मूंछ के बाल का दाह संस्कार – राजस्थानी कथा

Sabal Singh Bhati
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हिन्दुओं में मरने के पश्चात् पार्थिव शरीर को जलाते हैं इस जलाने की क्रिया को ‘दाह संस्कार’ कहते हैं।
पर मूंछ के बाल का दाह संस्कार ?
बड़ा अटपटा सा लगता है! है ना !

शरीर के दाह संस्कार का तो सुना, पर मूंछ के बाल का दाह संस्कार ! शायद विश्व में यह कभी और कहीं न घटने वाली सच्ची घटना हमारे राजस्थान में घटी, जो अद्वितीय और रोमांचक है।

इस घटना के नायक क्षत्रिय वंश के हैं। शाखा चांपावत और गांव हरसोलाव जो तत्कालीन जोधपुर रियासत के अन्तर्गत आता था।

यह उस समय की वार्ता है, जब दिल्ली पर बादशाह शाहजहां का राज था। मारवाड़ की गद्दी पर महाराजा गजसिंह (प्रथम) आसीन थे । गजसिंह के ज्येष्ठ पुत्र अमर सिंह नागौर के स्वतंत्र अधिपति थे। अमर सिंह महान् वीर एवं स्वाभिमानी । स्वभाव से क्रोधीले ।

मूंछ के बाल का दाह संस्कार – राजस्थानी कथा

अपने पास एक से बढ़कर एक वीर पुरुष नौकरी में, दिखने में दैत्य के समान, कद के लम्बे, बड़ी-बड़ी मूंछे, गठीला बदन, बड़ी-बड़ी आँखें। एक बार देखते ही कलेजा बैठ जाय। अपने स्वामी के इशारे पर अपनी जान कुर्बान कर दे ।

इन्हीं अमरसिंह ने आगरे के भरे दरबार में बादशाह के साले सलावत खाँ की कटारी मार कर हत्या कर दी थी। इन्हीं अमरसिंह के अनेक वीरों में से, हरसोलाव गांव का बल्लू चांपावत भी एक था।

कहते हैं कि बल्लू के तीन बार दाह संस्कार हुए।
है ना आश्चर्य की बात?

पर दंत कथाओं, ऐतिहासिक ख्यातों और चारण साहित्य में इन घटनाओं का उल्लेख हुआ है अतः प्रामाणिक है।
अभी तो हम मूंछ के बाल के दाह संस्कार की घटना पर विस्तार से चर्चा करेंगे-

मूंछ के बाल का दाह संस्कार – राजस्थानी कथा
मूंछ के बाल का दाह संस्कार - राजस्थानी कथा
मूंछ के बाल का दाह संस्कार – राजस्थानी कथा

(बल्लूजी चाम्पावत का तीन मरतबा दाह संस्कार हुआपहली बार अमर सिंह के शव को लेकर आगरा के किले से कूदकर, लाश नीचे खड़े अमर सिंह के सैनिकों को सौपकर स्वयं लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए, तब यमुना के किनारे उनका दाह संस्कार हुआ।

दूसरी दफा, जब अमर सिंह से अनबन हो गई तो बल्लूजी नागौर छोड़ महाराणा राजसिंह मेवाड़ की सेवा में चले गये। महाराणा बल्लूजी के साहस और व्यक्तित्व से बड़े प्रभावित हुए। कुछ समय महाराणा के पास रहकर वहां से भी विदाई ली उस समय महाराणा ने बल्लूजी को उपहार स्वरूप एक तेज तर्रार आलीशान घोड़ी भेंट की।

बल्लूजी ने अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते महाराणा को वचन दिया कि विपत्तिकाल में याद करना मैं अपना फर्ज निभाने हाजिर हो जाऊंगा।
मेवाड़ के महाराणा राजसिंह और औरंगजेब के बीच देबारी के घाटे में युद्ध चल रहा था उस समय बल्लूजी को याद किया तो बल्लूजी मरणोपरांत वचन निभाने महाराणा द्वारा भेंट की गई घोड़ी पर सवार, युद्ध करते देखे गये।

दूसरी मरतबा उनका दाग अन्य काम आये योद्धाओं के साथ देबारी के घाटे में हुआ।

और तीसरा दाह संस्कार उनकी मूंछ के बाल का हुआ जिसका विस्तृत वर्णन यहां दिया गया है।)

किसी बात पर अमरसिंह और बल्लू के अनबन हो गई। बल्लू डकैत बन गया, और अमरसिंह के गांवों को लूटता । लूटा हुआ धन वो गरीबों में बांट देता था। चारण, ब्राह्मण और गरीब जनता बल्लू को अंत:करण से आशीष देते। सेठ साहूकार बल्लू के नाम से कांपते । रात को आराम से नहीं सो सकते थे। पता नहीं कब बल्लू आ धमके।

मूंछ के बाल का दाह संस्कार – राजस्थानी कथा

बल्लू तो मौत को अपने सिर पर बांधकर निडर, निश्शंक, लूट पाट करता –

सूर भरोसौ आपरै, आप भरोसै सीह ।
भिड़ दुहुं ऐ भाजै नहीं, नहीं मरण रौ बीह ॥

अर्थात्- “शूरवीर अपनी हिम्मत के बल विचरता है और उसी भांति सिंह भी अपने बल पर वन में विचरण करता है। एक बार किसी पर आक्रमण करने के पश्चात् वीर पुरुष और सिंह, भागते नहीं, क्योंकि उनको मरने का तो डर है ही नहीं। जिसके साथ भिड़ जाते हैं, उन्हें तो मार कर ही रहते हैं।

