महाराष्ट्र में जंगली जानवरों के कारण हुई 105 मौतों में से अधिकांश के पीछे बाघ और तेंदुए

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मुंबई, 7 जनवरी ()। पिछले कुछ दशकों से, महाराष्ट्र के शहरी केंद्रों, विशेष रूप से मुंबई, पुणे और नासिक, और अर्ध-शहरी क्षेत्रों जैसे सतारा और विदर्भ के कुछ हिस्सों को जंगली जानवरों के रिहायशी इलाकों में जाने के खतरों से जूझना पड़ा है, जिससे मनुष्य-पशु संघर्ष अपरिहार्य हो गया है।

हाल के दिनों में, राज्य में मानव-पशु संघर्षों में वृद्धि देखी गई है, जिसमें मानव हताहतों की संख्या में वृद्धि हुई है, विशेष रूप से कंक्रीट शहरी बस्तियों में और उसके आसपास तेंदुओं के हमले बढ़ रहे हैं। जनवरी से दिसंबर 2022 तक, जंगली जीवों, मुख्य रूप से बाघों और तेंदुओं, और अन्य जंगली जावनरों द्वारा हमलों के कारण 105 लोगों की मौतें हुईं।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) महीप गुप्ता ने कहा- 2022 में, बाघों ने 77 लोगों को मार डाला और तेंदुओं ने 17 लोगों की जान ले ली- नासिक में सबसे अधिक आठ मौतें, चंद्रपुर में छह, साथ ही नागपुर, कोल्हापुर और ठाणे में एक-एक मौत हुई। हाल ही में, वन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने राज्य में पिछले तीन वर्षों में बढ़ते ग्राफ के साथ संघर्षों के आंकड़ों का खुलासा किया था- 2019-20 में, जंगली जानवरों के हमलों में 47 लोग मारे गए, 2020-21 में 80, 2021-22 में 86, और 2022 में 105 लोगों की मौत हुई।

बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के सचिव और वन्यजीव संरक्षणवादी किशोर रिथे ने कहा कि बाघों और तेंदुओं के अलावा, राज्य ने मानव-पशु संघर्ष के अन्य रूपों की रिपोर्ट की, जिसमें 2022 में गौर ने चार मनुष्यों, जंगली सूअरों और हाथियों ने दो-दो लोगों मार डाला, इसके अलावा भालू, लोमड़ियों और मगरमच्छ ने एक व्यक्ति को निशाना बनाया।

मुंबई में, संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के जंगल, आस-पास की आरे कॉलोनी, और फिल्म सिटी और आईआईटी-बी परिसरों के जंगल मुख्य तेंदुए के आकर्षण के केंद्र हैं। तेंदुओं के साथ लगभग आधा दर्जन संघर्ष हुए, यह क्षेत्र अनुमानित 60 से अधिक तेंदुओं से आबाद है, जो देश में इन चित्तीदार बड़ी बिल्लियों की सबसे बड़ी शहरी सांद्रता में से एक है। बीएनएचएस गवनिर्ंग काउंसिल के सदस्य और ऑनरेरी वाइल्डलाइफ वार्डन रोहन भाटे के अनुसार, वर्तमान में, तेंदुओं से सबसे ज्यादा खतरा पुणे के अलावा, हरे-भरे जंगलों वाले सतारा क्षेत्र और आसपास के गन्ने के खेतों में देखा जाता है।

क्रिएटिव नेचर फ्रेंड्स सोसाइटी (सीएनएफएस) नामक एनजीओ चलाने वाले भाटे ने कहा, तेंदुए के साथ लोगों की मुठभेड़ बढ़ रही है। लगभग हर दिन तेंदुए के देखे जाने/बचाव कॉल आ रहे हैं। हमने पिछले चार हफ्तों में एक दर्जन से अधिक खोए हुए शावकों को बचाया और उनकी मां के साथ फिर से मिला दिया है। वन्यजीव विशेषज्ञ और पूर्व पीसीसीएफ सुनील लिमये ने कहा कि, मनुष्य लगातार वन्यजीव क्षेत्रों में अतिक्रमण करते हैं। मानव-पशु संघर्ष को अच्छा नहीं लेकिन इतना बुरा भी नहीं करार देते हुए, उन्होंने कहा कि मनुष्यों के लिए यह जरुरी है कि वह जानवरों से उचित व्यवहार की अपेक्षा करने के बजाय जंगल में छिपे खतरों से सावधान रहें।

