नवलगढ़ किला (त्रिभुवन गढ़) – हवेलियों का शहर

Kheem Singh Bhati
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नवलगढ़ किला (त्रिभुवन गढ़) - हवेलियों का शहर

नवलगढ़ (त्रिभुवन गढ़)। बयाना से लगभग 23 कि०मी० दक्षिण में एक उन्नत पर्वतशिखर पर मध्यकाल का प्रसिद्ध दुर्ग नवलगढ़ (तिमनगढ़) या त्रिभुवनगढ़ अवस्थित है। दुर्गम पर्वतमालाओं से आवृत्त, वन सम्पदा से परिपूर्ण तथा नैसर्गिक सौन्दर्य से सुशोभित इस दुर्भेद्य दुर्ग की अपनी निराली ही शान और पहचान है।

वीरता और पराक्रम की अनेक घटनाओं के साक्षी इस किले में प्राचीन काल की भव्य और सजीव प्रतिमाओं के रूप में कला की एक बहूमूल्य धरोहर बिखरी पड़ी है जिसके कारण इसे राजस्थान का खजुराहो कहा जाय तो कोई अत्युक्ति न होगी ।

समुद्रतल से लगभग 1309 फीट की ऊँचाई पर स्थित इस दुर्ग का निर्माण बयाना के राजवंशीय तहणपाल (तवनपाल) अथवा त्रिभुवनपाल (महाराजा विजयपाल का पुत्र) ने 11 वीं शताब्दी ईस्वी के उत्तरार्द्ध में करवाया था । अपने निर्माता के नाम पर यह दुर्ग नवलगढ़ तथा किले वाली पहाड़ी त्रिभुवनगिरि कहलाती हैं। ऐसा उल्लेख मिलता है कि मुस्लिम आधिपत्य के बाद इसका नाम इस्लामाबाद कर दिया गया
था।

नवलगढ़ किला (त्रिभुवन गढ़) - हवेलियों का शहर
नवलगढ़ किला (त्रिभुवन गढ़) – हवेलियों का शहर

ज्ञात इतिहास के अनुसार महाराजा विजयपाल की मृत्यु तथा बयाना के किले पर मुस्लिम अधिकार होने के उपरान्त यादव कुछ वर्षों तक गुप्तवेश में बयाना से बाहर किसी अज्ञात सुरक्षित स्थान पर रहे । तत्पश्चात तवनपाल ने एक सिद्धयोगी का आशीर्वाद प्राप्त कर बयाना से 15 मील दूर नवलगढ़ का यह किला तथा सागर नामक जलाशय बनवाया । कविराजा श्यामलदास कृत वीरविनोद में यह उल्लेख है’ –

“मुसलमानों ने यादवों से बयाना का किला छीन लिया। विजयपाल के 18 बेटे थे । उसका सबसे बड़ा बेटा तवनपाल बारह वर्ष तक पोशीदह रहकर अपनी धाय के मकान पर आया, उसने नवलगढ़ का किला बयाना के अग्निकोण में पन्द्रह मील पर बनवाया । “

मध्यप्रदेश में देवास के निकट इणगोड़ा नामक गाँव से विक्रम संवत 1190 की आषाद सुदी 11 (15 जून 1533ई०) का एक शिलालेख मिला है जिसमें तवनपाल या तहणपाल की उपाधि- ‘परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर’ लिखी मिलती है जिससे पता चलता है कि वह एक शक्तिशाली शासक था।

अनुमान किया जाता है कि उसके राज्य में वर्तमान अलवर का आधा भाग, भरतपुर, धौलपुर, करौली, गुड़गाँव और मथुरा का क्षेत्र तथा वर्तमान आगरा व ग्वालियर का भू भाग सम्मिलित था । तवनपाल के दो पुत्र हुए- धर्मपाल और हरपाल । तवनपाल का उत्तराधिकारी धर्मपाल बना परन्तु उसके समय में शासन की समस्त बागडोर उसके भाई हरपाल के हाथ में थी जो एक वीर और पराक्रमी योद्धा था।

नवलगढ़ किला (त्रिभुवन गढ़) - हवेलियों का शहर
नवलगढ़ किला (त्रिभुवन गढ़) – हवेलियों का शहर

गृहकलह के कारण महाराजा धर्मपाल ने नवलगढ़ छोड़कर एक नया किला धौलदेहरा (धौलपुर) बनवाया । उसके पुत्र कुंवरपाल (कुमारपाल) ने गोलारी में एक किला बनवाया जिसका नाम कुंवरगढ़ रखा। कुछ वर्षों बाद कुंवरपाल ने हरपाल को मारकर नवलगढ़ पर अपने पिता का अधिकार स्थापित किया।

इधर हरपाल के मारे जाने की घटना से आशंकित होकर बयाना के मुस्लिम शासक ने नवलगढ़ पर घेरा डाल दिया। धर्मपाल ने अपने पुत्र द्वारा चम्बल के किनारे निर्मित निकटवर्ती कुंवरगढ़ दुर्ग में शरण ली परन्तु यहाँ भी आक्रान्ता द्वारा घेर लिए जाने पर उसने भीषण युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की। धर्मपाल के पश्चात उसके उत्तराधिकारी कुंवरपाल या कुमारपाल ने दीर्घकाल तक शासन किया। बयाना और नवलगढ़ दोनों दुर्ग उसके अधीन रहे।

