कोटा में करणी माता मंदिर: श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र

Tina Chouhan

कोटा। चैत्र नवरात्रि में देवी मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। शहर के नांता इलाके में स्थित श्रीकरणी माता मंदिर इन दिनों खास आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। तीन सौ साल से भी पुराना यह मंदिर कोटा के राजपरिवार की आस्था से जुड़ा हुआ है और इसे बीकानेर स्थित प्रसिद्ध करणी माता मंदिर का ही रूप माना जाता है। खास बात यह है कि यहां हर दिन माता का अलग श्रृंगार किया जाता है, जिससे भक्तों को देवी के नए स्वरूप के दर्शन का सौभाग्य मिलता है।

नांता स्थित श्रीकरणी माता मंदिर नवरात्रि में श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। 302 साल पुराना यह मंदिर केवल धार्मिक धरोहर ही नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा का प्रतीक भी है। यहां रोज होने वाले अलग-अलग शृंगार भक्तों को देवी के नए स्वरूप के दर्शन कराते है। नवरात्रि के अवसर पर आयोजित अखंड पाठ और रामायण से वातावरण भक्तिमय हो उठता है। राजपरिवार की परंपरा और करणी माता से जुड़ी मान्यताएं इस मंदिर को और भी विशेष बनाती हैं। यह मंदिर सरोवर स्थित है। यहां पानी प्राचीन स्रोत से आता है। हमेशा से यह सरोवर भरा रहता है।

भक्तों को आस्था से जोडती है। पुजारी सुरेश शर्मा ने बताया कि करणी माता का मुख्य मंदिर बीकानेर जिले के देशनोक में स्थित है। यहां हजारों की संख्या में चूहे पाए जाते हैं, जिन्हें ह्यकाबाह्ण कहा जाता है। इनकी पूर्ण सुरक्षा की जाती है और इन्हें देवी का प्रसाद माना जाता है। करणी चालीसा में उल्लेख है कि करणी माता के कुल या उनके भक्त मृत्यु के बाद यमलोक न जाकर मूषक रूप में मंदिर में जन्म लेते हैं और फिर अगली बार मनुष्य योनि में आते हैं। यह मान्यता आज भी भक्तों की आस्था को गहराई से जोड़ती है।

श्रद्धालुओं के अनुसार मंदिर की स्थापना की कहानी भी बेहद रोचक है। बताया जाता है कि मारवाड़ की राजकुमारी का विवाह कोटा के राजकुमार से हुआ था। विवाह के समय वे अपने साथ करणी माता की प्रतिमा लेकर आई थीं। उस दौर में मारवाड़ की परंपरा थी कि राजकुमारियां विवाह के बाद अपने ससुराल में करणी माता की प्रतिमा लेकर जाती थीं और वहां मंदिर की स्थापना होती थी। इसी परंपरा के तहत कोटा में यह मंदिर स्थापित हुआ। इसी तरह अलवर और उदयपुर में भी करणी माता के मंदिर आज मौजूद हैं।

आज भी कोटा का राजपरिवार नवरात्रि में मंदिर पहुंचकर शाही अंदाज में पूजा करता है। उनके साथ पूरा लवाजमा आता है और विधिविधान से करणी माता और काल भैरव की पूजा की जाती है। राजपरिवार की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और स्थानीय लोग इस मंदिर में बड़ी श्रद्धा से रखते हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां करणी माता की प्रतिमा को रोज नए वस्त्र और श्रृंगार से सजाया जाता है। उन्होंने कहा आज जो शृंगार किया है वो कल नहीं दिखेगा। रोजाना नया शृंगार किया जाता है।

भक्तों को हर दिन देवी का नया रूप देखने को मिलता है। यह परंपरा कई दशकों से चली आ रही है। पुजारी सुरेश शर्मा का कहना है कि यह परंपरा भक्तों की आस्था को और गहरा करती है। नवरात्रि के दौरान मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। सुबह से ही दर्शन के लिए कतारें लग जाती हैं। विशेष श्रृंगार, भजन-कीर्तन और दुर्गा सप्तशती पाठ से मंदिर परिसर भक्ति और श्रद्धा से गूंजता रहता है। नवरात्रि में अखंड पाठ और रामायणनवरात्रि के अवसर पर मंदिर में विशेष आयोजन किए जाते हैं।

स्थापना दिवस से ही दुर्गा सप्तशती का अखंड पाठ शुरू हो जाता है। इस हिसाब से मंदिर को स्थापित हुए 302 साल पूरे हो चुके हैं। इस अवसर पर हर साल कोटा का राजपरिवार विशेष पूजा-अर्चना करने के लिए यहां पहुंचता है। पूरे लवाजमे और शाही अंदाज में राजपरिवार नांता के काल भैरव और करणी माता की पूजा करता है। माना जाता है कि कोटा के राजपरिवार ने अपने पूर्वजों की परंपरा को निभाते हुए इस मंदिर की स्थापना की थी। आज भी यह परंपरा जीवंत है और नवरात्र में मंदिर परिसर में विशेष आयोजन होते हैं।

यह मंदिर देवस्थान विभाग के अधीन है। वर्तमान में यह मंदिर देवस्थान विभाग के अधीन आ चुका है। वहीं मंदिर परिसर का सुंदर गार्डन नगर विकास न्यास (यूआईटी) की जिम्मेदारी में है। गार्डन की देखरेख और सुरक्षा का जिम्मा यूआईटी के पास है। यहां पर भक्तों की सुरक्षा के लिए 24 घंटे होमगार्ड भी तैनात रहते हैं।

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