अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में पर्यटकों की घटती संख्या और राजस्व में कमी

कोटा। देश-विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क अपनी चमक खोता जा रहा है। पर्यटकों से गुलजार रहने वाला राजस्थान का सबसे बड़ा पार्क अब वीरान सा नजर आने लगा है। जहां कद्रदानों की महफिलें सजती थीं, वहां आज पर्यटकों की बेरुखी देखने को मिल रही है। इसका असर राजस्व में भारी गिरावट के रूप में देखने को मिला है। गत वर्ष की तुलना में इस वर्ष 31 अक्टूबर तक करीब तीन हजार से ज्यादा पर्यटकों की संख्या घटी है। वहीं, एक लाख रुपए राजस्व का घाटा हुआ है।

यह खुलासा वर्ष 2024 व 2025 के 10 माह के आंकड़ों से हुआ है। 3 हजार पर्यटक और 1 लाख से ज्यादा राजस्व घटने के आंकड़े वर्ष 2024 व 2025 के जनवरी से अक्टूबर तक के तुलनात्मक आंकड़ों के विश्लेषण में सामने आए हैं। वन्यजीव विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, गत वर्ष जनवरी से अक्टूबर तक करीब 66 हजार 886 पर्यटक बायोलॉजिकल पार्क में वन्यजीवों के दीदार को पहुंचे थे। जबकि, वर्ष 2025 में 31 अक्टूबर तक यह संख्या घटकर 63 हजार 225 ही रह गई।

वहीं, पर्यटकों से होने वाली आय की बात करें तो गत वर्ष अक्टूबर तक करीब 25 लाख 33 हजार से ज्यादा का राजस्व प्राप्त हुआ था। वहीं, अक्टूबर 2025 तक 24 लाख 28 हजार 220 ही हुआ है। जनवरी के बाद अर्श से फर्श पर पहुंची कमाई अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क के लिए जनवरी माह ही कमाई का होता है। पूरे साल में इसी माह में सबसे ज्यादा पर्यटक घूमने आते हैं। वर्ष 2024 की जनवरी में 13 हजार 356 पर्यटक वन्यजीवों की दुनिया निहारने पहुंचे थे। उनसे पार्क को 4 लाख 96 हजार 740 रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ था।

वहीं, वर्ष 2025 में पर्यटकों में 2764 की बढ़ोतरी हुई। साथ ही 1 लाख 7 हजार 730 रुपए का राजस्व ज्यादा प्राप्त हुआ। इस तरह इस वर्ष की जनवरी में कुल 6,04470 रुपए की आय हुई। लेकिन इसके बाद के महीनों में पर्यटकों व राजस्व के आंकड़े अर्श से फर्श पर पहुंच गए। अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क से मिली जानकारी के अनुसार, गत वर्ष 2024 में मार्च में कुल 7,796 पर्यटक पार्क की सैर पर आए थे। जबकि, वर्ष 2025 के मार्च में घटकर पर्यटकों की संख्या मात्र 4,628 ही रह गई।

यानी गत वर्ष के मुकाबले इस वर्ष 3,168 पर्यटक घट गए। वनकर्मियों का कहना है कि गर्मी के कारण पर्यटक दिन में नहीं आते। लेकिन, शाम को आते हैं। वर्ष 2024 के मार्च माह में पर्यटकों से बायोलॉजिकल पार्क को 2 लाख 67 हजार 580 रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ था, जिसके मुकाबले इस वर्ष के मार्च में 1 लाख 62 हजार 770 रुपए ही राजस्व एकत्रित हुआ। यानी, गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष के मार्च में 1 लाख 4 हजार 810 रुपए राजस्व का नुकसान हुआ है।

जानकारों का मानना है कि पर्यटक व राजस्व में गिरावट का कारण गर्मी से ज्यादा बड़े एनिमल की कमी है। यहां टाइगर-लॉयन, मगरमच्छ, घड़ियाल जैसे बड़े एनिमल की कमी है। जिसकी वजह से पर्यटकों का रुझान घटा है। अप्रैल: 1540 पर्यटक घटे व 65 हजार का नुकसान। बायोलॉजिकल पार्क में वर्ष 2024 के अप्रैल माह में भीषण गर्मी के बावजूद 3 हजार 484 पर्यटक घूमने आए थे। जबकि, इस वर्ष के अप्रैल में पर्यटकों की संख्या तेजी से घटती हुई 1944 ही रह गई। जबकि, अभी पिछले साल के मुकाबले गर्मी का पारा भी कम रहा।

