भारतीय परिवारों में अक्सर बुज़ुर्ग कहते हैं, मृत्यु तो शरीर की खत्म होती सांस है, लेकिन असली यात्रा आत्मा की होती है। यह बात सिर्फ भावनाओं से नहीं, बल्कि गरुड़ पुराण की गहरी शिक्षाओं से भी जुड़ी है। इस पुराण में बताया गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा नए शरीर की तलाश में निकलती है, लेकिन यह सफर उतना सरल नहीं जितना हम सोचते हैं। कई बार छोटे-छोटे नियमों की अनदेखी, परंपराओं को प्रथा समझकर छोड़ देना या संस्कारों में लापरवाही, आत्मा को शांति नहीं देती। ऐसी आत्माएं आगे नहीं बढ़ पातीं और प्रेतयोनि में भटकती रहती हैं।
गरुड़ पुराण कई जगह स्पष्ट चेतावनी देता है कि कुछ कर्म भूलवश भी हो जाएं तो आत्मा को नया जन्म मिलना मुश्किल हो जाता है। यही वजह है कि हिंदू समाज में अंतिम संस्कार केवल परंपरा नहीं, बल्कि विज्ञान और आध्यात्म का संगम माना जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, आत्मा को नया शरीर मिलने में 3 दिन, 10 दिन, 13 दिन, सवा महीना या कभी-कभी 1 वर्ष तक का समय लग सकता है।
लेकिन यदि मृतक के कर्म, संस्कार या परिवार की भूलें बीच में बाधा बन जाएं, तो आत्मा देह त्याग तो कर देती है पर शांति प्राप्त नहीं कर पाती। ऐसी आत्माएं न पितृलोक पहुंच पाती हैं, न स्वर्गलोक वे प्रेत बनकर पृथ्वी पर ही विचरण करती रहती हैं। इसलिए गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद सही विधि-विधान से संस्कार करने पर अत्यधिक बल दिया गया है। अंतिम संस्कार में शास्त्रीय नियमों की अनदेखी गरुड़ पुराण में सबसे बड़ा कारण माना गया है।
अगर शव का ठीक से स्नान न कराया जाए, नए वस्त्र न पहनाए जाएं, चंदन, घी, तेल न लगाया जाए, चिता ठीक से न जलाई जाए, या मृतक की इच्छा के बिना स्थान पर संस्कार कर दिया जाए, तो आत्मा को शरीर से पूरी तरह विरक्ति नहीं मिलती। वह अधूरी आकांक्षाओं और मोह-माया के कारण धरती पर भटकती रहती है। गरुड़ पुराण के अनुसार अशुद्ध विधि से किया गया दाह-संस्कार आत्मा को अपूर्ण और अशांत कर देता है।
मटके की परिक्रमा और फोड़ने की रस्म न करना यह रस्म सिर्फ परंपरा नहीं है, बल्कि आत्मा के मनोवैज्ञानिक तंत्र का हिस्सा है। मृतक के परिजन एक मटके में पानी भरकर, उस पर छेद कर, शव की परिक्रमा करते हैं और अंत में मटका फोड़ देते हैं।
यह तीन चीज़ों का संकेत है, शरीर और आत्मा का अंतिम संबंध टूट गया है, घर-परिवार का मोह समाप्त हो रहा है, आत्मा को अब अगले लोक की ओर जाना है, यदि यह कर्म न किया जाए, तो आत्मा परिवारजनों के प्रति अगाध आकर्षण में बंध जाती है और पृथ्वी लोक से अलग नहीं हो पाती। गरुड़ पुराण एक कठोर नियम बताता है, रात में शवदाह न करें। कारण रात्रि काल में देवताएं नहीं, बल्कि असूक्ष्म और नकारात्मक शक्तियां सक्रिय रहती हैं। ऐसे समय में आत्मा अस्थिर हो जाती है और सही दिशा नहीं पाती।
यही वजह है कि सूर्यास्त के बाद मृत्यु हो जाए तो, शव को घर में रखा जाता है और अगली सुबह सूर्योदय के बाद ही दाह संस्कार होता है। पीछे मुड़कर देखना चिता में लकड़ी डालने के बाद पीछे मुड़कर देखना एक बड़ा वास्तु और धार्मिक दोष माना जाता है। गरुड़ पुराण में कहा गया है, जो पीछे मुड़कर देखता है, वह आत्मा के मोह को बल देता है।
ऐसा करने से, आत्मा सोचती है कि परिवारजन अभी भी उससे जुड़े हुए हैं, वह देह का त्याग करते हुए भी उनसे अलग नहीं हो पाती, और आगे बढ़ने के बजाय परिवार की छाया में घूमती रहती है, इससे आत्मा प्रेतयोनि में फंस जाती है।

