इसे सही समय पर उतारना भी आवश्यक है। कलावा बांधने के दौरान की जाने वाली गलतियाँ किस तरह बिगाड़ सकती हैं, यह जानना जरूरी है।
हिंदू परंपरा में हर अनुष्ठान का एक विशेष शास्त्रीय नियम होता है, और कलावा बांधना भी इसी सिद्धांत के अंतर्गत आता है। कई लोग जल्दबाजी में या अज्ञानता के कारण कुछ गलतियाँ कर बैठते हैं, जो कलावा की ऊर्जा को कमज़ोर कर देती हैं। यह धागा तभी प्रभावी होता है जब इसे योग्य विधि से मंत्रोच्चारण के साथ बांधा जाए। पहली गलती अक्सर यह होती है कि लोग कलावा बांधते समय सिर को ढकना भूल जाते हैं। वैदिक परंपरा के अनुसार सिर ढककर ही पवित्र मंत्रों का प्रभाव सर्वोत्तम रूप से ग्रहण किया जा सकता है।
दूसरी गलती मुट्ठी खोलकर हाथ आगे बढ़ाने की है। मुट्ठी बंद रखने का अर्थ होता है कि आप नकारात्मक ऊर्जा को पीछे छोड़कर सकारात्मक शक्ति को ग्रहण कर रहे हैं। तीसरी सामान्य गलती यह है कि लोग कलावा को बिना किसी नियम के बांध देते हैं, जबकि शास्त्रों में इसे तीन बार लपेटने का विधान बताया गया है। तीन लपेटे त्रिदेव, त्रिगुण और तीन लोकों की ऊर्जा का प्रतीक माने गए हैं। अगर इन नियमों का पालन न किया जाए, तो कलावा अपने वास्तविक प्रभाव तक नहीं पहुंच पाता।
अधिकतर लोग मान लेते हैं कि कलावा एक बार बांध दिया जाए तो उसे महीनों या सालों तक हाथ में रहने देना चाहिए। लेकिन वैदिक मान्यताओं के अनुसार यह गलत है। शास्त्रों में कहा गया है कि कलावा को अधिकतम 21 दिनों तक हाथ में रखना शुभ माना गया है। इस अवधि में धागा वातावरण, शरीर और ऊर्जा के संपर्क में आकर अपनी शक्ति का अधिकतर हिस्सा खो देता है। अगर कलावा फीका पड़ने लगे, धागा घिसने लगे या गंदा हो जाए, तो यह संकेत होता है कि उसने अपनी ऊर्जा को पूरा खर्च कर दिया है।
ऐसे में इसे हाथ पर रखना अशुभ प्रभाव दे सकता है। कई लोगों की किस्मत इसलिए भी अटक जाती है क्योंकि वे इस धागे को महीनों तक हाथ में बांधे रखते हैं। कलावा उतारने का सही तरीका और उसके पीछे की आध्यात्मिक भावना भी महत्वपूर्ण है। कई बार लोग कलावा उतारते समय इसे कहीं भी फेंक देते हैं, जबकि यह एक बड़ी भूल है। कलावा उतारते समय सबसे पहले उसे प्रणाम करना चाहिए। इसे बहते हुए जल में प्रवाहित करना या किसी पवित्र वृक्ष की जड़ में सम्मानपूर्वक रखना चाहिए।
ध्यान रहे कि कलावा को कभी भी जूते-चप्पल के पास, कूड़े में या घर के किसी कोने में फेंकना नहीं चाहिए। आधुनिक समय में कलावा की परंपरा को आज की पीढ़ी अक्सर केवल धार्मिक रीति का हिस्सा मान लेती है, लेकिन इसका महत्व इससे कहीं गहरा है। आधुनिक ऊर्जा विज्ञान भी मानता है कि लाल धागा शरीर की ऊर्जा को स्थिर करने में सक्षम होता है। यह अंगुलियों के नज़दीक की नसों और तंत्रिकाओं को हल्का दबाव देकर मन को शांत करता है।
यही कारण है कि कलावा पहनने पर कई लोगों को मानसिक स्थिरता, आत्मविश्वास और सकारात्मकता का अनुभव होता है। लेकिन यह प्रभाव तभी टिकता है जब धागे को समय पर बदला जाए और उसकी शुद्धि बनी रहे।

