हनुमान चौराहा कहाँ है?

निहारिका टाइम्स
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हनुमान चौराहा कहाँ है?

जिला कलेक्टर के कार्यालय से 400 कदम दूर, जिला कलेक्टर के आवास से 450 कदम दूर, पुलिस अधीक्षक आवास से 500 कदम दूर, जिला एवं सत्र न्यायालय से 400 कदम दूर, पुलिस थाना से 100 कदम दूर, बिजली घर से 400 कदम दूर, जवाहिर चिकित्सालय से 100 कदम दूर, सबसे बड़े हाईस्कूल से 100 कदम दूर, पेट्रोल पंप से 20 कदम दूर, हनुमानजी के मंदिर से 10 कदम दूर है।

वहीं थोड़ा दाएं बाएं देखेंगे तो एक तरफ राजमहल है, जहाँ अभी भी राजपरिवार के लोग रहते हैं। पास में ही माहेश्वरी समाज की गोल बिल्डिंग हैं। जिला पुस्तकालय है, खादी भंडार का गाँधी दर्शन एम्पोरियम है। गांधीजी की एक मूर्ति है, बड़े से स्तम्भ पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहरता है। दूसरी तरफ भाटिया बगेची है, विभिन्न ट्रेवल एजेंसियों के कार्यालय हैं, गीता आश्रम है, आदर्श विद्या मंदिर है, विभिन्न लेबोरेट्री और बहुत सारे मेडिकल स्टोर है।

एक तरफ शहर के सबसे बड़े पार्क का गेट खुलता है, दूसरी तरफ पूनमसिंह स्टेडियम का प्रवेश द्वार है। यहीं प्रमुख पार्टियों के कार्यालय, वकीलों के अड्डे, कोचिंग, लायब्रेरी, बड़े गोदाम, प्रमुख पत्रकार, हेडपोस्टोफ़िस है, जलदाय विभाग का कार्यालय है। पंचायत समिति सम का मुख्यालय है। थोड़ा आगे अमरसागर प्रोल है, गाँधी चौक, पुष्करणा भवन, गणेश मंदिर, बैंक ऑफ बड़ौदा, एम्पोरियम, हवेलियां, होटल, रेस्टोरेंट, हजूरी सेवा सदन, चेनपुरा, मैनपुरा, बहुत कुछ है।

जैसलमेर जिले का मस्तिष्क है हनुमान चौराहा।

चारों तरफ जो दुकानें हैं, उनमें सभी जाति वालों का रोजगार चलता है। सिंधी, नाई, धोबी, लुहार, दर्जी, माली, हजूरी, राजपूत, कुम्हार, भाटिया, ब्राह्मण, माहेश्वरी, मेघवाल, भील, हर वह समाज जो जैसलमेर में रहता है, किसी न किसी का कोई ऑफिस या दुकान जरूर है। ठेला, रेहड़ी, पान की केबिन, चाय वाले, आमलेट, चाउमीन, शर्बत, गोलगप्पा, जूस, आइसक्रीम सबके काउंटर हैं। उस हनुमान चौराहा पर दिन दहाड़े, खुले आम, छाती ठोंककर तोड़फोड़ करना, धमकी देना, यह कोई संयोग या शरारत नहीं, एक प्रयोग है।

आपको अहसास कराया जा रहा है कि हम हैं और हम क्या कर सकते हैं?
उदयपुर, जोधपुर, पोकरण, बाड़मेर सब जगह पैटर्न एक ही है। कोई भी बहाना लेकर, उस मुद्दे से आपको मतलब है या नहीं, विचार किये बिना आक्रामक होकर भय का संचार करना इसका उद्देश्य है। ये राजनेता, पुलिस, प्रशासन, अपनी अपनी जाति के ठेकेदारों के रहते हुए भी आप अनाथ हैं।

आज भी कुछ लोग अपनी जाति का नाम लेकर, उसके ठेकेदार बनकर शरारती तत्त्वों से चिपक रहे हैं, वे किले के ऊपर या शहर के भीतरी भागों में रहते हैं, बड़े अफसर रील्स बनाने और सेल्फियों में व्यस्त हैं, और सोचते हैं कि जो आग भड़क रही है उसकी आंच उन तक कभी नहीं आएगी, सोच लें कि वे नहीं तो उनके परिवार के सदस्य, अथवा उनके ही कोई सम्बन्धी, सबको इस चौराहे से गुजरना होता है और कभी न कभी चपेट में जरूर आएंगे।

हमें यह सीख देने वाले कि “आप तो लोगों को भड़काते हैं!” लो जी हम तो कहीं पिक्चर में थे ही नहीं, ऐसा कोई मुद्दा भी नहीं था जिससे हिंसक हुआ जाए, सभी जातियों के ठेकेदार और बड़े से बड़े अधिकारी वहीँ आसपास थे, लेकिन पहचान लीजिए कि आग कैसे लगती है?

खेल कैसे होता है? कोई चूं तक नहीं कर पाता, और खेल हो जाता है। आपकी सुरक्षा का आश्वासन देने वाला मिथ्या कवच तड़क कर बिखर जाता है। 40-50 लड़कों का झुंड सबको औकात दिखाकर चला जाता है और आप ठगे से रह जाते हैं।

आज, जबकि लोकतंत्र है, कोई कहीं भी विचरण कर सकता है, और 400-500 लोग इकट्ठा करना कोई बड़ी बात नहीं, यदि इस तरह से आते हैं और आक्रामक, हिंसक होते हैं तो सोचिए आपका अब तक का चिंतन, जातीय दुराग्रह, धन कमाने की पिपासा, पड़ोस में जलती आग, आप कितने बेखबर हैं? आप कितने भोले हैं? आप किन कल्पित मसीहाओं के भरोसे जिंदा हैं? आपको कितना मूर्ख बनाया जा रहा है?

सच यह है कि ये सब डरते हैं। इनमें से किसी में भी समस्या को यथारूप देखने का साहस नहीं। ये समस्या का वर्णन भी नहीं कर सकते। मुझे बताइये, वह कौनसा घर, गली, गांव है जहाँ आप सुरक्षित हैं? जब तक आप समस्या को पहचानते नहीं, आप सुरक्षित नहीं है।

लेखक

- लालू सिंह सोढ़ा, जैसलमेर।
– लालू सिंह सोढ़ा, जैसलमेर।

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