उत्तराखंड सरकार अब युवाओं को उनकी रुचि के रोजगार से जोड़ने और राज्य में रोजगार सृजन को गति देने के लिए एक नई पहल करने जा रही है। राज्य में पहली बार कौशल जनगणना कराई जाएगी। इसका उद्देश्य युवाओं की शिक्षा, कौशल और उद्योगों की जरूरतों के बीच सामंजस्य स्थापित करना है। कौशल विकास समिति ने इस दिशा में तैयारियां शुरू कर दी हैं।
प्रदेश में रोजगार और स्वरोजगार की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए सरकार यह जानना चाहती है कि किन-किन क्षेत्रों में कुशल जनशक्ति की सबसे ज्यादा मांग है और युवाओं की रुचि किस तरह के कौशल में है। फिलहाल देश में केवल आंध्र प्रदेश के मंगलगिरी विधानसभा और थुल्लूर मंडल में कौशल जनगणना का पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है। उत्तराखंड इस तरह की जनगणना कराने वाला देश का दूसरा राज्य होगा।
कौशल जनगणना के नोडल अधिकारी पंकज कुमार ने बताया कि शासन से इसकी अनुमति मिल चुकी है और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करने के लिए कंसलटेंसी के चयन की प्रक्रिया चल रही है। इसके बाद जनगणना की रूपरेखा तय की जाएगी। युवाओं की शिक्षा, कौशल और उद्योगों की आवश्यकताओं का डाटा एकत्र किया जाएगा। इस आधार पर प्रत्येक व्यक्ति को एक “कौशल आईडी” दी जाएगी, जो उसके हुनर और क्षमता को दर्शाएगी। सरकार इस जनगणना से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग कौशल अंतराल (स्किल गैप) को दूर करने और युवाओं को उद्योगों की जरूरतों के अनुरूप प्रशिक्षण देने में करेगी।
इससे न केवल युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, बल्कि प्रदेश में उद्योगों को प्रशिक्षित कार्मिक भी उपलब्ध हो सकेंगे। डाटा संग्रहण की प्रक्रिया ऑनलाइन या ऑफलाइन किस माध्यम से होगी, इस पर अभी निर्णय होना बाकी है। कौशल जनगणना के कई लाभ होंगे — इससे सरकार को राज्य में मौजूद कौशल का समग्र मूल्यांकन करने, नीतियां बनाने और शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने में मदद मिलेगी।
आंध्र प्रदेश में यह जनगणना दो चरणों में चल रही है — पहले चरण में कंपनियों की कौशल जरूरतें और दूसरे में 15 से 59 वर्ष आयु वर्ग के लोगों के कौशल व शिक्षा से जुड़ा डाटा एकत्र किया जा रहा है। उत्तराखंड भी इसी मॉडल पर काम करेगा, जिससे युवाओं को उनकी क्षमता के अनुरूप प्रशिक्षण और रोजगार दिलाने में आसानी होगी।
