मारवाड़ (जोधपुर) में राठौड़ों से पूर्व के राजवंश

Sabal Singh Bhati
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प्रागैतिहासिक काल में मारवाड़ की लूनी नदी के किनारे आदि मानव की बस्तियां थीं।’ ऐतिहासिक काल में यहाँ आभीर आदि जातियों के बसे होने का पता चलता है। संवत् 918 के कक्कुक के घटियाला अभिलेख में आभीरों का उल्लेख मिलता है।

ऐसा विश्वास किया जाता है कि ई. पूर्व की चौथी शताब्दी में मारवाड़ चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य का भाग था। बाद में यह शुंगों व कण्व वंशों के अधिकार में रहा। दूसरी शताब्दी में जब कुषाण कनिष्क ने उत्तर भारत में अपनी प्रभुसत्ता स्थापित की तब मारवाड़ भी उसके साम्राज्य का अंग बन गया।

जब क्षत्रप नहपान का राज्य पश्चिमी भारत में स्थापित हुआ तब मारवाड़ का दक्षिणी भाग भी उसके राज्य में सम्मिलित हो गया। शकों के जूनागढ़ अभिलेख (ई. सन् 150) के अनुसार उज्जैन के महाक्षत्रप रुद्रदामन प्रथम ने मरु, कच्छ, सिन्ध आदि पर अधिकार कर लिया था।

बाद के वर्षों में नाग वंश ने मारवाड़ के उत्तरी भाग पर अधिकार कर लिया और अहिच्छत्र (वर्तमान नागौर) को अपनी राजधानी बनाया। जोधपुर के आसपास की पर्वत शृंखला इसी कारण भौगीशैल (नाग पर्वत) कहलाती है। नागों की शक्ति को गुप्त सम्राटों ने चौथी शताब्दी में नष्ट किया।

मंडोर के दुर्ग के खण्डहरों में मिले तोरणद्वार पर अंकित गुप्त लिपि का लेख इसका प्रमाण है।’ गुप्तकालीन मुद्राएं मारवाड़ में प्राप्त हुई हैं। गुप्त काल का 289 (ई. सन् 608) का अभिलेख नागौर जिले के गोठ-मांगलोद के दधिमती माता के मन्दिर से मिला है।

छठी शताब्दी के अन्तिम वर्षों में यहाँ हूणों का प्रभाव बढ़ गया। तब मारवाड़ हूण तोरमाण, मिहिरकुल के द्वारा रौंदा गया, लेकिन उनका प्रभाव नाम मात्र का रहा। शीघ्र ही मालवा के यशोधर्मन ने मिहिरकुल को भगा दिया। तब हूणों का मारवाड़ पर नाम मात्र का प्रभाव रहा। यशोवर्धन के स्तम्भ लेख में उसके राज्य में धन्व रेगिस्तानी क्षेत्र का उल्लेख मिलता है।

नवीं शताब्दी में यहाँ गुर्जर वंश का अधिकार हो गया। गुर्जरों की राजधानी भीनमाल थी। इनका अधिकार डीडवाना (नागौर जिला) तक था। गुर्जरों के पूर्व सातवीं शताब्दी में दक्षिणी मारवाड़ में चावड़ों को कन्नौज के सम्राट हर्षवर्धन ने अपने अधीन किया लेकिन शीघ्र ही प्रतिहारों ने यहाँ अपना आधिपत्य जमा लिया।

हर्षवर्धन के पश्चात् कन्नौज शासक चक्रायुध को भीनमाल के रघुवंशी प्रतिहार नरेश नागभट्ट ने हराकर उसके विशाल राज्य पर अधिकार कर लिया। उसका एक शिलालेख (वि.सं. 872) बुचकला (बिलाड़ा तहसील) से मिला है। उसके पौत्र भोजदेव का वि.सं. 900 का दानपत्र सिवा (डीडवाना तहसील) से मिला है। उसी समय प्रतिहारों की एक शाखा का मंडोर में उत्कर्ष हुआ।

