नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बिना किसी वैध दस्तावेज़ भारत में रह रही एक रूसी महिला और उसकी दो बेटियों को उनके देश वापस भेजने के फैसले को चुनौती देने वाली दायर याचिका पर विचार करने से सोमवार को इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने दोनों बेटियों का पिता होने का दावा करने वाले याचिकाकर्ता इज़राइली नागरिक ड्रोर श्लोमो गोल्डस्टीन को कड़ी फटकार लगाते हुए कई सवाल पूछे। पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील से कई सवाल करते हुए उनकी इसे “प्रचार हित याचिका” भी बताया।
पीठ ने वकील से पूछा, “कृपया हमें कोई आधिकारिक दस्तावेज़ दिखाएँ, जिससे साबित हो कि आपको पिता घोषित किया गया है। हम आपको निर्वासित करने का निर्देश क्यों न दें? जब आपके बच्चे गुफा में रह रहे थे, तब आप गोवा में क्या कर रहे थे?” इन सवालों पर वकील ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका वापस लेने का फैसला किया, जिसमें रूसी महिला और उसकी बेटियों को वापस भेजने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा गया था।
कर्नाटक के गोकर्ण की एक गुफा में बिना किसी वैध दस्तावेज़ के पाई गई एक रूसी महिला और उसके बच्चों को वापस भेजने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। रूसी नागरिक नीना कुटीना और उनके दो बेटियां 11 जुलाई को गोकर्ण के पास रामतीर्थ पहाड़ियों की एक गुफा में पाए गए थे। संबंधित अधिकारियों ने दावा किया था कि तीनों बिना किसी वैध दस्तावेज़ के लगभग दो महीने से गुफा में रह रहे थे।
दावा किया गया था कि पैसे खत्म हो जाने के बाद महिला और उनकी दोनों बेटियां गुफा में रह रहे थे। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि अपने बच्चों का पता न लगने पर उसने पिछले साल गोवा के पणजी पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। उसने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने महिला और बेटियों को वापस भेजने के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। रूसी वाणिज्य दूतावास ने कुटीना और उसकी दोनों बेटियों के लिए आपातकालीन यात्रा दस्तावेज जारी किए थे, क्योंकि उसने जल्द से जल्द रूस लौटने की इच्छा जताई थी।
