किसानों को मिलेगी खाद की राहत, डीएपी और यूरिया की सप्लाई

Tina Chouhan

कोटा। जिले में पिछले वर्ष की तुलना में इस बार लगभग दोगुने क्षेत्रफल में धान और मक्का फसल की बुवाई होने के कारण डीएपी और यूरिया की मांग लगातार बनी हुई है। फसलों की बढ़वार के दौर में किसान खाद के लिए भागदौड़ कर रहे हैं। कोटा और हाड़ौती क्षेत्र में यूरिया और डीएपी की डिमांड बढ़ने लगी है। ऐसे में किसानों को जल्द राहत मिलने की उम्मीद है। शनिवार को नर्मदा बायो केम की यूरिया, कृभको की डीएपी और इफको की यूरिया की नई रैक पहुंचेगी।

इससे कोटा जिले को लगभग 2600-2600 मीट्रिक टन अतिरिक्त यूरिया और डीएपी मिल सकेगा। रैक आने के बाद यूरिया और डीएपी को ग्राम सेवा सहकारी समितियों के पास पहुंचाया जाएगा और वहां से किसानों को वितरित किया जाएगा। वितरण की पूरी तैयारी कर ली गई है। कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि जिले में अभी लगभग 7014 मीट्रिक टन यूरिया उपलब्ध है। 1910 मीट्रिक टन यूरिया सहकारी संस्थाओं में और 5104 मीट्रिक टन प्राइवेट उर्वरक विक्रेताओं के पास उपलब्ध है। इसके अलावा, निजी डीलरों और सरकारी संस्थाओं के पास 4399 मीट्रिक टन डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) उपलब्ध है।

चम्बल फर्टिलाईजर एंड केमिकल्स लिमिटेड, गढेपान द्वारा प्रतिदिन 400 मैट्रिक टन यूरिया की आपूर्ति की जा रही है। कृषि विभाग किसानों को समय पर उर्वरक उपलब्ध कराने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है। धान की खेती करने वाले किसानों को यूरिया के स्थान पर बहुउपयोगी और गुणकारी अमोनियम सल्फेट का उपयोग करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। हाड़ौती अंचल में खरीफ सीजन के दौरान डीएपी खाद की डिमांड लगातार बढ़ रही है।

जार्डन, मोरक्को, सऊदी अरब जैसे देशों से आने वाली डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की आपूर्ति में बाधा के कारण किसानों को समय पर खाद उपलब्ध नहीं हो पा रही है। डीएपी की कमी से अमोनिया और अन्य तत्वों की आपूर्ति भी प्रभावित हो रही है, जो मुख्य रूप से सऊदी अरब, कतर, ओमान और रूस से आयात होते हैं। स्थिति यह है कि डीएपी की कमी ने अब यूरिया की खपत पर भी दबाव बढ़ा दिया है। किसान विकल्प के तौर पर यूरिया पर अधिक निर्भर हो गए हैं।

इससे स्थानीय गोदामों और सहकारी समितियों पर यूरिया की मांग अचानक बढ़ गई है। मांग बढ़ने से कई स्थानों पर यूरिया का स्टॉक कम पड़ने लगा है, जिससे किसानों को लंबी कतारों में लगकर खाद लेने की मजबूरी झेलनी पड़ रही है।

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