राजस्थान के छत्तीस राजकुल (36 राजकुल)

Kheem Singh Bhati
76 Min Read

21. जेठवा (जेटवा) अथवा कमरी- (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – यह एक प्राचीन जाति है और इतिहासकारों ने इस जाति को राजपूत माना है। परन्तु झाला लोगों की तरह इस जाति के लोग भी सौराष्ट्र के बाहर उल्लेखनीय प्रसिद्धि प्राप्त नहीं कर पाये। इस जाति का मुख्य स्थान पोरबन्दर है और इसका राजा राणा कहलाता है। पुराने समय में इसकी राजधानी गूमली थी। वहाँ के भग्नावशेषों से उस राज्य के वैभव की जानकारी मिलती है। वहाँ की शिल्पकला यूरोप की शिल्पकला के समान है। जेठवा के भाटों के अनुसार वहाँ 130 राजाओं ने शासन किया । प्राप्त लेखों से पता चलता है कि यहाँ के एक राजा का विवाह दिल्ली के तोमर राजा के यहाँ हुआ था। उस समय जेठवा वंश ‘कमर’ वंश के नाम से पुकारा जाता था। बारहवीं सदी में उत्तर से सेहनकमर नामक राजा ने आक्रमण करके गूमली के राजा को खदेड़ दिया था। इसके बाद से कमर वंश, जेठवा वंश के नाम से पुकारा जाने लगा। शायद जेठवा वंश के लोग सीथियन वंश के हों। इस वंश का सम्बन्ध भारत की प्राचीन जातियों के साथ जाहिर नहीं होता। ऐसा लगता है कि यह वंश एशिया की प्रसिद्ध जाति किमेरी अथवा यूरोप की किम्ब्री जाति की शाखा है। वैसे ये लोग अपने-आपको प्रसिद्ध बानर हनुमान के वंशज मानते हैं और इसके समर्थन में अपने राजाओं की लम्बी पीठ की हड्डी का उदाहरण देते हैं।

22. गोहिल – (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – एक समय में ये लोग बड़े प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित हुए थे। सबसे पहले ये लोग मारवाड़ में लूनी नदी के किनारे जूना खेड़गढ़ में रहते थे। उन्होंने यह स्थान खेरवा नामक भील सरदार को परास्त करके प्राप्त किया था। बाद में राठौड़ों ने उन्हें इस स्थान से खदेड़ दिया। वहाँ से खदेड़े जाने के बाद ये लोग सौराष्ट्र की तरफ चले गये और पीरमगढ़ में रहने लगे।

यहाँ से उनकी एक शाखा बगवा में जा बसी और इस शाखा के राजा ने वहाँ के नन्दननगर (नान्दोद) के राजा की लड़की से विवाह किया और बाद में उसने अपने ससुर के राज्य पर अधिकार कर लिया। सोमपाल से नरसिंह तक- जो नान्दोली का वर्तमान राजा है, 27 पीढ़ी मानी जाती हैं। दूसरी शाखा सिहोर में जा बसी, जहाँ उसने भावनगर और गोगो नगर बसाये। भावनगर माही की खाड़ी पर गोहिलों के रहने का स्थान है और उन्हीं लोगों के नाम पर सौराष्ट्र का पूर्वी क्षेत्र गोहिलवाड़ा कहलाता है। यह वंश अपने आप को सूर्यवंशी कहता है, परन्तु इसका प्रमुख कार्य व्यवसाय है।

23. सर्व्य अथवा सरिअस्प- (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – प्राचीनकाल में इस वंश की प्रतिष्ठा का पता चलता है परन्तु वर्तमान में उन लोगों का केवल नाम ही शेष रह गया है। भाट लोग इन्हें क्षत्रिय मानते है।

24. सिलार अथवा सुलार- (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – इस जाति के सम्बन्ध में विशेष जानकारी नहीं मिलती। लार जाति किसी समय में सौराष्ट्र में निवास करती थी। अनहिलवाड़ा के इतिहास से पता चलता है कि सिद्धराज जयसिंह ने इन लोगों को अपने राज्य से निष्कासित कर दिया था। इसलिए ऐसा लगता है कि सिलार अथवा सुलार, लार जाति ही थी। ‘कुमारपाल चरित्र’ में इस जाति को राजवंशी लिखा है परन्तु अब यह जाति वैश्यों में मानी जाती है और इस जाति के लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं। उसकी 84 शाखाएँ हैं जिनमें एक लार भी है। इन 84 शाखाओं में से
कुछ के राजपूतों से निकलने के उल्लेख भी पाये जाते हैं।

