महात्मा गांधी का अहमदाबाद से गहरा संबंध और सत्याग्रह की शुरुआत

Tina Chouhan

जयपुर। महात्मा गांधी का अहमदाबाद से रिश्ता सिर्फ ऐतिहासिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी गहरा है। सन् 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधीजी ने अहमदाबाद को अपना पहला ठिकाना बनाया और कोचरब गांव में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की। यहीं वह स्थान था, जहां से उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम की नई राह तैयार की और समाज में व्याप्त अस्पृश्यता जैसी कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष का संकल्प लिया। जीवनलाल देसाई द्वारा दिए गए बंगले को गांधीजी ने सत्याग्रह आश्रम में बदल दिया।

दो मंजिला इस आश्रम का ग्राउंड फ्लोर गांधीजी और कस्तूरबा का निवास था। आज भी यहां चरखा, पत्र, टेबल-कुर्सियां और कस्तूरबा द्वारा प्रयोग किया गया चरखा सुरक्षित रखा गया है। ऊपरी मंजिल पर एक विशाल हॉल और एक छोटी सी लाइब्रेरी है, जहां महत्वपूर्ण बैठकों और चर्चाओं का इतिहास संजोया गया है। सादा जीवन और अनुशासित दिनचर्याआश्रम का जीवन अत्यंत अनुशासित था। सुबह 4 बजे गांधीजी घंटी बजाकर सभी को जगाते थे। भोजन बेहद सादा रखा जाता था। सुबह फल, दोपहर और शाम को दाल, चावल, सब्जी, रोटी और फल। भोजन में मिर्च-मसालों का प्रयोग न के बराबर होता था।

गांधीजी स्वयं भोजन में कड़वी मेथी का इस्तेमाल करते थे। भोजन के बाद सभी लोग अपने बर्तन स्वयं धोते थे। इतिहास की अमूल्य धरोहरआज भी कोचरब आश्रम गांधीजी की सादगी, अनुशासन और समर्पण की गवाही देता है। यह स्थान केवल एक आश्रम नहीं, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की वह प्रयोगशाला है, जहां से महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को जीवन में उतारा और पूरे देश को दिशा दी।

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