शिलां माँ ने हजारों बीघा उपजाऊ जमीन को बचाने के लिए जमर यानी आत्मोंत्सर्गन (किसी महान उद्देश्य के लिए अपने प्राणों का त्याग करना) किया।
शिलां मा रौ सत (जमर)। बाड़मेर अर जैसलमेर रै कांठा ऊपर बीठू चारणों रौ ओक गांम झिणकली आयोड़ौ। औ गांम रावळ मल्लीनाथ जी रै पोतरै (पोता) राव रिड़मल, बीठू रासै नै, संवत 1474 रा भादवा सुद पूनम रै दिन, सांसण में दियौ।
झिणकली गांम में, बीठू नैतसिंघ रा बेटा जोगराज जी रहै । जोगराज जी रौ ब्याव जैसलमेर रा गांम कोड़ा, रा रतनू साखा रा चारण संकर जी साहेबदांनोत री बाई शिलां साथै होयौ। शिलां रै च्यार बेटा होया-रुघोजी, आवड़ोजी, करणीदांनजी अर सारंगधरजी ।
जोगराजजी री ग्वाड़ी भरी तरी ( सुखी परिवार ) । जोगराजजी चौताळा में (अपनै क्षेत्र में) समझणा मिनखों में गिणीजै। वारै करियोड़ी पंचायती नै कोई रेटे नहीं। घरे धीणौ धापौ, ऊंट, घोड़ा, सब बातां रौ थाट । जोगराजजी रै परवार, टाळ इण गांम में वीठ्वां रा ओक सौ बीस रावळा । सब साधन सम्पन्न अर हेत इकळास सूं रहै।
शिलां मा रौ सत (जमर) संवत 1920 (सन् 1863 ई.) रौ समौ ।
जैसलमेर री गादी ऊपर रावळ रणजीतसिंह तपै । जोधपुर री गादी ऊपर महाराजा तखतसिंघ जी । इण असनाय में (इस समय में) हिन्दुस्थान में अंगरेजों रौ राज जम गयौ हौ, अर ठौड़-ठौड़ अंगरेज अफसर आय नै रजवाड़ों में आपरी हकूमतौँ कायम कर दी। देसी रजवाड़ों री सीम (सीमा) कायम करण तांई अंगरेजों राजावां नै कैयौ, थांहरै रजवाड़ों री पैमाइस कराय हदबंदी कराऔ ।
उण हुकम री तांमील में जैसलमेर रावळ जी आपरा हाकम जोरजी पुरोहित अर मूहता मूळजी नै झिणकली कांनली (तरफ की) जमी री पैमाइस करण सा भेजिया । यां आय नै लखां री गढी में डेरा दिया। साथै हजूरिया, मेहर, अर खोखर । दिन ऊगै राज रा मिनख पैमाईस री सांकळ लेय नै निकळै अर दिन आथमै जठा तक सांकळ खेंचता-खेंचता हदबंदी करता आगे चालै । सिंझ्या रा पाछा आय गढी में डेरा देवै ।
सांकळ खींचतां खींचतां राज रा मिनख झिणकली री सीम में ढाकणियां री खड़ीन कनै आया नै खोखरों री नींत पलटी। वां हाकम नै कैयौ सांकळ रै हिसाब सूं ढाकणियौ मारवाड़ रै गांम झिणकली वाळों रै जावै, पण आपां इण नै आपणी सीम में लेय पक्को मुटांम (हद का पत्थर) लगाय दौं ।
अठै खोखरों में मतभेद पैदा हुवौ । खोखरों रा पांच गांम, कोहरो, लखा, भाड़ली, जिंझणियाळी अर नींमली। राज रा कबीला में चारुं गांमां रा मिनख । इण में नींमली, भाडळी अर जिंझणियाळी रा खोखर तौ कहै ढाकणिया री खड़ीन चारणौं री अर कोहरा अर लखा वाळा कहै चारण अठै कांई मांगै? आ धरती जैसलमेर रावळ जी री।