25. डाबी (दाबी ) – (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – एक समय यह जाति सौराष्ट्र में प्रसिद्ध थी, परन्तु आजकल इन लोगों का कोई विशेष वृत्तान्त देखने में नहीं आता। इनकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी नहीं मिल पाती। किसी-किसी भाट ने इन लोगों को यदुकुल की शाखा कहकर वर्णन किया है, परन्तु इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता।

26. गौड़- (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – एक समय में यह जाति राजस्थान में सम्मान और प्रसिद्धि को प्राप्त हुई थी, परन्तु विशेष प्रतिष्ठा और प्रभुता प्राप्त न कर सकी। बंगाल के प्राचीन राजा इसी जाति के थे और उन्हीं के नाम से उनकी राजधानी का नाम लखनौती पड़ा। प्राचीन भट्टग्रन्थों में इन लोगों को ‘अजमेर के गौड़’ कहा गया है, जिससे अनुमान लगाया जाता है कि चौहानों के पूर्व ये लोग इस क्षेत्र में प्रतिष्ठित थे। कुछ के अनुसार इन लोगों ने पृथ्वीराज चौहान की सहायता की थी। 1809 ई. में सिन्धिया ने गौड़वंश के अधिकारों को छीन लिया था। इस प्रकार की थोड़ी-बहुत बातों के अलावा इन लोगों के बारे में विशेष जानकारी नहीं मिलती।

27. डोङ अथवा डोडा ( दोदा ) (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – यद्यपि अनेक भट्टग्रन्थों में इस वंश के नाम का उल्लेख मिलता है, परन्तु इससे अधिक कोई जानकारी नहीं मिलती।

28. गेहरवाल ( घरवाल ) – (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – इस जाति को राजस्थान के लोग राजपूत मानने को तैयार नहीं होते, परन्तु वीरता में ये लोग राजपूतों के समान थे। शायद इसीलिए इन्हें 36 राजकुलों में स्थान प्राप्त हो पाया। इस जाति का मूल स्थान काशी का प्राचीन राज्य है। इस जाति के प्राचीन राजाओं में किसी खोरतजदेव का उल्लेख मिलता है, जिसकी सातवीं पीढ़ी में जेसन्द हुआ। जेसन्द ने विन्ध्यावासिनी देवी के स्थान पर एक यज्ञ किया तथा ‘बुन्देला’ की उपाधि धारण की। उसी के पीछे बुन्देलखण्ड प्रदेश का नाम प्रसिद्ध है। इस प्रदेश में कालिंजर, मोहिनी, महोबा जैसे नगर हैं।

29. चन्देल (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) –  ये लोग बुन्देलखण्ड के प्राचीन निवासी थे और राजस्थान के 36 राजवंशों में इनको भी स्थान प्राप्त था। बारहवीं सदी में ये लोग अपनी वीरता के लिए विशेष प्रसिद्ध रहे। उस समय में इनके अधिकार में यमुना और नर्बदा नदियों के बीच का वह सम्पूर्ण क्षेत्र था, जिस पर अब बुन्देलों और बघेलों का अधिकार है। पृथ्वीराज के साथ लड़े गये युद्ध में वे लोग बुरी तरह से पराजित हुए और इस पराजय के बाद गहरवाल लोगों ने उनके राज्य को जीतना शुरू कर दिया।
अकबर के समय से लेकर गुगलों के पतन तक बुन्देलों ने सभी प्रसिद्ध युद्धों में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया था। बुन्देला राज्यों में ओरछा के राज्य ने विशेष प्रसिद्धि अर्जित की। वर्तमान में बुन्देला वंश के लोगों की संख्या अधिक है। गेहरवाल लोग उनके
निवास स्थानों तक ही सीमित हैं।

