रामदेव जी – राजस्थान के लोक देवता (4)

Kheem Singh Bhati
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रामदेव जी (रामशाह पीर)। दिल्ली के प्रसिद्ध तोमर (तंवर) राजवंश के अंनगपाल की छटी पोढी में श्रजमालजी नामक धर्म प्रिय क्षत्रिय का जन्म हुआ था यह प्रजमालजी नरैणा में रहते थे। दिल्ली के बादशाह ने जब नरेणा पर आक्रमण किया तब सामना करते अजमाल के छ: भाई युद्ध में काम आए ।

अजमाल वहां से हटकर मरु प्रदेश में बस गए। उस समय जयपुर प्रान्त के पास का दूदू नामक क्षेत्र तंवरों के अधीन था जो आज भी तंवरावाटी पुकारा जाता हैं। इन्हीं क्षेत्रों में अजमाल ने कुछ समय तक अपना निवास बनाया होगा। फिर आगे जाकर पोकरण पर अधिकार कर सदैव के लिए वहीं बस गए ।

अजमाल भगवान कृष्ण के परम भक्त थे । बहुत कड़ी साधना के पश्चात उनके दो पुत्र वीरमदेव और रामदेव हुए । रामदेव जी का जन्म परम्परा के अनुसार सम्वत् 1461 विक्रमी भादवा सुद बीज को हुआ था । यह जन्म स्थान वर्तमान बाड़मेर जिले की शिव तहसील के उण्डू-काश्मीर नामक गांव के पास हैं ।

रामदेव जी – राजस्थान के लोक देवता (4)

जन्म लेने के पश्चात शिशु रामदेव अपने अलौकिक होने का परिचय (पर्चे) देने लगे। लोगों में धारणा हो गई कि यह कृष्ण के अवतार हैं। अपनी माता का भ्रम भी इन्होंने पालने में भूलते-फूलते दूर कर दिया था ।

वीरमदेव और रामदेव दोनों भाई गेंद खेलते एक अवसर पर कुछ दूर चले गए। गेंद भी बहुत दूर जाकर गिरी जिसे खोजने रामदेव गए तो भटक गए । रामदेव एक विरान स्थान पर जा पहुंचे जहां पर एक साधू तप कर रहा था । साधू ने बालक रामदेव को सावधान किया कि इस क्षेत्र में एक राक्षस रहता है सो तुम भाग जाओ । बालक रामदेव ने हठ किया और वहां डटे रहे ।

रामदेव जी (रामशाह पीर) – राजस्थान के लोक देवता (4)
रामदेव जी – राजस्थान के लोक देवता (4)

वहाँ पर उत्पात मचाने वाले राक्षस का नाम भैरू था जो पाकरण के उजेन्द्रनगर में निवास करता था । लूटपाटऔर हत्या करना उसका काम था । बालक रामदेव ने राक्षस के सामने आने पर उसे तीरों से छेद दिया। राक्षस घायल होकर शरण में आ गया । उसे क्षेत्र छोड़ने के लिए बाध्य किया गया। राक्षस वहाँ से सिन्ध में चला गया ।

उजड़े पोकरण को रामदेव ने फिर बसाया और नागरिकों की रक्षा का प्रबन्ध किया | पोकरण के चारों ओर का प्रदेश सातलमेर नामक बहुत आबाद हो गया। इन्हीं तपस्वी साधु के उपदेश से यह सारा कार्य रामदेव ने किया और इन्हीं से रामदेव ने दीक्षा लेकर उनको अपना गुरु मान लिया । इन तपस्वी का नाम बालकनाथ जो था ।

रामदेव ने बालकनाथ जी को कुटिया (आश्रम) को भी सुधरवा दिया जो आगे जाकर भक्तों हेतु तीर्थ बन गया । यह बालकनाथ आश्रम वर्त्तमान जैसलमेर जिले की पोकरण तहसील में पोकरण नगर से लगभग पाँच मील दूर है जहां पर अब पक्का मन्दिर बन चुका है ।

उस समय गुरु बालकनाथ जी के निवास हेतु जोधपुर नगर के पश्चिम में स्थिति मसूरिया पहाड़ी पर एक स्थान बना दिया था, और यहीं पर गुरु बालकनाथ ने समाधि ली। यह भी तीर्थ स्थान बन गया और यहां पर भी वार्षिक मेला लगता है ।

रामदेव जी के बड़े भाई वीरमदेव थे जिन्होंने बिना पूछे रामदेव की पुत्री का विवाह राठौड़ जगमाल के पुत्र हमीर से कर दिया । यह हमीर रावल मल्लिनाथ के पोत्र थे । तब रामदेव जी ने हमीर जगमालोत को पोकरण दहेज में सौप दिया और आप कुछ मील दूर रुणैचा नामक कुए के पास जाकर बस गए । वहाँ का नाम भी रुणेचा पड़ गया ।

