जयपुर। दिल के वॉल्व की बीमारी हर मरीज में तुरंत खतरा नहीं बनाती, लेकिन अगर समय पर पहचान और इलाज न हो तो यह दिल पर स्थाई चोट छोड़ सकती है। एऑर्टिक स्टेनोसिस यानी वॉल्व के ठीक से न खुलने की स्थिति में इलाज में देरी होने पर करीब 30 से 40 प्रतिशत मरीजों में हार्ट मसल्स स्थाई रूप से कमजोर हो जाती हैं। इसी तरह मिट्रल रिगर्जिटेशन, जिसमें वॉल्व से खून वापस लीक होता है, लंबे समय तक अनदेखी करने पर लगभग 25 से 30 प्रतिशत मरीजों में दिल का आकार बड़ा होकर हार्ट फेल्योर का कारण बनता है।
शहर में गुरुवार से शुरू हुई तीन दिवसीय इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस इंडिया वॉल्व-2025 में एक्सपर्ट्स ने कुछ ऐसी ही जानकारी दी। कॉन्फ्रेंस के कोर्स डायरेक्टर डॉ. रविन्द्र सिंह राव ने बताया कि स्ट्रक्चरल हार्ट से जुड़ी बीमारियों के इलाज में दुनियाभर में इस्तेमाल की जा रही नवीनतम तकनीकों और रिसर्च को साझा करने के लिए 1200 से अधिक विशेषज्ञ इस कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए हैं। सही समय पर इलाज बेहद जरूरी। डॉ. रविन्द्र राव ने बताया कि एओर्टिक स्टेनोसिस से जूझ रहे मरीजों में दवाएं कम काम करती हैं।
अगर बीमारी का इलाज दवाओं से ही जारी रहता है तो बीमारी होने के पहले वर्ष में जीवित रहने की संभावना 50 प्रतिशत और दूसरे वर्ष में सिर्फ 20 प्रतिशत ही रह जाती है। मरीज इन संकेतों को सामान्य कमजोरी या थकान समझकर अनदेखा कर देते हैं, जबकि यही स्थिति धीरे-धीरे स्थाई नुकसान में बदल जाती है। देर से डायग्नोसिस या इलाज में देरी होने पर मरीज को हार्ट फेल्योर, पल्मोनरी हाइपरटेंशन और अचानक हार्ट अरेस्ट का खतरा भी बढ़ सकता है। नई दवा से कम होगा कोलेस्ट्रॉल, एक डोज 6 महीने तक चलेगी।
दिल्ली के पद्मश्री हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण चंद्रा ने बताया कि दिल की बीमारियों में बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल लेवल प्रमुख कारणों में से एक होता है। अब इसे नई दवा के जरिए जल्दी कम किया जा सकता है। इसके लिए अब इंक्लीसिरान नाम की नई दवा आई है जिसे इंजेक्शन के रूप में लिया जा सकता है और कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ने की गंभीर समस्या से निजात पाया जा सकता है।

