सेना की आवश्यकताओं के लिए इसरो की नई योजनाएं

Tina Chouhan

जयपुर। इसरो ने सेना की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए स्पेस बेस्ड सर्विलांस 3 (एसबीएस 3) पर कार्य प्रारंभ कर दिया है। इसके अंतर्गत निजी कंपनियों के सहयोग से 31 सर्विलांस सिस्टम विकसित किए जाएंगे। अहमदाबाद स्थित इसरो के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस परियोजना पर लगभग 26000 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। इसरो करीब 20 सैटेलाइट बनाएगा, जिसमें लगभग 3 से 4 साल का समय लग सकता है। इस प्रोजेक्ट के लिए देशभर की 300 से अधिक कंपनियां और स्टार्टअप्स स्पेस सेक्टर में सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं।

केन्द्र सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 पेश की है, जिसके बाद निजी क्षेत्रों में भी कार्य प्रारंभ हुआ है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पहले एक सैटेलाइट बनाने में तीन साल लगते थे, लेकिन अब एक साल में नौ सैटेलाइट तैयार हो रहे हैं। अंतरिक्ष में दशकों से मौजूद पुराने और अनुपयोगी सैटेलाइट्स नई चुनौतियां उत्पन्न कर रहे हैं। जब भी कोई नया सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजा जाता है, तो इन सैटेलाइट्स से टकराव का खतरा बना रहता है।

इस समस्या के समाधान के लिए ऑपरेशन बर्न आउट की शुरुआत की जा रही है, जिसमें जापान महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसरो के वैज्ञानिकों का मानना है कि अनुपयोगी सैटेलाइट अंतरिक्ष में 100 से 500 वर्षों तक घूमते रहते हैं, जिससे नए सैटेलाइट के पहुंचने पर दुर्घटना की संभावना बनी रहती है। भूकंप और भूस्खलन की सटीक जानकारी अब बारिश की सटीक जानकारी के साथ मिल रही है। जल्द ही आने वाले समय में भूकंप और भूस्खलन की जानकारी समय से पहले प्राप्त हो सकेगी।

यह इसरो और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के संयुक्त मिशन निसार के माध्यम से संभव होगा। इसरो के वैज्ञानिकों के अनुसार, लगभग 750 किमी की यात्रा पूरी करने के बाद यह उपग्रह अपनी कक्षा में स्थापित हो चुका है और जल्द ही कार्य प्रारंभ करेगा। दावा किया जा रहा है कि यह तकनीक भूकंप, भूस्खलन और ज्वालामुखी विस्फोट की जानकारी लोगों को दो घंटे से 24 घंटे पहले तक दे सकेगी।

विज्ञान के प्रति बच्चों में रुचि जगाने के लिए अहमदाबाद में विक्रम साराभाई स्पेस एग्जीबिशन सेंटर की स्थापना की गई है, जहां सैटेलाइट्स, लॉन्च व्हीकल्स और थ्रीडी शो प्रदर्शित किए जाते हैं। यहां प्रवेश निशुल्क है।

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