वाद बढियौ तौ इण भांत कै दोनूं धड़ा मरण मारण तांई त्यार व्है गया। खबर झिणकली पूगी। चारण सब संभ नै ढाकणियै पूगा ।
कोहरा अर लखा रा खोखर ढाकणियां रौ खड़ीन खड़ण सारुं आपरा हळ लेय आया। नींमली, भाडली, जिंझणियाळी रा खोखर अर झिंणकली रा चारण आड़ा फिरिया कै म्हैं खड़ीण खड़ण नहीं देवों ।
हाकम जोरजी पुरोहित अर मूहता मूळजी कनै, बात लखे पूगी। वै ऊंठों पलांण कर, पूगा ढाकणियै रै खड़ीन। देखै तौ मेळौ मचियौड़ौ । खोखरों अर बारठौं रै झौड़ चाल रही। बारहठ कहै आ चूकती धरती म्होंने राठौड़ रिड़मल जगमालोत रै दीनोड़ी, खोखर अठै कांई मांगै? खोखर कहै इण नै म्हें खड़ों, चारण अठै कांई मांगे। चारण कहै खोखर म्हांरा करसा।
खोखरों नै म्हे हासल साटै खड़वा नै दीनी, पण धणियाप इण धरती ऊपर म्हारी।
चारणों देखियौ अबै कांई करों? राज रा मिनखौं सूं पड़प नीं सकों। वां कम नै कैयौ म्हांनै मोहलत देवौ । म्हारै कनै राव रिड़मल रौ तांबा पतर है, वो देखो। इण खड़ीन रौ पुरांणौ कवत है वो सुणौ, अर पछै न्याव करौ । ओकदम कोई फैसलौ मत करौ ।
बात दूजे दिन माथै राखी। सब आपौआप री ठौड़ गया, अर खून खच्चर होवण सूं बच गयौ ।
चारण सब गांम में गया। बूढियौं बैठ नै मसलत (विचार-विमर्स) करी के कांई करणौ ?
ओक बूढीयै कैयौ, ‘भाई आपां कनै अक ईज ब्रह्मास्त्र है, अर वो है जमर (आत्म बलिदान)। बडेरां अन्याय सूं लड़वा सारूं इण अस्त्र नै केतांन बार काम में लियौ अर नवलाख लोवड़ियाळी री कृपा सूं अन्याय करणियां रौ सत्यानास व्है गयौ । म्हनै लागै है जैसलमेर रावळ जी रा फौरा दिन आय गया। घणौई आंपारै पीढियों रो, आंतरौ रौ सनातनीं रिस्तौ है, पण अन्याव रै सांमी आपणौ माथौ कदेई नीं झुकियौ अर नीं अबैई झुकैला।
ओठै (वहां) बैठोड़ा दूजा लोगों इण बात नै मांनीं । सवाल ऊठियौ जमर कुंण करै ?
शिलां मा रा घर रा धणी नै सुरगसिधायों थोड़ोक समय ईज होयौ हौ । वै भाडली रै ठाकर रुघजी रै खोळे घालियोड़ा हा। इण वास्तै आपरै धरम रा बाप रुघजी रै घरे खूणै बैठा हा । वै धरम ध्यान में घणा रैहता। छाछरै रा मठाधीस शिलां मा नै ग्यांन दियौ, जद सूं वै हर समय रांम रै नांम में लीन रैहता ।
मिनखों कैयौ शिलां मा नै बुलावौ, वांनै ई पूछ लेवों, वै कांई कैहवै ? अर शिलां मा रै बेटा सारंगधर नै ऊंठ देय भाडली कांनीं व्हीर करियौ ।
अठी नै चारणों जमर करण री धार ली। नक्की (तय) व्है गयौ के रावळ जी रौ हाकम अर खोखर नहीज मांनै तौ जमर करणौ । जमर कुंण करै, वो शिलां मा रै फैसला ऊपर छोड़ दीयौ ।
व्हासा ! दूजौ दिन ऊगौ। रावळ जी रा मिनख अर हाकम टपोटप ढाकणिया रे खड़ीन आय पूगा । चारण सब त्यार हाईज । वै भी दिन ऊगतां पांण ढाकणिया आय गया।
हाकम कैयौ, ‘बोलो चारणों, कांई करणौ ?’
