भारत के पड़ोसियों के साथ रिश्तों में कमी: राजनाथ सिंह

By Sabal SIngh Bhati - Editor

ऑपरेशन सिंदूर ने भारतीय सेना के अदम्य साहस को प्रदर्शित किया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की 60वीं वर्षगांठ पर शुक्रवार को साउथ ब्लॉक में युद्ध में शामिल अधिकारियों और सैनिकों से बातचीत की। उन्होंने कहा कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ रिश्तों में कभी भाग्यशाली नहीं रहा, लेकिन इसे नियति नहीं माना गया। किसी राष्ट्र का असली भाग्य खेतों, कारखानों, प्रयोगशालाओं और रणभूमि में बहाए गए पसीने से बनता है। भारत अपना भाग्य किसी और पर नहीं छोड़ता, बल्कि खुद गढ़ता है। इसका एक उदाहरण ऑपरेशन सिंदूर है।

राजनाथ ने कहा कि 1965 का युद्ध कोई साधारण संघर्ष नहीं था, बल्कि यह भारत की ताकत की परीक्षा थी। पाकिस्तान ने घुसपैठ और गुरिल्ला हमलों से भारत को डराने की कोशिश की, लेकिन हर जवान इस भावना के साथ पला-बढ़ा है कि देश की संप्रभुता और अखंडता पर आंच नहीं आने देगा। उन्होंने कहा कि युद्ध केवल लड़ाई के मैदान में नहीं लड़ा जाता, बल्कि जीत पूरे राष्ट्र के सामूहिक संकल्प का परिणाम होती है।

रक्षा मंत्री ने 1965 के युद्ध के दिग्गजों के साथ बातचीत में पहलगाम की भयावह घटनाओं को याद किया, जो दिल को भारी कर देती हैं। पहलगाम की घटना ने सभी को झकझोर दिया, लेकिन मनोबल को नहीं तोड़ा। ऑपरेशन सिंदूर में दुश्मनों को दिखा दिया गया कि हमारा प्रतिरोध कितना मजबूत है। उन्होंने कहा कि 1965 के कठिन दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में देश ने चुनौतियों का सामना किया। शास्त्री जी ने निर्णायक राजनीतिक नेतृत्व दिया और पूरे देश के मनोबल को ऊंचाई तक पहुंचाया।

‘जय जवान, जय किसान’ का नारा आज भी हमारे हृदय में गूंजता है। राजनाथ ने कहा कि 1965 के युद्ध में कई घटनाएं इतिहास में दर्ज हुईं। फिलोरा की लड़ाई में हमारे सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान की हिम्मत तोड़ी। चाविंडा की लड़ाई दुनिया की सबसे बड़ी टैंक बैटल्स में से एक मानी जाती है। वहां भी हमने साबित किया कि युद्ध टैंकों से नहीं, बल्कि हौसले और दृढ़ निश्चय से जीता जाता है। 1965 के युद्ध में वीर अब्दुल हमीद ने अपने साहस से टैंकों की पूरी कतार को जला डाला।

उनकी वीरता हमें सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में भी साहस, संयम और देशभक्ति असंभव को संभव बना सकती है।

Share This Article
Exit mobile version