अध्यात्मिक गुरु प्रेमपाल रावत

Sabal Singh Bhati
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अध्यात्मिक गुरु प्रेमपाल रावत। आपके अनुयायी आपको महाराज जी, गुरु महाराज जी और बालयोगेश्वर के नाम से सम्बोधित करते हैं । आप एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु हैं और विश्व की सौ चुनिन्दा आध्यात्मिक शक्तियों में सम्मिलित हैं। आपका प्रभाव क्षेत्र वैसे तो पूरा भूमण्डल ही है परन्तु आपके अनुयायी (चेले, प्रेमी) पश्चिमी देशों में अधिक हैं और अब आपने अमेरिका की नागरिकता भी स्वीकार कर ली है।

श्री महाराज जी जन्म से भारतीय हैं और हरिद्वार उत्तराखण्ड निवासी एक ख्याति प्राप्त संत परिवार के सदस्य हैं। आपका जन्म 10 दिसम्बर, 1957 को हरिद्वार में श्री गुरु हंस जी महाराज के सबसे छोटे (चौथे) पुत्र के रूप में हुआ व आपकी माताजी का नाम जगत जननी माता श्री राजेश्वरी देवी था।

आपकी प्रारम्भिक शिक्षा देहरादून स्थित सेन्ट जोजफ अकादमी में सम्पन्न हुई। आपके बड़े भ्राता श्री सतपाल महाराज आध्यात्मिक एवम् राजनैतिक क्षेत्र की एक जानी मानी हस्ती हैं।
तीन वर्ष की उम्र में ही इन्होंने अपने पिताश्री के सान्निध्य में एक धार्मिक सभा को सम्बोधित किया था। जब इनकी उम्र छः वर्ष की हुई तब इनके पिता और गुरु ने इनको दीक्षित किया और आराधना की विधि सिखलाई।

अध्यात्मिक गुरु प्रेमपाल रावत

1966 में इनके पिताश्री का देवलोक गमन हो गया। प्रचलित परम्परा के अनुसार जब गुरु श्री हंस जी महाराज के उत्तराधिकारी की चर्चा हुई तब श्री बालयोगेश्वर (प्रेमपाल सिंह जी रावत) ने शोक सभा को सम्बोधित कर कहा कि उनके गुरु ( हंस जी महाराज) तो अमर हैं और वहीं पर उपस्थित हैं।

यह उद्बोधन सुनकर सभी ने इनको (प्रेमपाल रावत) उत्तराधिकारी और सत्गुरु स्वीकार कर लिया। क्योंकि ये अभी अल्प आयु के थे इसलिए इनको अपनी माताश्री और ज्येष्ठ भ्राताश्री का संरक्षण मिलता रहा। पूर्व संचित ज्ञान से विभूषित श्री बालयोगेश्वर अपने भक्तों और अनुयायियों को अपने पिता की तरह ही सम्बोधित करते रहे।

साठ के दशक में पश्चिमी देशों के बहुत से धर्मार्थी गुरु की खोज में भारत आये । जिनका सम्पर्क इनके स्थानीय अनुयायियों से हुआ । वे इनसे प्रभावित हुए और धीरे-धीरे इनके भक्त बन गये। 1970 में इन देशों के भक्तगण गुरु के दर्शनार्थ भारत आये और इण्डिया गेट पर श्री बालयोगेश्वर (12 वर्ष की उम्र ) द्वारा ‘पीस बॉम्ब’ के नाम से दिये प्रवचन को सुन भाव विभोर हो गये।

अध्यात्मिक गुरु प्रेमपाल रावत
अध्यात्मिक गुरु प्रेमपाल रावत

भक्तगणों के सुझाव पर 1970 में ये विदेश यात्रा पर निकले और ग्लासटनबरी फेयरे, लॉसएन्जेलिस, न्यूयार्क, वाशिंगटन, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका का भ्रमण किया । लोगों से मिले, उनको ईश्वर आराधना और मानसिक शान्ति और अंतरचेतना के बारे में बताया। लोगों के हृदय में आपके प्रति श्रद्धा और विश्वास पैदा हुआ। आपका संबंध और प्रेम बढ़ा।

वहाँ के निवासियों के बीच चर्चा चली कि एक 13 वर्ष का युवा ईश्वर का आभास कराने की क्षमता रखता है। उनकी ख्याति बढ़ने लगी। ये जब उसी वर्ष भारत लौटे तो करीब 300 भक्तगण हवाई मार्ग से उनके साथ यहां आये और उनके आश्रमों में रहने लगे।

अपनी भावी यात्राओं के मद्देनजर इन्होंने हवाई जहाज उड़ाना सीखा और 1972 में इनके लिए दो हवाई जहाज उपलब्ध कराये गये। साथ ही इनके रहने के लिए लन्दन, न्यूयार्क, कोलोरेडो, कैलीफॉर्निया, भारत और आस्ट्रेलिया में निवास स्थानों की व्यवस्था की गई । इसी वर्ष हंस जयन्ती के अवसर पर करीब 50,000 भक्तगण विदेशों भारत पहुंचे जिनका हवाई किराया, खाने-पीने और रहने का सम्पूर्ण खर्च भक्तगणों ने जुटाया।