चारणों कैयौ ढाकणिया रौ खड़ीन अर आहड़ली पाहड़ली (आसपास की) चूकती जमीन म्हारी नै म्हारै बाप री । म्हे ओक आंगळ जमीन रावळ जी नै नहीं देवों, नीं म्हैं थांनै अठै नापण देवां । म्हारी जमीं नै नापण वाळा थे कुंण? आ तौ सीम मारवाड़ री। जैसलमेर वाळा अठै कांई मांगै ।
अर आमी सांमी पैहलां तौ बोल चालईज हुई अर पछै गेड़ियां (लाठीयौ) तरवारौं री रीठक उड़ी।
अठी नै तौ औ झगड़ौ व्है रहियौ हौ अर लारै शिलां मा रौ बेटो सारंगधर भाडली पूगो। मा नै सब समाचार कया नैं कैयौ के चूकती झिणकली आपनै तेड़ाया है (बुलाया है)। आपरै झिणकली पूगों पछै नक्की व्हैला (तय होगा) के कांई करणौ ?
सारंगधर री बात सुण शिलां मा रा केस चर र रड़, चर र रड़ करतां ऊभा होया। आंख्यां लाल व्हैगी, सारंगधर सूं आपरी मां रै चैहरा सांमी देखणी नीं आयौ ।
सारंगधर नै आय सुण, घर री सहुवाळियों भेळी व्हैगी । कैयौ, मा! रुघाजी घरे कोयनीं (नहीं है)। वै आवै जित्तै आप ढबौ। आपरै खूणा छोड़वा रौ दस्तूर होयौं पछै भलाई पधारजो।
शिलां मा कैयौ,” दीकरा, ढबै ज्यूं नीं है। पीढियों रै रुखाळियोड़ी धरती, दीसती आंख्यां कीकर जावण देवौं ।
आज पूरौ गांम भेळौ होयोड़ौ, म्हनै तेड़ाई (बुलाया है) है, तौ म्हनै तौ जाणौ पड़सी । जीसा थांहनै कोई ओळंबौ नींदै, आ यूं खातरी राखौ। यूं कैय मा भड़ाक देतौं बैठा होया। सउवाळियों वांरी लोवड़ी खींच नै ऊभी रही, ‘मां म्हैं आपनै नीं जावण देवों ।’
शिलां मा सोच्यौ, ओ दीकरियां (बेटीयें) मोह रै कारण सही बात नीं समझ रई है। वां आछड़ दी, सो लोवड़ी सउवाळीयों रै हाथों में आयगी। आप विना लोवड़ी, झिणकली कांनीं व्हीर होया। सत पूरौ चढियोड़ौ। मिनखों देखियौ शिलां मा धरती सूं दो वेंत अधर चाल रिया। आगे-आगे शिलां मा अर लारै भाडली रा मिनख । शिलां मां रा जैकारां साथै झिणकली पूगा ।
आगे ढाकणिया कनै पूगतांई शिलां मा झिणकली रै मिनखां नै अर राज रा मिनखों नै आंमी सांमी होयोड़ा देखिया अर हाकलौं करी – दुस्टौं रौ नास व्है – दुस्टौं रौ नास व्है ।
गुहड़ा गांम रा चारण गोमजी ओठै बैठा। वां मा री हाकलों सुणी, अर कैयौ, शिलां मा जमर करैला (आत्मोसर्ग)। देखै तौ मा रा चरण धरती सूं दो वैंत ऊपर | समझ गया सत चढियोड़ौ ।
तौई मन में व्हैम मावै नहीं। हाथ जोड़ नै अरज करी मा सत रौ धीजौ दै।
मा कड़ाई मंगाय नै हलवो वणावण तांई आटौ अर घी मंगायौ। कड़ाई में घी न्हांक नै हुकम दियौ चिता खड़कौ (चिता तैयार करौ) । अर घी आवतांई आटौ न्हांक उण कळकळता घी में आपरै हाथ सूं आटौ सेकण लागा। चेहरा ऊपर वौ रौ वौ ऊजास, आंख्यां मांय खीरा बरसै अर बाळ ऊभा । मिनखों नै तसल्ली व्हैगी कै मां सती व्हैला ।
