गौरव की बंद आंखों में चमक रही गोल्ड की रोशनी

IANS
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मेरठ, 25 सितंबर (आईएएनएस)। गौरव आंखों से देख नहीं सकते। लेकिन वे देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने का सपना देखते हैं। पांच ऑपरेशन होने के बाद भी उनकी आंखों की रोशनी वापस नहीं आ सकी। इसके बावजूद उनकी खेलने की लगन कम नहीं हुई। वह रेस और लॉन्ग जंप में देश को गोल्ड दिलाने की चाहत लेकर अभ्यास कर रहे हैं। उनकी बंद आंखों में गोल्ड मेडल की रोशनी साफ-साफ चमक रही है।

यूपी के मेरठ के सिसौली के निवासी गौरव कहते हैं कि 12 वर्ष की उम्र में वह अपनी आंखों की रोशनी खो बैठे थे। उन्होंने बताया कि मिकी माउस का खेल खेलते समय उनकी आंखों में इंफेक्शन हो गया, तभी से उनकी रोशनी चली गयी। गौरव ने बताया कि दिल्ली के वेन्यू आई संस्थान से वह पांच बार ऑपरेशन करा चुके हैं लेकिन उनकी रोशनी वापस नहीं आ सकी।

गौरव ने बताया कि वे बचपन से देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल दिलाने का सपना देख रहे हैं। इस सपने को साकार करने के लिए वे स्टेडियम में लागतार अभ्यास कर रहे हैं। पैरा एथलीट गौरव कहते हैं कि उनकी आंखों की रोशनी कभी उनके रास्ते में बाधा नहीं बन सकी। वे स्नातक तक की पढ़ाई भी पूरी कर चुके हैं। उनके पिता सब्जी बेचते हैं। उनके एक भाई और बहन भी आंखों की रोशनी खो चुके हैं। हालांकि, गौरव के एक छोटे भाई अभय उनकी प्रैक्टिस में अभी लाठी बने हुए हैं। गौरव बताते हैं कि उनका छोटा भाई हर रोज हाथ पकड़ कर उनके साथ दौड़ता है। इसके अलावा लांग जम्प में कदम बताने में भी मदद करता है।

गौरव ने बताया कि अभी तक वे 400 मीटर की रेस में प्रदेश के लिए मेडल जीत चुके हैं। लेकिन गौरव की समस्या उनकी आर्थिक तंगी है जो उनके सपनों को साकार करने में बाधा बन रही है। गौरव चाहते हैं कि सरकार उनकी मदद करे, जिससे वे अपनी प्रैक्टिस को और अच्छे ढंग से करते हुए देश के लिए मेडल जीत सकें।

गौरव के परिवार में माता-पिता, दो बहनें और चार भाई हैं। जिनमें से तीन लोगों की आंखों की रोशनी नहीं हैं। गौरव के पिता अपने बेटे को आगे बढ़ाने की पूरी कोशिश में लगे रहते हैं। उनके पिता कहते हैं कि हमारा बेटा होनहार है, बस आंखों से वह अब संसार को नहीं देख सकता लेकिन उसका हौसला इतना मजबूत है कि उसने कभी आंखे न होने का अहसास भी नहीं दिलाया है।

गौरव ने बताया कि उनके अभ्यास में उनके कोच गौरव त्यागी बहुत मदद करते हैं और उनसे जो हो सकता है वो सहायता भी करते हैं। वहीं, कोच गौरव त्यागी बताते हैं कि, गौरव हमारे पास 2018 की शुरूआत से आ रहा है। कैलाश प्रकाश स्टेडियम में यह अभ्यास करता है। पहले मैं इसको पांच किमी की रेस का अभ्यास कराता था। लेकिन परेशानी हुई कि इनके साथ दौड़ने के इससे अच्छा धावक चाहिए होता है। मैंने कई बार कुछ लोगों को लगाया लेकिन वे यह सोच कर कन्नी कटने लगे कि कहीं इनके चक्कर में हमारा भविष्य न खराब हो जाये। फिर इसके एक छोटे भाई को तैयार किया, लेकिन उसकी उम्र बहुत छोटी है, उसे ज्यादा मेहनत करवाना उचित नहीं लगा तो इसे मैं अभी लांग जम्प का ही अभ्यास करा रहा हूं।

उन्होंने बताया कि लांग जम्प में किसी सहयोगी की जरूरत नहीं होती है। 15 स्टेप पर टेकऑफ करने के बाद यह जम्प ले लेता है। कोरोना के बाद इसे बस वाले बैठाने से मना करते थे। बस नहीं रोकते थे। फिर अधिकारियों से बात करने पर समस्या का निदान हुआ। मेरठ से 25 किमी दूर इसका गांव सिसौली पड़ता है। अभी इसका छोटा भाई अभय इसको लेकर आता है। यह हर रोज अभ्यास के लिए सुबह चार बजे आ जाता है।

गौरव के कोच ने कहा कि इस खिलाड़ी के जुनून को देखते हुए अगर इसकी मदद हो जाए तो यह निश्चित ही देश के लिए मेडल जीत सकता है। गौरव ने अपनी मेहनत और लगन के दम पर स्टेट लेवल की एक प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल हासिल किया है। इसके अलावा वह राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी हिस्सा ले चुका है।

कोच बताते हैं कि अभी वह 20 से 25 पैरा एथिलीट्स को रोजाना अभ्यास करा रहे हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स में देश को सिल्वर मेडल दिलाने वाली वॉक रेसर प्रियंका गोस्वामी को भी गौरव त्यागी ने ही प्रशिक्षण दिया है।

आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

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