30. बड़गूजर (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – भाट लोग इन्हें सूर्यवंशी कहते हैं और ये लोग अपने-आपको भगवान् श्रीराम के पुत्र लव के वंशज मानते हैं। इन लोगों का राज्य ढूंढाड (जयपुर-अलवर) में था और माचेड़ी राज्य में राजौर का पहाड़ी किला उनकी राजधानी था। 18 राजगढ़ और अलवर भी उनके राज्य में सम्मिलित थे। कछवाहों ने उन पर आक्रमण कर उन्हें वहाँ से भगा दिया। इसके बाद इस वंश के कुछ लोगों ने गंगा के किनारे पर रहना शुरू कर दिया और वहाँ पर उन्होंने अनूपशहर बसाया।

31. सेंगर (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – इसके बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है। इस वंश को कभी प्रसिद्धि नहीं मिली। यमुना के किनारे स्थित जगमोहनपुर उनका एकमात्र राज्य है।

32. सीकरवाल (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – इस वंश को भी प्रसिद्धि नहीं मिल पाई। चम्बल के किनारे यदुवाटी से मिला हुआ एक छोटा-सा क्षेत्र, जो वर्तमान में ग्वालियर राज्य के अन्तर्गत है, इसका मुख्य स्थान है। यह सीकड़वाड़ कहलाता है।

33. बैस (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – इस वंश की गणना भी 36 राजवंशों में की जाती है। यह वंश अनेक शाखाओं में विभक्त है और गंगा-जमुना का मध्यवर्ती क्षेत्र जो बैसवाड़ा कहलाता है, उसमें इस वंश के अधिकांश लोग बसे हुए हैं।

34. द्राहिया (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) –  यह एक प्राचीन जाति है और पुराने समय में ये लोग सिन्धु के किनारे, सतलज के संगम के पास आबाद थे। इनकी गणना भी 36 राजकुलों में की जाती है, परन्तु वर्तमान में ये लोग कहीं नहीं पाये जाते। जैसलमेर के भट्टग्रन्थ में इस जाति का उल्लेख मिलता है।

35. जोहिया (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – इस जाति के लोग दाहियों के समीप ही आबाद थे और अब इस जाति के लोगों का अस्तित्व लगभग समाप्त हो चुका है।

36. मोहिल (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – भट्ट लोगों के काव्य ग्रन्थों से केवल इतनी जानकारी मिलती है कि इनकी गणना 36 राजवंशों में की जाती थी और राठौड़ों के पूर्व ये लोग बीकानेर क्षेत्र में आबाद थे। बीकानेर राज्य की प्रतिष्ठा करने वाले राठौड़ लोगों ने उन्हें इस क्षेत्र से परास्त करके खदेड़ दिया था।

37/38/39. मालण, मालाणी और मल्लिया नाम की जातियों का अस्तित्व अब समाप्त हो चुका है।

40. निकुम्प- (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – सभी वंशावलियों में इस वंश की प्रसिद्धि का तो उल्लेख मिलता है परन्तु इसके बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती। केवल इतना पता चलता है कि गुहिलोतों के पहले इस वंश का माण्डलगढ़ पर अधिकार था।

41. राजपाली- (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – भट्टग्रन्थों में इस वंश का उल्लेख राजपालिक तथा पाल के नाम से किया गया है, परन्तु इसके बारे में भी विशेष जानकारी नहीं मिलती। कुछ के अनुसार वे लोग सौराष्ट्र में रहते थे और सभी प्रकार से सीथियन प्रतीत होते थे। सीथियन से उनकी उत्पत्ति के कुछ और प्रमाण भी मिलते हैं। राजपाली नाम से प्रतीत होता है कि यह जाति प्राचीन पालि जाति की एक शाखा के सिवाय और कुछ न थी।

42. दाहिर अथवा दाहिरिया- (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – केवल ‘कुमारपाल चरित्र’ के आधार पर इस वंश की गणना 36 राजवंशों में की जा सकती है। अन्य साधनों से इस वंश के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती। केवल इतना पता चलता है कि चित्तौड़ पर मुसलमानों के पहले आक्रमण के समय जो राजपूत सरदार चित्तौड़ की रक्षा के लिए वहाँ गये थे, उनमें राजा दाहिर नामक एक सरदार भी था। सम्भवत: यह दाहिर दाहिरिया वंश का रहा हो। दाहिमा – एक समय इस राजकुल ने अपनी शूरवीरता के लिए काफी प्रतिष्ठा प्राप्त की थी, लेकिन वह प्रतिष्ठा न जाने कब और कैसे लोप हो गई, इसकी जानकारी नहीं मिलती।