अठी नै राज रा मिनखों नै हाकम कैयौ,” अरे जाओ रै छोकरों इण चिता नै बिखेरौ। आ चारणी यूं ईज भोपाडफी करै। अठीनै तौ हाकम रौ हुकम छूटौ नै सात हजूरिया चिता बिखेरण तांई आगे बढिया। वै सातूंई तड़ाछ खाय, हेठा ठोकांणा ।
अठी नै तौ औ मिनख हेठा ठोकांणा नै, गुहड़ा वाळै बारहठ ओकर फेर तसल्ली करण वास्तै, कै, पूरो सत्त है, कै, मा यूं इज कर रई है, गोमजी, कैयौ मा है तौ पूरो विस्वास ?
अर मां हाकल करतां बोल्या,
अरे अजे तांई विस्वास नीं आयौ । मंगावौ चाकू। मिनखों चाकू लाय हाजर कीनौ। मा तौ लेतांई चाकू, आपरै हाथों सूं आपरा दोनूं हांचळ (स्थन) वाढ (काटकर) नै चिता माथै फेंक, आप चिता माथै जाय बिराज्या। सैलां मा रै जैकारां सूं आभौ (आकास) गूंज ऊठियौ ।
इतौ दरसाव होयों पछैई, राज रै हाकम री आंख्या नीं खुली। उण मेहरों नै कैयौ, अरे मेहरों जाऔ इण चारणी नै हेटै उतारौ (नींचे उतारौ)। कोरी भोपाडफी (नाटक कर रही है) कर रही है।
मेहर नट गया। मेहर मुगर बोल्यौ, हाकमां झगड़ौ करणौ व्है तौ म्हैं त्यार हां पण चिता रै हाथ म्हे नहीं देवों। देखो कोयनीं शिलां मा रौ चैहरौ ?
आपरै हाथ सूं थण वाढेन चिता माथै न्हांकिया अर अजे तांई थांहरै अकल नीं आई? म्हे कोई आज जावां नै काल। आज सूं म्हे गांम भेळा । म्हारै राज री नौकरी नीं जोईजै (चाहिये)। अर वै झिणकली रे मिनखौं साथै आय, शिलां मारी जै जैकार करण लागा।
शिलां मा ज्यूईज चिता ऊपर बिराज्या, अकदम अग्नीं प्रकट व्ही अर लपटों ऊठण लागी। स्राप दीनों, लखा अर कोहरा रै खोखरों रौ नास होसी । जैसलमेर रै रावळ जी री ओद जासी (निरवंस रहेंगे ) ।
अबै हाकम अर राज रा मिनखौं री आंख्यां खुली। अरे गजब होया। कोहरा अर लखा रै खोखरों रा मूंहड़ा उतर गया । वै धूजण लागा। मा रै स्राप रै डर सूं वै बगना (पागल) व्है ज्यूं अठी-उठी देखण लागा। अबै कांई करां? धरती माग दै तौ मांय समा जावां । पण देर घणी व्हैगी ही।
चिता नै बिखेरण तांई पहलां सात हजूरिया गया हा वै ओठै पड़िया हा। वांनै उठावण सारुं हाकम अर उण रा मिनख गया तौ देखै के वारे मूंहड़ा सूं लोही बैह रयौ है, अर देही ऊपर कीड़ियों चढ रही है। औ दरसाव देख राज रा मिनख डर नै, ओठै सूं नाठा, सो पूगा लखों री गढी । अबै सब ओठै ऊभा धूजै । आ भूँड़ी करी ।
