मारवाड़ में राठौड़ राजवंश की स्थापना

Kheem Singh Bhati
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उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि विभिन्न राजवंशों का मारवाड़ के विभिन्न क्षेत्रों पर राज्य रहा लेकिन वे यहाँ स्थाई रूप से शासन नहीं कर सके। राठौड़ों का मूल स्थान कहाँ था तथा वे राठौड़ थे या गहड़वार, इसके लिए विभिन्न मत हैं लेकिन अब तक की खोज से यह सिद्ध हो गया है कि राठौड़ पूर्व में गहड़वार कहलाते थे लेकिन वास्तव में राठौड़ ही हैं और कन्नौज से ही मारवाड़ में आये।

इस लेख का पिछला हिस्सा पढे —– मारवाड़ (जोधपुर) में राठौड़ों से पूर्व के राजवंश

बीकानेर नरेश रायसिंह के वि.सं. 1606 के अभिलेख में सीहा को कन्नौज के जयचन्द्र का वंशज बतलाया गया है। जैन ग्रंथ पुरातन प्रबंध एवं कल्पसूत्र में जयचन्द्र को राष्ट्रकूट ही बतलाया गया है।
तेरहवीं शताब्दी के आरम्भ में सन् 1243 में मारवाड़ के पाली क्षेत्र में कन्नौज का सीहा द्वारिका यात्रा पर जाते समय रुका और वहाँ के महाजनों की रक्षा की।

पाली के महाजनों ने सीहा को वहीं रहने की याचना की और वह मान गया। पाली में रहते समय ही वि.सं. 1330 में बीटू में शत्रुओं से लड़ते उसकी मृत्यु हो गई। सीहा सेतराम का पुत्र तथा वरदायीसेन का पौत्र था। यह भी कहा जाता है कि सीहा सेतराम का छोटा पुत्र था। सीहा के पुत्र आस्थान ने खेड़ पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।

मारवाड़ में राठौड़ राजवंश की स्थापना

तब से ही उसके उत्तराधिकारी ‘खेड़ेचा’ कहलाते हैं।’ राव आस्थान ने ईडर के सामलिया सोढा को हराकर वह क्षेत्र अपने छोटे भाई सोनग को दे दिया। सोनग के वंशज इसी कारण ईडरिया राठौड़ कहलाते हैं।’ आस्थान के तीसरे भाई अज ने द्वारिका के निकट औखामण्डल के शासक चावड़ा भोजराज का सिर काट दिया और उस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।

मारवाड़ में राठौड़ राजवंश की स्थापना

उसके वंशज वाढेला कहलाते हैं। आस्थान सन् 1292 में फिरोजशाह द्वितीय की सेना से लड़ता हुआ पाली में मारा गया। आस्थान के पुत्र धूहड़ ने अपने राज्य का काफी विस्तार किया। उसने अपने आसपास के 140 गाँवों को जीता। प्रतिहारों से मंडोर जीता लेकिन शीघ्र ही उन्हें लौटाना भी पड़ा। प्रतिहारों से लड़ता हुआ 1309 में थोब व तिरसिंगरी के बीच वह मारा गया।

आस्थान ने नागणेचियां (चक्रेश्वरी) देवी का मन्दिर नागाणा ( पचपदरा तहसील) में बनवाया था। उसके पुत्र रायपाल ने मंडोर के प्रतिहारों को हराकर मंडोर पर कब्जा कर लिया लेकिन शीघ्र ही उसे मंडोर छोड़ना पड़ा। उसने परमारों को हराकर महेवा पर कब्जा किया। यह क्षेत्र अब मालानी (बाड़मेर जिला) कहलाता है।

उसने अपने चचेरे भाई पाबू (जो अब लोक देवता के रूप में प्रसिद्ध है) के हत्यारे फरड़ा भाटी को मारा और उसके 84 गाँवों को अपने अधीन कर दिया। उसके समय में एक बार घोर अकाल पड़ा तब उसने अपने धान के भण्डार अकालग्रस्तों के लिए निःशुल्क खोल दिये। इसी कारण वह इन्द्र का अवतार ‘महीरेलण’ कहलाने लगा।


रायपाल के उत्तराधिकारी पुत्र कान्हपाल के समय में उसके युवराज भीम ने जैसलमेर के भाटियों को हराकर अपने राज्य महेवा की सीमा काक नदी तक कर ली। प्रसिद्ध है –

आधी धरती भीम, आधी लौद्रवा धणी ।
काक नदी छै सीम, राठौड़ां नै भाटियां ।।

बाद में भाटियों के एक आक्रमण में भीम मारा गया। कनपाल ने भाटियों से बदला लिया और उनका काफी दमन किया। तंग आकर भाटियों ने मुल्तान के मुसलमानों से सहायता लेकर कनपाल को एक युद्ध में मार डाला।”

कनपाल का उत्तराधिकारी जालणसी ने उमरकोट के सोढा राजपूतों को हराया। बाद में मुल्तान के सूबेदार को, जिसकी सहायता से जैसलमेर के भाटियों ने कनपाल को मारा था, को सबक सीखाने मुल्तान पर धावा कर बदला लिया। उसने भीनमाल के सोलंकियों को भी हराया। सन् 1328 में जब भाटियों व मुसलामनों की संयुक्त सेना ने उस पर आक्रमण किया तब वह युद्ध में मारा गया।’