रिथे ने कहा- संघर्ष तब होता है जब मानव उनके क्षेत्रों में प्रवेश करता है या जानवर भोजन की तलाश में जंगलों के बाहर भटक जाते हैं..पिछले कुछ वर्षों से, कर्नाटक या ओडिशा से यहां आने वाले हाथियों के बढ़ते खतरे के बारे में चिंता है, जिससे उपजाऊ कृषि भूमि और फसलों पर भारी तबाही हो रही है।

लिमये ने समझाया- इसके अलावा, मनुष्य वन्यजीवों से अधिक से अधिक जगह हड़पते रहते हैं, जंगली जानवरों को उनके नियमित वन गलियारों का उपयोग करने से रोकते हैं या जब वह दिखाई देते हैं तो उनका पीछा भी करते हैं, जिससे परिहार्य संघर्ष होता है, अक्सर हताहतों या मौतों के साथ। भाटे ने याद किया कि, दो दशक पहले, बड़े तेंदुए के खतरे के बाद, लगभग 110 को नासिक से पकड़ा गया था, ट्रैकिंग उपकरणों के साथ टैग किया गया था, और राज्य के विभिन्न वन क्षेत्रों में छोड़ दिया गया था।

भाटे ने कहा- आश्चर्यजनक रूप से, यह पाया गया कि कुछ समय बाद, लगभग एक दर्जन अपने मूल निवास स्थान नासिक लौट आए थे! ऐसा लगता है कि तेंदुओं में होमिंग इंस्टिंक्ट होता है और वे अपने जन्म स्थान पर वापस चले जाते हैं, जिसमें गन्ने के खेतों में पैदा हुए शावक भी शामिल हैं, जो बार-बार वहां लौटते रहते हैं क्योंकि जंगलों की तुलना में आसपास बहुत सारे बड़े और छोटे शिकार होने से उन्हें आराम मिलता है।

उन्होंने कहा- यह भी पाया गया है कि शावकों के जीवित रहने की दर लगभग 40 प्रतिशत से बढ़कर 50 प्रतिशत या उससे अधिक हो रही है, मादा तेंदुआ जो पहले 2-3 शावकों को जन्म देती थी अब तीन-चार शावकों को जन्म दे रही है, जिससे जनसंख्या में इजाफा हो रहा है। राज्य के वन अधिकारियों ने कहा कि प्राथमिक प्रतिक्रिया दल हैं जो लोगों को वन्यजीव आंदोलनों के दौरान, या अंधेरा होने के बाद जंगलों में प्रवेश करने के खिलाफ चेतावनी देते हैं, जब बड़ी बिल्लियां हमेशा शिकार पर होती हैं।

यवतमाल के एक वन अधिकारी ने कहा, किसी भी त्रासदी के मामले में, रैपिड रेस्क्यू टीमें हैं जिनका स्पष्ट उद्देश्य मनुष्यों और जानवरों दोनों को बचाना है, हालांकि यह हमेशा संभव नहीं होता है। विशेषज्ञ नियमित रूप से मानव-जीव संघर्षों को कम करने के लिए चौतरफा दीर्घकालिक रणनीति के लिए अपील करते हैं, जिसमें मनुष्यों पर जानवरों की जरूरतों का जवाब देने और एक-दूसरे के क्षेत्रों में टकराव से बचने का दायित्व होता है।

2022 तक बड़े और छोटे जंगली जानवरों को अधिक सांस लेने की जगह मिलमे की उम्मीद है, महाराष्ट्र ने राज्य भर में 52 वन्यजीव अभयारण्यों/रिजर्व की घोषणा की है और जल्द ही सात और जोड़ने की योजना है। मुनगंटीवार ने कहा- वनस्पतियों और जीवों को सुरक्षित करने के लिए संरक्षित क्षेत्रों के भौतिक क्षेत्र को 13,000 वर्ग किमी तक बढ़ाया है, विशेष रूप से राष्ट्रीय उद्यानों/अभयारण्यों/रिजर्व या उन्हें जोड़ने वाले महत्वपूर्ण जंगल गलियारों से सटे क्षेत्रों में।

पिछले साल एक प्रशंसनीय कदम में, महाराष्ट्र सरकार ने सभी वन्यजीव हमलों के पीड़ितों, मनुष्यों के साथ-साथ उनके मवेशियों या पक्षियों और खेत जानवरों को दिए जाने वाले मुआवजे में बढ़ोतरी की, जो आजीविका का एक स्रोत हैं।

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Sabal Singh Bhati is CEO and chief editor of Niharika Times
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