श्री बालयोगेश्वर जहाँ भी जाते वहाँ अप्रत्याशित प्रचार-प्रसार देखने को मिलता है । हजारों लोगों का हुजूम उनके पीछे-पीछे जहाँ भी गये, जाता, सभी मुख्य शहरों की इमारतों और दीवारों पर पोस्टर सजाये जाते, अखबार, टी. वी. और कैमरे उनके प्रवचनों और सभाओं को कवर करते हैं।

उनकी सभाओं और रैलियों में अपार भीड़ साधारण दृश्य होता है।1973 के अन्त तक उनका मिशन 55 देशों में सक्रिय था, लाखों की तादाद में उनके अनुयायी, सैकड़ों मिशन के केन्द्र और दर्जनों में आश्रम स्थापित हो चुके थे। यह वह समय था जब मिशन सफलता के शिखर पर था ।

मई, 1974 में इन्होंने सेनडिगो-कैलीफोर्निया निवासी मैरोलिन जॉनसन से विवाह कर लिया। विदेशी महिला से विवाह से इनकी माता जी नाराज हो गईं और नतीजन पारिवारिक रिश्तों में दरार पड़ गई। 1977 में इन्होंने अमेरिका की नागरिकता स्वीकार कर ली।

अध्यात्मिक गुरु प्रेमपाल रावत
अध्यात्मिक गुरु प्रेमपाल रावत

श्री गुरु महाराज की मान्यता है कि मनुष्य जीवन का लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है। इसके लिए सच्ची श्रद्धा और विश्वास के साथ ईश्वर का चिंतन, मनन, स्मरण, आराधना और मानव सेवा अनिवार्य है। मानसिक और अन्तःकरण की शान्ति के बिना आराधना नहीं हो सकती । सन्तोष के बिना शान्ति सम्भव नहीं है।

ईश्वराभास और उसके साथ साक्षात्कार सम्भव है, परन्तु उसके लिए योग्य पात्र बनना अनिवार्य शर्त है। श्री गुरु महाराज रूढ़िवाद, धार्मिक अनुष्ठान और अंधविश्वास की कड़ी आलोचना करते हैं।उनकी मान्यता है कि ईश्वर साकार भी है और निराकार भी है। निराकार के रूप में उसकी चेतना और दिव्य ज्योति हैं ।

साकार के रूप में सत्गुरु है जिसकी कृपा और आशीर्वाद से शाश्वत शान्ति, परमानन्द और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सत्गुरु आपको अपने सामाजिक और धार्मिक दायित्वों की याद दिलाता है। विवेक और सतनाम का प्रसाद देता है और ईश्वर के साथ साक्षात्कार करने की योग्यता प्रदान करता है।

वे गुरु-शिष्य परम्परा के हिमायती हैं । जीवन दर्शन पर उनका कहना है कि सर्व प्रथम भूतकाल के प्रति आदर, वर्तमान में समस्या का समाधान ढूंढो और भविष्य के लिए विवेक पूर्ण कार्य योजना बनाओ। सच्चा धर्म परमात्मा से विशुद्ध प्रेम और उसके प्रति समर्पण की शिक्षा देता है। प्रकाश, प्यार, विवेक और शुद्धता सभी के पास उपलब्ध है, उनके द्वारा सिखलाई गई आराधना-विधि से इनको पाया जा सकता है।

गुरु महाराज को Divine Light Mission (DLM) विरासत में मिला था। 1983 में उसका नाम बदल कर Elan Vital रख दिया गया। 1983-85 के बीच इन्होंने 37 अन्तर्राष्ट्रीय शहरों, जिनमें न्यूयार्क, लन्दन, पेरिस, कुआलालमपुर, रोम, दिल्ली, सिडनी, टोक्यो, कैरेकस और लॉस एन्जेलिस शामिल हैं, में सौ कार्यक्रम रखे।

2001 में इन्होंने प्रेम रावत फाउण्डेशन की स्थापना की। इसका उद्देश्य इनके संदेश का प्रचार-प्रसार और परोपकारी संस्थाओं की आर्थिक सहायता करना है। इनका संदेश 88 देशों में प्रिन्ट और वीडियो के द्वारा प्रसारित किया जा रहा है। वर्ड पीस पर इनका कार्यक्रम टी.वी चेनल्स और डिश, नेटवर्क पर प्रसारित किया जाता है।

2007 में दो महीने की यात्रा के दौरान श्रीलंका, नेपाल और भारत में आठ लाख लोगों को 36 प्रोग्राम के जरिये सम्बोधित किया। प्रचार-प्रसार के लिए सेटेलाइट का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।

सितम्बर 2012 में मलेशिया में इनको “एशिया पैसिफिक ब्राण्ड्स फाउण्डेशन लाइफ टाईम अचीवमेन्ट अवार्ड” से सम्मानित किया गया। नौवीं यूथपीस फैस्टिवल के मौके पर इन्होंने दो लाख लोगों को दिल्ली में सम्बोधित किया।

अब जबकि इनका कार्य क्षेत्र ग्लोबल बन गया है तो इनकी वेश भूषा, रहनसहन आवागमन के साधन, भाषा, प्रचार-प्रसार के तरीकों में देश काल परिस्थिति के परिवर्तन आना स्वाभाविक है। रूढिवादी इस बदलाव को हजम नहीं कर पाते अनुरूप और इन्हीं मुद्दों पर उनकी आलोचना भी करते हैं।

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Sabal Singh Bhati is CEO and chief editor of Niharika Times