जालणसी के ज्येष्ठ पुत्र एवं उत्तराधिकारी छाडा ने उमरकोट के सोढों व जैसलमेर के भाटियों को हराया। उसने जालोर, भीनमाल व सोजत को लूटा । सन् 1344 में वह जालोर के पास रामा गाँव में सोनगरों व देवड़ों की संयुक्त सेना से लड़ता हुआ धोखे से मारा गया।

उसके पुत्र टीडा ने भीनमाल के सोनगरों से अपने पिता की मृत्यु का बदला लेते हुए भीनमाल को विजय किया तथा देवड़ों को भी दण्डित किया । लोद्रवा के भाटियों, बालेचों व सोलंकियों का भी दमन किया। सन् 1357 में जब मुसलमानों ने सिवाणा पर हमला किया तब वह उनसे लड़ता हुआ मारा गया ।

टीडा के ज्येष्ठ पुत्र कान्हड़देव को मुसलमानों ने शांति से राज्य करने नहीं दिया। उन्होंने उसके महोबा राज्य पर कब्जा कर लिया। शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गई। उसके छोटे भाई सैलखा ने महेवा के कुछ भाग पर कब्जा कर लिया और भीरड़कोट (नगर) में रहने लगा। उसने भीनमाल को लूटा था। लगभग 1374 में वह मुसलमानों के अचानक आक्रमण कर देने पर लड़ता हुआ मारा गया।

सलखा के चार पुत्र थे-मल्लीनाथ, जेतमाल, वीरम और शोभित। मल्लीनाथ अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने काका राव कान्हड़देव के पास जाकर रहा। बाद में उसने मुसलमानों की सहायता से खेड़ पर कब्जा कर लिया। वह एक वीर योद्धा था तथा उसने अपने राज्य का काफी विस्तार किया। एक बार उसने मुसलमानों की एक विशाल सेना को अपनी सेना की कम संख्या होने पर भी, हराया था।

इस कारण प्रसिद्ध है-‘तेरह तुंगा मारिया माले सलखाणी।’ मल्लीनाथ एक सिद्ध पुरुष था। लूणी नदी के किनारे गाँव तिलवाड़ा में इनके नाम का मन्दिर है, जहाँ प्रति वर्ष चैत्र मास में विशाल मेला भरता है। इनके अधीन किया हुआ क्षेत्र मालानी कहलाता है। इनकी रानी का नाम रूपादे था। उसकी मृत्यु सन् 1399 में हुई और उसका उत्तराधिकारी जगमाल हुआ।’

जेतमालजी सिवाणा के किले के गढ़पति रहे, जहाँ उनके वंशजों का नौ पीढ़ी तक शासन रहा तथा उन्हें ‘दसवें सालगराम’ की उपाधि प्राप्त थी। जेतमाल इतिहास में एक सन्त, दूरदृष्टा, स्वाभिमानी वीर के रूप में जाने जाते हैं।

जगमाल से अपनी हत्या का बदला न लेने की कसम उन्होंने अपने पुत्रों को दिलाई, जो उनके चरित्र को उच्च स्थान दिलाता है, नहीं तो मालानी का इतिहास शायद कुछ और ही होता। जेतमाल के वंशज जेतमालोत प्रसिद्ध हुए।

इनके वंशज मेवाड़ में केलवा, आगरिया, धाबड़धूबा के जागीरदार रहे। मालानी में राड़धरा परगने के ठिकाना नगर और गुढ़ा के जागीरदार रहे। इनसे जुजानिया, जेतमालोत, सोभावत और धवेचा शाखाएं चली। पादरू, नगर, मोरसीम, सीणेर, गुड़ा नाल इत्यादि अन्य जेतमालोतों के ठिकाने हैं।

खींवकरण ने नगर की जागीर अड़तालीस गाँवों की सोढ़ा अखा- नन्दा को पराजित करके ली थी । ‘रावत’ पदवी भी धारण की थी। कल्याणसिंहजी ने गुड़ा बसाया। गुड़ा ठिकाना को राणा पदवी सुराचन्द को परास्त करने पर प्राप्त हुई थी ।

सलखा के पुत्र वीरम को खेड़ (भिरड़कोट) की जागीर मिली। उसकी अपने ज्येष्ठ भाई मल्लीनाथ से बराबर अनबन रही। अतः वह विवश होकर जोहियावाटी चला गया जहाँ वह 1383 में मारा गया।
वीरम का पुत्र चूण्डा अपने पिता की मृत्यु के समय केवल 6 वर्ष का था।

मल्लीनाथ ने चूण्डा की योग्यता भांपकर सालोड़ी की जागीर दे दी। उस समय मण्डोर पर प्रतिहारों की ईंदा शाखा का अधिकार था । वे लोग नागौर के मुस्लिम आक्रमणकारियों से दुःखी थे। चूण्डा जैसे होनहार युवक को देखकर उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह उससे कर मंडोर दहेज में दे दिया। इस आशय का यह सोरठा मारवाड़ में अब तक प्रसिद्ध है –

ईंदां रौ उपकार, कमधज मत भूलौ कदे ।
चूंडो चंवरी चाढ, दियो मंडोवर दायजै ।।

चूण्डा के मंडोर का शासक बन जाने के पश्चात् राठौड़ों की दो शाखाएं हो गई। मल्लिनाथ व जेतमाल के वंशज मालानी के उजाड़ क्षेत्र के शासक रहे और वीरम के वंशज मंडोर जैसे गढ़ के अधिपति बन गये। एक कहावत प्रसिद्ध है-‘माला रा मढै वीरम रा गढै ।”

यह लेख आगे भी चालू है —– अगला भाग पढे (मारवाड़ के राजाओं का परिचय)

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