सुप्रीम कोर्ट संसद में नागरिकों के अहम मुद्दों पर बहस के लिए प्रणाली की मांग पर विचार को राजी

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नई दिल्ली, 27 जनवरी ()। सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को उस याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हो गया, जिसमें केंद्र को एक उपयुक्त प्रणाली बनाने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई है, जो नागरिकों को संसद में याचिका दायर करने और बहस, चर्चा और विचार-विमर्श शुरू करने का अधिकार देती है।

न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने याचिका में किए गए अनुरोधों पर कहा कि अगर ऐसा करने की अनुमति दी जाती है, तो इससे संसद का कामकाज बाधित हो सकता है, क्योंकि अन्य देशों की तुलना में भारत में बड़ी आबादी है।

पीठ ने याचिकाकर्ता करण गर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता रोहन जे. अल्वा से कहा, आप चाहते हैं कि इसे अनुच्छेद 19 (1) के हिस्से के रूप में घोषित किया जाए। यह संसद के कामकाज को पूरी तरह से बाधित करेगा।

अधिवक्ता एबी पी. वर्गीज की मदद लेते हुए अल्वा ने तर्क दिया कि याचिका संवैधानिक कानून पर प्रश्न उठाती है और कोई मतदाता जो मुद्दों के प्रति चौकस रहता है, लेकिन निर्वाचित होने के बाद सांसद के साथ उसका कोई जुड़ाव नहीं रह पाता।

वकील ने शीर्ष अदालत से मामले में नोटिस जारी करने का आग्रह किया।

पीठ ने पूछा कि लोकसभा और राज्यसभा के खिलाफ रिट याचिका कैसे सुनवाई योग्य है, तब वकील ने तर्क दिया कि यूके के हाउस ऑफ कॉमन्स में ऐसी प्रणाली है, जो वेस्टमिंस्टर मॉडल पर आधारित है। ये प्रथाएं विदेश में प्रचलन में हैं।

दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने वकील से केंद्र सरकार के स्थायी वकील से याचिका मांगी और कहा, आइए, देखते हैं कि उन्हें क्या कहना है। शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई फरवरी में होनी तय की। हालांकि, इसने याचिका पर नोटिस जारी नहीं किया।

याचिकाकर्ता ने याचिका में तीन प्रतिवादी बनाए हैं : भारत संघ अपने सचिव के माध्यम से, लोकसभा अपने महासचिव के माध्यम से, और राज्यसभा अपने महासचिव के माध्यम से।

याचिका में एक घोषणा की मांग की गई थी कि नागरिकों को सीधे संसद में याचिका दायर करने और जनहित के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा आमंत्रित करने का मौलिक अधिकार है।

वकील जॉबी पी. वर्गीस के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है : रिट याचिका में अनुरोध किया गया है कि उत्तरदाताओं के लिए ठोस कदम उठाना अनिवार्य है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संसद में नागरिकों को अनुचित बाधाओं और कठिनाइयों का सामना किए बिना उनकी आवाज सुनी जा सके। इसके लिए यह रिट याचिका एक विस्तृत और बारीक रूपरेखा प्रस्तुत करती है, जिसके तहत नागरिक याचिकाएं तैयार कर सकते हैं, इसके लिए समर्थन प्राप्त कर सकते हैं और यदि कोई नागरिक याचिका निर्धारित सीमा को पार कर जाती है, तो नागरिक याचिका को संसद में चर्चा और बहस के लिए अनिवार्य रूप से लिया जाना चाहिए।

दलील में तर्क दिया गया कि लोगों द्वारा वोट डालने और संसद के साथ-साथ राज्य विधानसभाओं के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने के बाद किसी और भागीदारी की कोई गुंजाइश नहीं है। इसमें कहा गया है, किसी भी औपचारिक तंत्र का पूर्ण अभाव है, जिसके द्वारा नागरिक कानून-निर्माताओं के साथ जुड़ सकते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा सकते हैं कि महत्वपूर्ण मुद्दों पर संसद में बहस हो।

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Sabal Singh Bhati is CEO and chief editor of Niharika Times
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