इसी गांव का बहुत अधिक विकास हुआ जो अब ‘रामदेवरा’ कहलाता है । इसी गांव के पास रामदेव जी ने एक विशाल सरोवर बनाया जो राम सरोवर के नाम से प्राज भी है। रुणेचा गाँव के दक्षिण-पश्चिम की दिशा में रामसरोवर के किनारे रामदेव जी का मन्दिर भो बना जो लाखों भक्तों हेतु तीर्थ है ।

इसी मन्दिर (राम-देवालय) के कारण ही सारा गांव रामदेव नाम धारण कर रहा है । पानी की कमी को दूर करने के लिए एक खंडहर पड़ी बावड़ी का पुनः निर्माण रामदेवजी नं कराया । इन जन हितकारी कार्यों और सेवाओं के कारण रामदेव जी पूज्य बन गए ।

लोक गाथाओं और गीतों में रामदेव जी के सम्बन्ध में अनेक अलौकिक घटनाओं का वर्णन आता है । प्रलौकिक शक्ति द्वारा किसी कार्य को करना अथवा करवा देना, पर्चा देना (शक्ति का परिचय देना) कहलाता है । भावुक भक्तों का कथन है कि रामदेव जी ने कई मरे हुए मनुष्यों को जीवनदान दिया।

अनेक रोगियों को रोग रहित किया । इन असम्भव घटनाओं को प्रमाण के प्रभाव में भले ही नहीं माने परन्तु यह तो प्रकट होता है कि रामदेवजी ने निर्बल रोगी, अधूत निर्धन आदि हजारों लोगों को सहायता दी उनमें जाति-पांति या ऊंच-नीच के प्रति कोई भेद-भाव नहीं था ।

हल्की अथवा पिछड़ी कहो जाने वाली जातियों में रामदेव जी अति लोक प्रिय हो गए । इस कारण इन्हीं वे से धिरे रहते थे । इसी कारण कहावत है कि रामदेव जी को मिले सो ढेड ही ढेड अर्थात रामदेव जी को सारे भक्त ढेड (चमार, बाँभी, बनजारे, मेघवाल श्रादि ) जाति के हो मिले ।

रामदेव जी (रामशाह पीर) – राजस्थान के लोक देवता (4)
रामदेव जी – राजस्थान के लोक देवता (4)

एक बार रामदेव जी की परीक्षा मक्का से आए पांच पोरों ने लेनी चाही। वे रामदेव जी के पास आए जब वे अपना घोड़ा मैदान में चरा रहे थे । रामदेव जी ने उनका स्वागत किया और मैदान के किनारे पर पेड़ की छांव में बैठने हेतु कहा परन्तु पीर गण वहीं धूप में खुले मैदान में जम गए ।

पीरों ने अपने दतून चीरकर वही गाड़ दिए तो वहाँ क्षण भर में छायादार पेड़ उग प्राए । रामदेव जी यह सब देखकर चुप रहे । दोनों में संत समागम हुआ। शाम को भोजन का निमंत्रण पीरों को दिया तो उन्होंने कहा कि वे अपने पात्र मक्का छोड़ आए हैं और उन्हीं में भोजन करेंगे ।

रामदेव ने कहा कि सब प्रबंध हो जावेगा । रामदेव जी ने हाथ लम्बा करके मक्का में पड़े प्याले उठाकर सामने लाकर रख दिए । पांचों पीर यह अलौकिक करामात देखकर दंग रह गए और पांव पड़ गए। तब से मुस्लिम लोग भी रामदेव जी को सच्चा महात्मा मानते हैं और अपना पोर मानते हैं।

रामदेव जी को वे रामशाह पीर कहकर नाम लेते हैं और गीत गाते रामदेव जी ने पोकरण से आठ मील उत्तर में बने रुणचा गाँव में जीवित समाधि लो । यह घटना सम्वत 1515 भादवा गुरु विक्रमी की है। यहाँ पर भादवा शुक्ल 2 से 10 तक वार्षिक मेला लगता है।

राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश आदि कई प्रान्तों से हजारों को संख्या में लोग रामदेवरा तीर्थ करने आते हैं । रामदेव जी की मूर्ति के अलावा उनके पगलिए (पत्थर पर खुदे पाँव के निशान ) भी पूजे जाते हैं ।

यात्रो लोग घोड़े के खिलौने बनाकर लाते हैं और रामके देवरा में प्रसाद के संग भेंट करते हैं । भक्त लोग धातु पतरे पर पर रामदेव जी की मूर्ति अथवा पगलिए खुदवाकर पहिनते हैं । रामदेव जी के थान (पूजा स्थान) पर लाल पैरों के निशान से अंकित श्वेत ध्वजा फहराई जाती है।

रामदेव जी के जीवन से संबंधित दो सेवक हरजी भाटी और डाली बाई बहुत प्रसिद्ध हैं । इनको वाणियाँ भी प्राप्त होती हैं । रामदेव जी ग्राज भी प्रति प्रसिद्ध लोक देवता हैं । पिछड़ी और छत जातियों के तो यह उपास्य देव बन गए हैं । यह लोग इनको बाबा रामदेव कहकर स्मरण करते हैं तो मुसलमान रामशाह पीर कहकर।

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