बयाना का सुप्रसिद्ध दुर्ग इस वंश के अधिकार में था और दाहिमा पृथ्वीराज के करद् सामन्त के रूप में शासन करते थे। पृथ्वीराज चौहान के समय इस वंश के तीन भाई उच्च पदों पर नियुक्त थे। सबसे बड़ा भाई पृथ्वीराज का मन्त्री था और किसी ईर्ष्यावश मारा गया। दूसरा भाई लाहौर में एक सैनिक पद पर नियुक्त था। तीसरा भाई चामुण्डराय पृथ्वीराज का सेनापति था। मुलिम इतिहासकारों ने भी दाहिमा चामुण्डराय की वीरता को स्वीकार किया है। 19 उनमें से एक ने लिखा है कि उसकी खौफनाक तलवार से शहाबुद्दीन युद्ध में मारे जाने की स्थिति में पहुँच गया था। महाकवि चन्द ने लिखा है कि पृथ्वीराज ने चामुण्डराय की बहिन से विवाह किया था और उससे उसे रणजीतसिंह (रैणसी) नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। दिल्ली पर मुसलमानों के अधिकार होने के पूर्व ही रैणसी की मृत्यु हो गई थी। चौहानों के पतन के साथ ही दाहिमा वंश भी नष्ट हो गया।

43. जंगलों में रहने वाली जातियाँ- (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – बागरी, मेर, काबा, मीना, भील, सेरिया (सहरिया), थोरी, खांगर, गौंड़, भाड़, जँवर और सरूद।

44. कृषक और चरवाहा जातियाँ- (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – अभीर अथवा अहीर, ग्वाला, कुर्मी, कुलम्बी, गूजर और जाट ।

45. व्यवसायिक चौरासी जातियाँ – (राजस्थान के छत्तीस राजकुल) – श्री श्रीमाल, श्रीमाल, ओसवाल, बगैरवाल, डौंडू, पुष्करवाल, मेरतावाल, हर्सोरूह, सुरूरवाल, पल्लीवाल, भम्बू, खण्डेलवाल, केदरवाल, डीसावाल, गूजरवाल, सोहरवाल, अग्गरवाल, जाइलवाल, मानतवाल, कजोटीवाल, कोर्टवाल, चेत्रवाल, सोनी, सोजतवाल, नागरमोड, जल्हेरा, लाड, कपोल, खेरता, दसोरा, बरूड़ी, बम्बरवाल, नागद्रा, करबेरा, भटेवरा, मेवाड़ा, नरसिंहपुरा, खतेरवाल, पंचमवाल, हुनरवाल, सरकैरा, वैश्य, स्तुखी, कम्बोवाल, जीरागवाल, भगेलवाल, ओरचितवाल, बामणवाल, श्रीगौड़, ठाकुरवाल, बालमीवाल, टिपोरा, टीलोना, अतबर्गी, लादिसका, बदनोरा, खींचा, गुसोरा, बाओसर, जाइमा, पदमोरा, मेहेरिया, ढाकरवाल, मंगौरा, गोयलवाल, चीतोड़ा, मौहरवाल, काकलिया, भारेजा, अन्दोरा, साचोरा, भुंगरवाल, मन्दइलू, ब्रामणिया, बागड़िया, डींजोरिया, बोरवाल, सोरबिया, नफाग और नागौरा। (दो नाम अज्ञात)।

नोट – यह जानकारी कर्नल जेम्स टोड द्वारा लिखित ‘राजस्थान का इतिहास’ नामक किताब से लई गई है। 

देश विदेश की तमाम बड़ी खबरों के लिए निहारिका टाइम्स को फॉलो करें। हमें फेसबुक पर लाइक करें और ट्विटर पर फॉलो करें। ताजा खबरों के लिए हमेशा निहारिका टाइम्स पर जाएं।

Share This Article
kheem singh Bhati is a author of niharika times web portal, join me on facebook - https://www.facebook.com/ksbmr