गत वर्ष अप्रैल माह के मुकाबले इस वर्ष 1944 पर्यटकों की संख्या दर्ज की गई। वहीं, राजस्व की बात करें तो 80240 रुपए की आय हुई। यानी, गत वर्ष के मुकाबले इस वर्ष 64370 राजस्व का नुकसान हुआ। पर्यटकों को अखर रहा टिकट का पैसा। बायोलॉजिकल पार्क में शाकाहारी व मांसाहारी मिलाकर कुल 70 से ज्यादा वन्यजीव हैं। यहां आने वाले पर्यटक 55 रुपए खर्च करने के बावजूद बब्बर शेर, टाइगर, मगरमच्छ, घड़ियाल, अजगर सहित अन्य बड़े वन्यजीवों का दीदार नहीं कर पाने से निराश होकर लौट रहे हैं।

हालांकि, यहां उम्र दराज बाघिन महक व लॉयनेस सुहासिनी ही दिखाई देती है। लेकिन, भेड़िए, पैंथर, जरख एनक्लोजर में उगी झाड़ियों में छिपे रहने से दिखाई नहीं देते। वहीं, कैफेटेरिया नहीं होने से लोगों को चाय-नाश्ते के लिए परेशान होना पड़ता है। इसके अलावा पर्यटकों के बैठने के लिए छायादार शेड व वाटरकूलर भी पर्याप्त नहीं है। पानी के लिए भी भटकना पड़ता है। गर्मी से ज्यादा बड़े एनिमल की कमी बड़ा कारण। वन्यजीव प्रेमियों का कहना है कि कोटा अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क क्षेत्रफल की दृष्टि से प्रदेश का सबसे बड़ा पार्क है।

इसके बावजूद यह सुविधाओं व बजट की कमी से जूझ रहा है। यहां पर्यटकों व राजस्व में गिरावट का मुख्य कारण गर्मी से ज्यादा बड़े एनिमल की कमी है। बजट नहीं होने के कारण बायोलॉजिकल पार्क में पिंजरे यानी एनक्लोजर नहीं बन पा रहे। वहीं, टाइगर-लॉयन जैसे बड़े एनिमल्स की कमी है। जबकि, चिड़ियाघर में मगरमच्छ, घड़ियाल, अजगर सहित दो दर्जन से अधिक पक्षी हैं। यदि, एनक्लोजर बने तो इनकी शिफ्टिंग से पर्यटकों का रुझान बढ़ेगा। जिसका असर राजस्व की बढ़ोतरी के रूप में नजर आएगा। चिड़ियाघर से वन्यजीवों की नहीं हो पा रही शिफ्टिंग।

बायोलॉजिकल पार्क के निर्माण के दौरान 44 एनक्लोजर बनने थे लेकिन प्रथम चरण में मात्र 13 ही बन पाए। जबकि, 31 एनक्लोजर अभी बनने बाकी हैं। जब तक यह एनक्लोजर नहीं बनेंगे तब तक पुराने चिड़ियाघर में मौजूद अजगर, घड़ियाल, मगरमच्छ, बंदर व कछुए सहित एक दर्जन से अधिक वन्यजीव बायोलॉजिकल पार्क में शिफ्ट नहीं हो पाएंगे।

द्वितीय चरण में यह होने हैं कार्य पार्क में द्वितीय चरण के तहत 25 करोड़ की लागत से करीब 17 एनक्लोजर, स्टाफ क्वार्टर, कैफेटेरिया, वेटनरी हॉस्पिटल, इंटरपिटेक्शन सेंटर, पर्यटकों के लिए ऑडिटोरियम हॉल, छांव के लिए शेड, कुछ जगहों पर पथ-वे सहित अन्य कार्य शामिल हैं। पर्यटक बोले-न कैफेटेरिया न लॉयन टाइगर, क्या देंखे। परिवार के साथ पार्क घूमने आए बोरखेड़ा निवासी अजय कुश्वाह, राहुल प्रजापति व उस्मान अली ने बताया कि यहां बड़े एनिमल नहीं हैं, जो हैं वो भी झाड़ियों में छिपे रहते हैं। साइटिंग नहीं होने से बच्चे भी मायूस हो जाते हैं।

टिकट का पैसा अखर रहा है। झूले टूटे, बच्चे होते मायूस। बजरंग नगर निवासी अखिलेश शर्मा व खेड़ली फाटक के सूर्य प्रकाश मेहरा का कहना था कि यहां कुछ झूले लगे हुए हैं, जो भी टूट चुके हैं। कुछ तो टेड़े हो गए। जिनमें बच्चों के गिरने का खतरा रहता है। वहीं, वाटरकूलर भी कम ही जगहों पर लगे हैं। शाकाहारी जानवरों के पिंजरों की तरफ कम है। पानी के लिए परेशान होना पड़ता है। टाइगर-लॉयन लाने के प्रयास लगातार जारी हैं। हमने यहां प्राकृतिक जंगल, जैव विविधता विकसित की है।

पर्यटकों के लिए सुविधाएं विकसित करने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। – अनुराग भटनागर, डीएफओ वन्यजीव विभाग

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