नई दिल्ली। भारत में बुजुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। इससे साफ है कि सरकार की बुजुर्गों के लिए चलाई जा रही स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक योजनाओं प्रभाव पड़ा। हालांकि 14 साल तक के बच्चों की जनसंख्या कम हुई है। इसका सबसे बड़ा असर केन्द्र पर आएगा। भविष्य में सरकार को बुजुर्ग पेंशन और सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य की मद में अधिक खर्च करना होगा। बच्चों की घटती संख्या इसको इंगित करती है कि आगे जाकर देश को कार्यबल में कमी का सामना करना होगा। यूथ की आबादी घटने से बुजुर्गों को संभालने वाले कम होंगे।
रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की 2023 की सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम रिपोर्ट के मुताबिक देश की कुल प्रजनन दर (फर्टिलिटी रेट) 1971 में 5.2 थी, जो 2023 में घटकर 1.9 रह गई है। 14 साल के बच्चों की आबादी 1971-81 के बीच 41.2% से घटकर 38.1% हो गई थी। इसके बाद 1991 से 2023 के बीच यह और घटकर 24.2% रह गई। यानी पिछले 50 साल में बच्चों की हिस्सेदारी में करीब 17% की गिरावट आई है। 15 से 59 साल के लोगों की आबादी में लगातार इजाफा हो रहा है। 1971-81 के बीच यह 53.4% से बढ़कर 56.3% हुई।
1991 से 2023 के बीच यह और बढ़कर 66.1% हो गई। दिल्ली में इस उम्र वर्ग की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा 70.8% है। केरल में सबसे ज्यादादेश में बुजुर्गों की संख्या भी बढ़ रही है। 2023 में 60 साल से ऊपर की आबादी 9.7% हो गई है। केरल में यह सबसे ज्यादा 15.1% है। इसके बाद तमिलनाडु (14%) और हिमाचल प्रदेश (13.2%) का स्थान है। शिशु मृत्यु दर में बड़ी कमी आईदेश में शिशु मृत्यु दर 2023 में घटकर 25 रह गई है। यह 2013 में 40 थी। यानी 10 साल में इसमें 37.5% की गिरावट आई है।