इस डकैती के जीवनकाल में बल्लू की इकलौती पुत्री विवाह योग्य हुई। दिन रात जो व्यक्ति अपना जीवन घोड़े की पीठ पर बिता रहा हो और धन गरीबों को लुटा रहा हो,
बच्ची के विवाह की चिन्ता ।
क्या करूं ?
पैसा कहां से जुटाऊं?
इन सभी प्रश्नों से घिरा बल्लू दिन रात कोई उपाय ढूंढने हेतु चिन्तामग्न रहने लगा।

‘मर जावूं, मांगू नहीं, अपने तन के काज’
पत्नी का गहना गिरवी रखना नहीं । भीख तो किसी से नहीं मांगूंगा।
लूट के पैसे को विवाह के काम में नहीं लूंगा।
आमदनी का दूसरा कोई स्रोत नहीं ।
फिर बेटी का विवाह करूं कैसे ?

पर मन में दृढ़ संकल्प कि नहीं ! बेटी का विवाह मुझे धूमधाम से करना है। गाजों-बाजों के साथ मैं मेरी लाडली को ससुराल भेजूंगा।

खेजड़ी की गहरी छायां में सोता-सोता बल्लू, ये सब बातें सोच रहा था । घोड़ा पास में चर रहा, सिर के नीचे काठी और पास में तलवार ।

सोचते—सोचते कब आँख लग गई, पता नहीं। जैसे कोई उसको कह रहा हो कि “सोच क्या रहा है? उठ ! कुचामन जा ! अपनी पत्नी का गहना रहन नहीं रखना चाहता है। कोई बात नहीं। अपनी मूंछ का बाल तो रहन रख सकता है ? यदि तेरी मर्दानगी को कुचामन का सेठ पहचानता है तो तुझे मुंह मांगा पैसा मिलेगा।

जा कुचामण जा। (कुचामन एक कस्बे का नाम है। )
इस प्रकार सोते-सोते तेरा काम नहीं बनने का ।
काम तो करने से होगा।
जा कुचामन जा !

और बल्लू एकदम सचेत होते हुए उठ बैठा। इधर देखा, उधर देखा पर कोई नहीं ।
सोचा जंजाल था। वापस सो गया।
थोड़ी देर बार वही आवाज कि उठ ! कुचामन जा ।
वापस सचेत हुआ। इधर-उधर देखा। पर कोई नहीं।

फिर यह आवाज कैसी ? और किसकी?
विचार आया, कोई अज्ञात शक्ति का आदेश है। निश्चय किया, चलूं, कुचामन जाकर अपने भाग्य को आजमाऊं ।

मूंछ के बाल का दाह संस्कार – राजस्थानी कथा

घोड़े पर काठी बांध, अपनी तलवार ले, बल्लू चल पड़ा कुचामन की ओर। चलता-चलता सोचता जावे, क्या मूंछ के बाल पर सेठ पैसा देगा?
और यदि नहीं दिये तो ?
अंदर से आवाज आई, देगा ?
नहीं दे तो सिर धड़ से अलग !
और बल्लू को हिम्मत बंधी। सोचा कोई अज्ञात शक्ति उसकी सहायतार्थ साथ में चल रही है।

अंततोगत्वा बल्लू कुचामन पहुंच ही गया। संध्या की बेला । सेठों का घर पूछते-पूछते घर के बाहर जाकर घोड़ा रोका। बाहर से आवाज दी- ‘अरे सेठ घर पर है ?’
अंदर से आवाज आई, इस संध्या की बेला कौन है भाई ?
‘ये तो मैं हरसोलाव का बल्लू चांपावत।’

बल्लू का नाम सुनते ही मानो सेठ को पीना सांप सूंघ गया हो। जहां था वहीं जैसे चिपक गया हो । न बोलते बने, न हिलते ही।
बल्लू ने दूसरी बार आवाज दी, सेठजी बाहर आओ, जरा घरेलू बात करनी है। सेठ कांपता-कांपता बाहर आया। कांपते हाथों से नमस्कार किया व हाथ जोड़े खड़ा रहा। डर के मारे कुछ भी बोल न सका।

बल्लू ने ढाढस बंधाया। सेठजी डरो मत। मैं आज निजी काम से आया हूं। तुमको पता तो है कि मेरा घर घोड़े की काठी पर है। आज यहां तो कल कहीं और। पीछे रावजी के घोड़े मेरा, हर समय पीछा कर रहे हैं। मैं बागी जो हूं। सिर पर कफन बांधे भटक रहा हूं।

मुझे मेरी बच्ची का ब्याह करना है। पास में फूटी कौड़ी नहीं। मैं मेरी मूंछ का बाल गिरवी रखता हूं। जिन्दा रहा तो पाई-पाई अदा कर दूंगा, नहीं तो बच्चे अदा करेंगे।

सेठ की दशा, पकड़ो तो खाये और छोड़ो तो जाये, वाली हो गई। न ना कहते बने, न हां। हाथ जोड़े बुत के समान चुपचाप खड़ा रहा। मन में विचार करे, ‘इन ठाकरों का क्या भरोसा ? देवे या न भी देवे। कोई गहना हो तो गिरवी रखकर पैसे दे दूं। पर मूंछ के बाल की क्या कीमत ? मुझे भी मेरे बच्चों की परवरिश करनी है।

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Sabal Singh Bhati is CEO and chief editor of Niharika Times