नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में परिवारों में गृहिणियों के योगदान को मान्यता देने की वकालत की है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि अब समय आ गया है कि गृहिणियों की भूमिका को संपत्ति के स्वामित्व संबंधी अधिकारों के संदर्भ में मान्यता दी जाए। कोर्ट ने कहा कि घर बनाने से लेकर उसे चलाने में गृहिणियों का अहम योगदान होता है। घर, परिवार और बच्चों की देखभाल में गृहिणियों के योगदान को देखते हुए उनके मालिकाना अधिकारों का फैसला लेने में मदद मिलेगी और ऐसे योगदानों का मूल्य तय किया जा सकेगा।
इसके लिए विधायिका की ओर से उचित कदम उठाने की जरुरत है। महिला ने फैमिली कोर्ट के आदेश को दी थी चुनौती। दरअसल एक महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसने उसके दीवानी याचिका को खारिज कर दिया था। महिला ने हाईकोर्ट से मांग की थी कि वो ये घोषित करे कि विवादित संपत्ति में उसका भी समान और वैध अधिकार होगा। महिला ने मांग की थी कि उसे भी संपत्ति में कब्जे के साथ ही आधे का मालिक घोषित किया जाए।
महिला की ओर से कहा गया था कि उसे उसके हिस्से को वंचित करना अन्याय होगा क्योंकि उसने परिवार की देखभाल के लिए अपनी नौकरी तक छोड़ दी थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने साफ किया कि ससुराल में पत्नी का रहना मात्र, अपने आप में उसे पति के नाम पर मौजूदा संपत्तियों पर मालिक होने का अपराजेय अधिकार प्रदान नहीं कर सकता है। इसके लिए ठोस साक्ष्य और घरेलू योगदान को स्थापित करना जरुरी है। महिलाओं की छोटी बचत, बड़ी सहायता।
हाईकोर्ट ने साफ किया कि किसी को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि इस देश में बहुत से परिवारों में खासकर उन परिवारों में जहां घरेलू सहायक आदि के रूप में कोई मदद नहीं है। ऐसे घरों में पूर्णकालिक गृहिणियों की मौजूदगी परिवार को उन खर्चों से बचाती हैं जो घर और परिवार को रखरखाव के लिए उठाने पड़ते हैं। इस बचत के जरिए परिवारों को घर संपत्ति खरीदने जैसी सुविधा मिलती है।

