कायनात की आंखों में पति और बेटियों की मुस्कान की तलाश

कोटा। शहर के छावनी रोड के मोती महाराज मौहल्ला में एक छोटे से मकान में दर्द की ऐसी दास्तान छिपी है, जिसे सुनकर हर किसी का दिल भर आए। कभी पेंटिंग और पीओपी का हुनर दिखाकर दूसरों के घरों की दीवारें चमकाने वाले 44 वर्षीय शाहिद खान आज खुद अंधेरे में घिर गए हैं। जो हाथ कभी रंगों से जिंदगी को सजाया करते थे, उनके घर में जहां कभी हंसी-खुशी की आवाजें गूंजती थीं। दीपावली के त्योहार पर अपने हुनर से दूसरों के घर सजाया करते थे। लेकिन आज अपने ही घर में सन्नाटा छाया हुआ है।

सात दिन बाद दिवाली आने वाली है लेकिन अब उनके घर में हमेशा के लिए अंधेरा हो गया है। कैंसर ने शाहिद की आवाज छीन ली, बीमारियों ने उनके परिवार को भी तोड़ दिया है। परिवार अब बेबस होकर समाज और सरकार से दवा और मदद के गुहार लगा रहा है। जब दैनिक नवज्योति का रिपोर्टर जब छावनी रोड पर स्थित मोती महाराज मौहल्ला में पहुंचा तो परिवार के आंसू छलक गए। परिवार में पत्नी कायनात, बेटा रहमत, बेटियां आलिया व तस्नीम और खुद शाहिद फफक कर रो पड़े।

उनके परिवार का कहना है कि प्रशासन की छोटी-सी मदद भी मिल जाए तो हमारे परिवार के लिए किसी खजाने से कम नहीं होगा। बीमारी की मार सिर्फ शाहिद तक सीमित नहीं रही। अब पूरा परिवार किसी न किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा है। 15 वर्षीय बेटी आलिया, जो कभी 9वीं में पढ़ती थी, दो साल से ब्रैन स्ट्रॉक्स की समस्या से जूझ रही है। अचानक बेहोश हो जाती है, गिर पड़ती है। जेके लोन अस्पताल में इलाज चल रहा है। जांचे करवाने के बाद उसकी भी दवाइयां लागू हो गई हैं।

ब्रैन स्ट्रॉक्स की वजह से आलिया का स्कूल भी छूट गया। वहीं 13 वर्षीय छोटी बेटी तस्नीम पिछले छह महीने से थायराइड की बीमारी से पीड़ित है। गले में दर्द इतना होता है कि वह खाना और पानी तक नहीं ले पाती। खाना सामने होती हुए भी खा नहीं पाती थी और रोने लग जाती है। अब निजी डॉक्टर को घर बुलाकर कभी अस्पताल जाकर इलाज करवाया जा रहा है। शाहिद की बूढ़ी मां अख्तरी बेगम भी बीमार हैं। उन्हें खुद चलने-फिरने में परेशानी होती है। वो खुद अपने बेटे व परिवार की हालत में आंसू बहा रही है।

मामूली छाले से कैंसर तक का सफर करीब दो साल पहले शाहिद की जीभ पर मामूली छाला निकला। उन्होंने सोचा कुछ दिन में ठीक हो जाएगा। लेकिन यह मामूली छाला धीरे-धीरे कैंसर में बदल गया। इलाज इतना महंगा था कि घर की जमा पूंजी एक-एक करके सब खत्म हो गई। तीन महीने पहले आई बायोप्सी रिपोर्ट ने शाहिद और उनके परिवार की दुनिया ही हिला दी। अब शाहिद के कैंसर को ठीक करने के लिए ऑपरेशन से जबड़ा व जीभ काटनी पड़ेगी। उसमें भी बचने कोई गारंटी नहीं है।

अब वे न तो बोल सकते हैं, न खाना खा सकते हैं। उनके चेहरे और शरीर पर बीमारी का असर साफ झलकता है। अब घर की जिम्मेदारी ही सबसे बड़ी परीक्षा : रहमतघर की जिम्मेदारी तथा अपने पिता का कैंसर का व अपनी छोटी बहनों की गंभीर बीमारियों का इलाज अब 17 वर्षीय रहमत खान के कंधों पर आ गई है। दसवीं का छात्र रहमत अब ओपन स्कूल से पढ़ाई कर रहा है ताकि दिन में थोड़ा काम कर सके। उसने बताया कि अब घर चलाना ही मेरे लिए सबसे बड़ी परीक्षा है, रहमत कहता है।

अब्बू को देखकर दिल टूट जाता है। अब मेरे लिए पढ़ाई से ज्यादा जरूरी घर की जिम्मेदारी है, मेरी बहनों की परवरिश है, मां व दादी का ख्याल रखना है मैं अपने परिवार के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हूं। वह कभी किसी किराना तो कभी कपड़े की दुकान पर काम करता है, तो कभी किसी के साथ पेंटिंग में हाथ बंटा देता है। जितना कमाता है, उससे केवल घर खर्च ही मुश्किल से निकल पा रहा है। कायनात की मजबूरी :अब नहीं बची जीने की हिम्मत शाहिद की पत्नी कायनात अब पूरी तरह थक चुकी हैं।

वह कहती है कि मैं बाहर जाकर काम भी नहीं कर सकती, बीमारी के चलते पति व बेटियों को हर पल मेरी जरूरत होती है, बेटियां बीमार हैं, सास की सेवा करनी है। अब समझ नहीं आता कहां जाऊं, किससे मदद मांगू। अब बेबश होकर तथा आंख में आंसू लिए बोलीं तब तो जीने की इच्छा ही खत्म हो गई। ऐसा दर्द किसी भी परिवार को नहीं दें। सबके घर में खुशियां व बरकत दें। किसी भी घर में आंसू नहीं छलकना चाहिए। मोहल्ले वालों का सहारा…पर कब तक!

मोहल्ले के लोग और रिश्तेदार इस परिवार की मदद कर रहे हैं। कोई दवा के पैसे देता है, कोई राशन लाकर रख देता है। लेकिन ये मदद कितनी देर तक चलेगी, कोई नहीं जानता। पड़ोसी इमरान कहते हैं हम सब कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इलाज बहुत महंगा है। सरकार या कोई संस्था आगे आए तो शायद शाहिद भाई को बचाया जा सके। कभी दीपावली के वक्त शाहिद रात-रातभर काम करते थे। अब उनके परिवार को आने वाले त्योहार डरावने लगते हैं। लोग अपने घर सजा रहे हैं, और उनका परिवार अपने घर में ही अंधेरे में बैठा हैं।

सरकार और समाज से मदद की उम्मीद पत्नी कायनात कहती है कि अब किसी की मदद मिल जाए तो इलाज हो सकता है, वरना बस अल्लाह के भरोसे हैं। अब यह परिवार समाज और सरकार से मदद की आस लगाए बैठा है। मोहल्लेवालों ने भी जिला प्रशासन से गुहार लगाई है कि शाहिद खान जैसे परिवारों की पहचान कर सरकारी सहायता योजनाओं से जोड़ें। वहीं कायनात का कहना है कि अगर कोई संस्था या सरकारी मदद या कोई व्यक्ति हमारे लिए मदद में आगे आए तो वो हमारे लिए किसी परिश्ते से कम नहीं होगा।

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