अठीनै हाकम रौ बेटौ जैसलमेर सूं खड़ियोड़ौ, आपरै बाप, हाकम जोरजी पुरोहित सूं मिळवा उणीज दिन लखै आवै। मारग में (रास्ते में) जांफली गांम रै पांडरा तळा ऊपर पांणी पीवा उतरियौ। तड़ाछ खाय ठोकांणौ तळा में, अर डूब नै मर गयौ । आ घटना संवत 1920 रा काती सुद 14 गुरुवार री है। तीजे दिन जैसलमेर में मां परचौ दियौ ।
रावळ रणजीतसिंह रौ दो बरस रौ कुंवर लालसिंह, सूतौ-सूतौ चिल्लाटी कर नै च्यार हाथ ऊंचो उछळ नै हेठौ ठोकांणौ सो प्रांण मुकत ( मर गया)।
अर रावळजी रा कांन ऊभा होया । ठौड़ ठौड़ सूं शिलां मा रै कोपरा समाचार आवण लागा। खोखरों में देखतां-देखतां पांच सात मरतंग व्है गया। खोखर गांम छोड़ नै नाठा।
ओ सब समाचार सुण रावळजी विचार में पड़ गया। शिलां मा रै कोप सूं छुटकारौ कीकर मिळै। कईकों (कुछ लोगों नै) सलाह दी, जतियों नै पूछौ । बुलाया जतियों नै। वां कैयौ म्हे टोटकौ करां । वां गुळी रौ छांटौ देय चिता नै अपवित्र करी । अर सत रौ असर मिट्यौ । परचा बंद होया। दस दिन तक सांती रही।
दसमें दिन आपरै बेटे सारंगजी नै सपना में आय नै हुकम दियौ ‘म्हारी चिता माथै म्हारै वंस रौ खून छांटौ, गोरी गाय रौ दूध अर गंगाजळ रौ छांटौ देवौ जद परचौ पाछौ चेतन व्हैला ।’
शिलां मा रै जेठ ( पति के बड़े भाई जेष्ठ) सतीदांनजी रा बेटा उम्मेददांन जी गळा में कटार खाय नीचै पड़िया। वांरौ खून, गंगाजळ अर गोरी गाय रै दूध री धार दी। परचा पाछा चेतन होया ।
पांच महीनों रै मांय खोखरों रा गांम खाली व्है गया। जिण गांमों रा खोखर बारठों भेला रैया वारै कांई नीं होयौ, बाकी रा आपस में कट मूंवा । मेहरां री ढांणी रा मेहर भी शिलां मा नै पूजै, अर आज वै शिलां मा री दया सूं सोरा सुखी है।
खड़ीन ढांकणियौ चारणों रै कनै रैयौ अर वौ आज भी वांरा कब्जां में है। इण खड़ीन नींचे 600 बीघा जमीन, गोचर री छूटोड़ी है जठै आज भी गायों चरै ।
आज झिणकली रा बीठू परिवार वाळों, उण ठौड़ ओक म्होटौ देवरौ बणायौ जठै स्रावण सुद 14 रै दिन हर साल म्होटौ मेळो भरीजै अर लाखों मिनख दरसण करण नै आवै । देवरा रौ नांम ई ढाकणिया धांम झिणकली है।
जैसलमेर रावळ जी नै रामसिंघोत भाटी परिवार वाळों घणाई समझाया पण रावळजी मांन्या नहीं। रावळ जी निरवंस गया। रामसिंघोत भाटी परिवार आज भी शिलां मा रा भक्त है अर सोरा सुखी है।
राजस्थानी जूनी बातां यहाँ पढे।
देश विदेश की तमाम बड़ी खबरों के लिए निहारिका टाइम्स को फॉलो करें। हमें फेसबुक पर लाइक करें और ट्विटर पर फॉलो करें। ताजा खबरों के लिए हमेशा निहारिका टाइम्स पर जाएं।