चिंतन है चिंताओं से पार पाने का – किसान सम्मेलन

Sabal Singh Bhati
3 Min Read

“चिंतन है चिंताओं से पार पाने का” शीर्षक की जैसलमेर मे हुए हजारों किसानों के किसान सम्मेलन पर बनाई गई है, इस कविता की रचना  करने वाले कवि लूणसिंह महाबार है .

चिंतन है चिंताओं से पार पाने का – किसान सम्मेलन जैसलमेर!

चिंतन है चिंताओं से पार पाने का!
मनन है मानवीय त्रासदियों से उस पार उतर जाने का!
खुशी है इंसानी मेलों के हुजूम के सकारात्मक भाव का!
बेफिक्री है!
मनमौजी है!
तमाम भावों के अर्थों से अनभिज्ञता की!
बस एक भाव है जिसका बहाव अन्नंत तक है!

सोच है ऐसे मेले पुनः लगने का!
चाल है अपने आदर्शों के आदेशों पर चलने की!
हुकुम नही हाजरी है अपनों के दर्शनों के लिए!
निस्वार्थता का भाव है इसलिए कि स्वार्थ आज तक नजदीक न टपका है!

वक्त पर आ जमे थे जमानों को उजला बनाने के आह्वान पर!
हम आज आए है,कल आएंगे,आते रहेंगे!
जब-जब ऐसे पवित्र मेले लगेंगे हम उन सब स्वार्थों की सीमाओं से परे!
पुनः आ खड़े मिलेंगे!

आएंगे हम उस भीड़तंत्र का हिस्सा बनने जब तक बात भविष्य की पीढ़ियों के लिए की जाएगी!
हम आएंगे जब तक बात सामाजिक भाव से समरसता की की जाएगी!
हम उन सभी बातों से परे एक आव्हान पर पुनः आएंगे!
हम पुनः आएंगे!
न किसी बुलावे का इंतजार था न रहेगा!

न हम आधुनिक हुए है न कोई आधुनिकता की दुनिया से जुड़े है!
पर एक सन्देश पर हम पुनः ऐसे ही रैले बनाकर आएंगे!
ये वादे ये कसमें मुझे भी है तुझे भी है!
मुझे मेरी जिम्मेदारी तो तुझे तेरी जिम्मेदारी निभानी होगी!
बन्धु ऐसे मेलों में मुझे व तुझे आना होगा!

हरगिज अपनों के भविष्य को उजला करने मैं को हम बनाकर आना होगा!

चिंतन है चिंताओं से पार पाने का – किसान सम्मेलन जैसलमेर!

चिंतन है चिंताओं से पार पाने का - किसान सम्मेलन
चिंतन है चिंताओं से पार पाने का – किसान सम्मेलन Photo – Loon Singh Mahabar

रचनाकार – लूणसिंह महाबार

 

देश विदेश की तमाम बड़ी खबरों के लिए निहारिका टाइम्स को फॉलो करें। हमें फेसबुक पर लाइक करें और ट्विटर पर फॉलो करें। ताजा खबरों के लिए हमेशा निहारिका टाइम्स पर जाएं।

Share This Article
Sabal Singh Bhati is CEO and chief editor of Niharika Times