कोटा। कोटा शहर के परकोटे की तंग गलियों और प्राचीन धरोहरों के बीच बसा हुआ है श्री सिद्धेश्वर सारण गणेश मंदिर। यहां स्थापित गणेशजी की मूर्ति न केवल प्राचीन है बल्कि अपनी अनूठी विशेषताओं के कारण श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बनी हुई है। सिद्धेश्वर सारण गणेश की मूर्ति रियासतकालीन से स्थापित है। यह करीब तीन सौ साल पुरानी है। इस मंदिर में गणेश जी के साथ रिद्धी व सिद्धी भी विराजमान है। इनके अलावा यहां माता जी की प्रतिमा, पंचमुखी बालाजी तथा भैरूजी भी विराजमान है। इस मंदिर के बीचो-बीच एक पीपल का पेड़ भी है।
श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी होने के कारण पीपल का पेड़ मंदिर के अंदर की तरफ से निकलकर बाहर की तरफ निकला हुआ है। इस मंदिर की अनूठी परंपरा है। जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से मनोकामना मांगते है। उनकी इच्छा पूरी हो जाती है। यहां पीढ़ी दर पीढ़ी सेवा की जाती है। इस मंदिर का कोई ट्रस्ट नहीं है। इस मंदिर का विकास श्रद्धालुओं के सहयोग से होता आया है। रियासतकालीन धरोहर, चारों तरफ रहता था पानीपुजारी व संरक्षक राकेश गांधी ने बताया कि पहले परमानंद गांधी जी इस मंदिर की सेवा करते थे।
अब वर्तमान में मैं देख रहा हूं। इस मंदिर में विराजमान सिद्धेश्वर सारण गणेशजी की प्रतिमा करीब 300 वर्ष पुरानी मानी जाती है। इस प्राचीन मूर्ति की विशेषता यह है कि गणेशजी की सूंड बायीं ओर है और उनकी पीठ सड़क की तरफ स्थित है। मान्यता है कि यह प्रतिमा तत्कालीन राजा-महाराजाओं के समय से ही यहां स्थापित है। उस दौर में जब मंदिर चबूतरे पर बना था, तब इसके चारों ओर पानी भरा रहता था। लोग यहां स्नान करने आते और श्रद्धा से जल अर्पित करते थे।
धीरे-धीरे समय बदला, पानी सूख गया और मंदिर का स्वरूप भी बदलता चला गया। इस मंदिर की प्राचीनता आज भी बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। सुबह-शाम आरती में ओमशंकर सुमन सहयोग करते है। आस्था की अनूठी परंपरा सिद्धेश्वर सारण गणेश मंदिर की सबसे पुरानी और प्रसिद्ध परंपरा मनोकामना पूर्ति से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से यहां आकर गणेशजी से अपनी इच्छा प्रकट करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। खासकर विवाह से संबंधित मान्यताओं ने इस मंदिर की पहचान को और अधिक मजबूत किया है।
श्रद्धालुओं के अनुसार जिन युवाओं की शादी लंबे समय तक नहीं होती थी, वे यहां आकर धोक लगाते (प्रणाम करते)। जब उनकी शादी तय हो जाती और विवाह संपन्न हो जाता, तब वे अपने जीवनसाथी के साथ पुन: मंदिर आकर गणेशजी को धन्यवाद अर्पित करते और अपनी सामर्थ्य अनुसार भेंट चढ़ाते। यह परंपरा आज भी उतनी ही आस्था के साथ निभाई जा रही है।
इसलिए यह मंदिर है खास- करीब 300 साल पुराना इतिहास- गणेशजी की अनूठी प्रतिमा (पीठ सड़क की ओर, सूंड बायीं ओर)- पीपल का पेड़ जो मंदिर के अंदर से बाहर की ओर निकला हुआ है- रिद्धि-सिद्धि, माता जी, पंचमुखी बालाजी और भैरूजी की प्रतिमाएं- बिना ट्रस्ट, केवल श्रद्धालुओं के सहयोग से सेवा और विकास- मनोकामना पूर्ति और विवाह से जुड़ी प्राचीन मान्यता वर्तमान स्वरूप और निर्माण कार्य इस मंदिर में समय के साथ काफी बदलाव आया है। पहले यह केवल चबूतरे पर स्थित था, बाद में इसे ढकने के लिए टीन का शेड लगाया गया।
अब श्रद्धालुओं की संख्या और सुविधाओं को देखते हुए मंदिर का पुनर्निर्माण कार्य जारी है। इस मंदिर में लाल पत्थर भी लगाए जाएंगे, जो राजस्थान की वास्तुकला और मंदिर शैली का प्रतीक माना जाता है। पत्थर बयाना के आगे बंछी क्षेत्र से लाया जाएगा। यह पत्थर हल्के रंग का होता है और मंदिर को एक भव्य रूप प्रदान करेगा। मंदिर के बीचों-बीच एक विशाल पीपल का पेड़ उन्होंने बताया कि इस मंदिर के बीचों-बीच एक विशाल पीपल का पेड़ है। यह पेड़ किसी चमत्कार से कम नहीं, क्योंकि यह मंदिर के अंदर से निकलकर बाहर की तरफ फैला हुआ है।
स्थानीय लोगों का मानना है कि गणेशजी की कृपा से ही यह वृक्ष आज भी सुरक्षित और हरा-भरा खड़ा है। मंदिर में गणेशजी के साथ रिद्धि-सिद्धि की मूर्तियां भी विराजमान हैं। इसके अलावा माता जी, पंचमुखी बालाजी और भैरूजी भी यहां पूजे जाते हैं। मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसका कोई ट्रस्ट नहीं है। पीढ़ी दर पीढ़ी सेवा का दायित्व स्थानीय परिवारों और श्रद्धालुओं के सहयोग से चलता है। मंदिर में महाआरती सुबह 7 व शाम को 7.20 बजे महाआरती होती थी।
श्रद्धालु संतोष मराठा व मनोज सोलंकी के अनुसार कोई भी विशेष कार्यक्रम हो सबसे पहले गणेश जी न्योता दिया जाता है। इससे सभी की आस्था जुड़ी है।

