30 दिन मौत से जूझकर जिंदगी ने फिर से मुस्कुराई

कोटा। चिकित्सकों को धरती पर भगवान का दर्जा नहीं दिया जाता। इसका जीवंत उदाहरण कोटा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में देखने को मिला। बारां निवासी 25 वर्षीय विवाहिता स्क्रब टायफस से मरणासन स्थिति में पहुंच गई थी, जिसके बचने की उम्मीद भी न के बराबर थी। लेकिन, चिकित्सकों की मेहनत से जिंदगी और मौत के बीच 30 दिन चले संघर्ष में आखिरकार सुनीता को नया जीवन मिल गया। बुखार से वेंटिलेटर तक पहुंची महिला मेडिकल कॉलेज अस्पताल की मेडिसीन यूनिट-बी की एचओडी डॉ.

मीनाक्षी शारदा ने बताया कि बारां जिले के मांगरोल निवासी सुनीता को गत 30 जुलाई से ही तेज बुखार आ रहा था। परिजन स्थानीय स्तर पर ही इलाज करवा रहे थे। लेकिन बुखार नहीं टूटा, उल्टियां होने और सांस लेने में तकलीफ बढ़ गई। बीच-बीच में दौरे भी पड़ने लगे। गंभीर अवस्था में परिजन 5 अगस्त को उसे मेडिकल कॉलेज अस्पताल लेकर पहुंचे। उसका ब्लड प्रेशर भी 50 चल रहा था, शुगर भी बहुत कम था। महिला के ब्लड सेल्स प्रभावित हो गए थे। प्लेटलेट्स भी डाउन हो गए। लीवर, किडनी और लंग्स भी डैमेज हो गए।

प्रोटोकॉल के तहत महिला का इलाज शुरू किया गया। लेकिन, स्थिति गंभीर बनी रही। बचने की स्थिति न के बराबर थी। लेकिन, जान बचाने की उम्मीद से न्यू मेडिकल कॉलेज अस्पताल की मेडिसीन विभाग-बी के चिकित्सकों की टीम रात-दिन इलाज में जुटी रही। ऑक्सीजन लेवल घटा, फेफड़ों में निमोनिया बढ़ा। उन्होंने बताया कि मरीज के शरीर का ऑक्सीजन लेवल घटकर 80% रह गया था। दोनों फेफड़ों में निमोनिया होने से सांस लेने में मुश्किल हो रही थी। इस पर तुरंत आईसीयू में वेंटिलेशन पर लिया और इमरजेंसी केयर शुरू किया। इसके बाद जांचें करवाई, जिसमें वह स्क्रब टायफस पॉजिटिव मिली।

वायरस ने शरीर के अंगों को तेजी से प्रभावित किया। वह कोमा जैसी अचेतावस्था में थी। लगातार 28 दिन वेंटिलेटर पर रहने के बाद मरीज सुनीता को टी-पीस सपोर्ट पर लाया गया। फिर ऑक्सीजन हटाकर 48 घंटे चिकित्सकों की निगरानी में रखा, जब पूरी तरह आश्वस्त हो गए कि उसे सांस लेने में किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं हुई तो फिर ट्रेकियोस्टॉमी बंद की गई। सुनीता पूरी तरह होश में थी और स्वस्थ थी। आखिरकार, 7 सितंबर को अनंत चतुर्दशी पर वह मुस्कुराती हुई परिजनों के साथ अपने घर लौट गई। उसे डिस्चार्ज किया गया।

मरीज सुनीता की जान बचाने में मेडिकल कॉलेज अस्पताल के मेडिसिन विभाग-बी के चिकित्सकों की टीम की अहम भूमिका रही।

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