यहाँ के प्रतिहार शासक कक्कुक का अभिलेख (वि.सं. 918) घटियाला (प्राचीन रोहित्स कूप) से मिला है।’ उसी के भाई बाउक का वि.सं. 894 का अभिलेख भी मिला है। इन अभिलेखों में हरिश्चन्द्र से कक्कुक तक की वंशावली मिलती है। हरिश्चन्द्र के पुत्र ही बाउक तथा कक्कुक थे। प्रतिहारों की यह शाखा मण्डोर के प्रतिहार नाम से प्रसिद्ध है। इनका यहाँ राज्य दशवीं शताब्दी तक रहा।

अहिच्छत्रपुर (नागौर) में चौहानों ने अपना राज्य स्थापित किया। सम्पूर्ण नागौर जिला उनके अधिकार में था। वासुदेव चाहमान शाकम्भरी (वर्तमान सांभर) को अपनी राजधानी बनाया। इसी कारण चाहमान शाकंभरीश्वर कहलाए। शाकम्भरी के राजा वाक्पतिराज के पुत्र लक्ष्मण ने मारवाड़ के दक्षिण में नाडौल में अपना राज्य स्थापित किया।

नाडौल के एक अभिलेख के अनुसार लक्ष्मण ने वि.सं. 1024 के लगभग अपना राज्य स्थापित किया। इसी के एक वंशज कीर्तिपाल ने जालौर के परमारों को पराजित कर जालौर के दुर्ग पर अधिकार किया। जालौर का दुर्ग स्वर्ण गिरि पर्वत पर था अतः यहाँ के चौहान आगे चलकर सोनगरा चौहान कहलाए।

इन्होंने जालोर के अलावा बाड़मेर, सत्यपुर (सांचौर), मंडोर पर भी आधिपत्य स्थापित कर लिया। वि.सं. 1218 के पश्चात् परमारों से किराडू (बाड़मेर जिला) भी जीत लिया। जालौर के चौहान राज्य को सन् 1311 में अलाउद्दीन खिलजी ने समाप्त किया।

किराडू (किरातकूप) के परमारों का मारवाड़ के पश्चिमी तथा दक्षिण पश्चिमी प्रदेश पर अधिकार था। वि.सं. 959 के लगभग यहाँ सिन्धुराज परमार का राज्य था। उसके चतुर्थ वंशज धरणीवराह के अधीन मारवाड़ के अलावा गुजरात व सिन्ध का काफी भाग था। कहा जाता है कि वह नौ दुर्गों का स्वामी था, लेकिन यह पूर्णतया विश्वसनीय नहीं है।

परमारों की शक्ति का नाश चौहानों ने किया। मारवाड़ के कुछ भागों पर मेवाड़ के गुहिलों का भी अधिकार था। खेड (बाड़मेर जिला) व पीपाड़ (जोधपुर जिला) पर गुहिलों का शासन रहा। परबतसर तहसील (नागौर जिला) के किणसरिया व मंगलाना क्षेत्र में दहियों का शासन ग्यारहवीं से तेरहवीं शताब्दी में रहा लेकिन ये चौहानों के सामंत ही रहे।

ग्यारहवीं शताब्दी में आबू, सत्यपुर, जालौर आदि के कुछ भागों पर गुजरात चालुक्य नरेशों का भी राज्य रहा।” बारहवीं व तेरहवीं शताब्दी में मारवाड़ के नागौर, मंडोर, जालोर क्षेत्र पर मुसलमानों ने कुछ समय के लिए शासन किया लेकिन उनका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा।

इस प्रकार तेरहवीं शताब्दी तक मारवाड़ पर विभिन्न राजवंशों का राज्य विभिन्न भागों में रहा और उनका सांस्कृतिक प्रभाव भी इस क्षेत्र पर छाया रहा। बाद में स्थाई रूप से राज्य स्थापित करने वाले राठौड़ राजवंश पर भी इनका प्रभाव पड़ा।

यह लेख आगे भी चालू है —– अगला भाग पढे (मारवाड़ में राठौड़ राजवंश की स्थापना)

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