रामकृष्ण शारदा मिशन की चौथी अध्यक्ष प्रव्रजिका भक्तिप्राण का निधन

Sabal Singh Bhati
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कोलकाता, 12 दिसंबर ()। शारदा मठ और रामकृष्ण शारदा मिशन की चौथी अध्यक्ष प्रव्रजिका भक्तिप्राण का रविवार देर रात एक अस्पताल में निधन हो गया। वह 102 वर्ष की थी।

उनके पार्थिव शरीर को सोमवार सुबह शारदा मठ ले जाया जा रहा है, जहां उनके अनुयायी उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि देंगे।

भक्तिप्राण, महिला शिक्षा और सशक्तिकरण और समाज और मानवता की सेवा के लिए समर्पित थी।

मिशन के अधिकारियों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, प्रव्रजिका भक्तिप्राण को 7 दिसंबर को दक्षिण कोलकाता में मिशन द्वारा संचालित अस्पताल रामकृष्ण मिशन सेवा प्रतिष्ठान में भर्ती कराया गया था।

रविवार की रात को, पहले उनके पार्थिव शरीर को रामकृष्ण शारदा मिशन मातृ भवन अस्पताल में लाया गया, जो मिशन द्वारा संचालित एक विशेष प्रसूति अस्पताल है, जहां उन्होंने श्री शारदा मठ और रामकृष्ण शारदा मिशन के अध्यक्ष की कुर्सी संभालने से पहले सचिव के रूप में कई वर्षों तक सेवा की थी।

उनके कार्यकाल के दौरान, रामकृष्ण शारदा मिशन मातृ भवन अस्पताल को आधुनिक सुविधाओं और तकनीकों के साथ 100 बिस्तरों वाले प्रसूति अस्पताल के रूप में अपग्रेड किया गया था।

तेज बुखार और फेफड़ों में संक्रमण की शिकायत के बाद प्रव्रजिका भक्तिप्राण को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें रामकृष्ण मिशन सेवा प्रतिष्ठान के आईसीयू में भर्ती कराया गया था।

मिशन के साथी साधुओं और ननों के साथ-साथ लाखों भक्तों के बीच बोरो मां के रूप में लोकप्रिय, प्रव्रजिका भक्तिप्राण ने अप्रैल 2009 में श्री शारदा मठ और रामकृष्ण शारदा मिशन के चौथे अध्यक्ष की कुर्सी संभाली।

उनका जन्म 1920 में कोलकाता में हुआ था। उनका पूर्व-मठवासी नाम कल्याणी बनर्जी था। बचपन से ही वह आध्यात्मिक गतिविधियों की ओर आकर्षित थीं, जिसने उन्हें श्री शारदा मठ और रामकृष्ण शारदा मिशन की गतिविधियों से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। श्री श्री सरदेश्वरी आश्रम से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने नसिर्ंग का कोर्स किया और 1950 में नसिर्ंग सहायक के रूप में रामकृष्ण शारदा मिशन मातृ भवन अस्पताल में शामिल हो गईं।

1959 में उन्होंने खुद को मिशन की नन के रूप में समर्पित कर दिया और रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के प्रमुख स्वामी शंकरानंद से मठ की शपथ ली। वहां से समाज और मानवता के प्रति समर्पित सेवा की उनकी लंबी यात्रा शुरू हुई।

उनके अनुयायी उन्हें एक नन के रूप में याद करते हैं, जिन्होंने अपने जीवन के हर पल को गरीब और पिछड़े वर्गों से आने वाले लोगों की सोच और सेवा के लिए समर्पित कर दिया।

पीके/एसकेपी

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