जैन साहित्य में नवलगढ़ (त्रिभुवन गढ़) का उल्लेख मिलता है

जैन साहित्य में मुनि जिनदत्तसूरी के 1157 ई० में कुंवरपाल के शासनकाल में नवलगढ़ आगमन तथा एक कलशाभिषेक समारोह में भाग लेने व राजा कुंवरपाल से उनकी भेंट का उल्लेख मिलता है। 1196 ई० में मुहम्मद गौरी ने अपने सिपहसालार कुतुबुद्दीन ऐबक के साथ यादव राज्य पर जबरदस्त आक्रमण किया। कुंवरपाल ने अप्रतिम साहस और पराक्रम का परिचय देते हुए आक्रान्ता का सामना किया परन्तु विजयश्री से वंचित रहा।

नवलगढ़ किला (त्रिभुवन गढ़) - हवेलियों का शहर
हवेलियों का शहर

बयाना और नवलगढ़ दोनों दुर्गों पर मुहम्मद गौरी का अधिकार हो गया। डॉ० ओझा जी के अनुसार मुहम्मद गौरी ने 1195 ई० में नवलगढ़ पर अधिकार कर लिया था 12 डॉ० दशरथ शर्मा के अनुसार मुहम्मद गौरी द्वारा नवलगढ़ पर अधिकार कर लिए जाने के साथ ही यादवों की दूसरी राजधानी नवलगढ़ या त्रिभुवनगिरि के गौरवशाली स्वर्णिम युग का पटाक्षेप हो गया । समकालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने अपनी तवारीखों में इस घटना का उल्लेख किया है।

हसन निजामी द्वारा लिखित ‘ताज-उल-मासिर’ तथा मिनहाज सिराज कृत ‘तबकाते नासिरी’ में नवलगढ़ के गौरी के अधिकार में आने तथा उसे बहाउद्दीन तुगरिल के अधीन रखने एवं उसके शासनकाल में वहाँ की व्यापारिक प्रगति का उल्लेख हुआ है। इस विवरण के अनुसार हिन्दुस्तान के दूरस्थ प्रदेशों मध्य एशिया तथा खुरासान आदि के व्यापारी वहाँ आते थे।

नवलगढ़ किला (त्रिभुवन गढ़) - हवेलियों का शहर
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न्यायचन्द्र सूरी-रचित हम्मीर महाकाव्य में भी रणथम्भौर के पराक्रमी शासक हम्मीर के दिग्विजय-अभियान के प्रसंग में त्रिभुवनगिरि के शासक द्वारा उसे भेंट दिये जाने का उल्लेख हुआ है। उस समय यहाँ का शासक कौन था, निश्चित रूप से कहना कठिन है। 14वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में यादववंशीय अर्जुनपाल ने अपने पैतृक राज्य नवलगढ़ पर फिर से अधिकार कर लिया और सरमथुरा के 24 गाँव बसाये।

उसने विक्रम संवत 1405 (1348 ई०) में कल्याणजी का मन्दिर बनवाकर कल्याणपुरी नगर बसाया, जो वर्तमान में करौली कहलाता है। अपनी स्वतन्त्र सत्ता खोने के बाद भी नवलगढ़ का महत्त्व बना रहा। 1516 ई० में सिकन्दर लोदी ने इस पर अपना अधिकार कर लिया। मुगल सम्राट बाबर के शासनकाल में आलमशाह यहाँ का दुर्गाध्यक्ष था।

लगभग 8 कि०मी० की परिधि में फैला नवलगढ़ या तिमनगढ़ शास्त्रोक्त गिरि दुर्ग का उत्तम उदाहरण है। उन्नत और विशाल प्रवेशद्वार तथा ऊँचा परकोटा इसके स्थापत्य की प्रमुख विशेषता है। जगन प्रोल और सूर्य प्रोल इसके दो प्रमुख प्रवेशद्वार हैं। बीते जमाने में यह किला अपने आप में एक सम्पूर्ण ईकाई था।

समूचा नगर किले के भीतर बसा हुआ था। दुर्ग में लगभग 60 दुकानों से युक्त एक विशाल बाजार था । इसके अतिरिक्त खास महल, बड़ा चौक, ननद भौजाई का कुँआ, राजगिरि, दुर्गाध्यक्ष के महल, सैनिकों के आवासगृह, जीर्ण छतरियाँ, तहखाने आदि भवन प्रमुख और उल्लेखनीय हैं। जैसाकि कह आए हैं यहाँ उपलब्ध प्राचीन प्रतिमाओं के कारण यह दुर्ग केवल ऐतिहासिक दृष्टि से ही महत्त्वपूर्ण नहीं है अपितु अपनी बहुमूल्य सांस्कृतिक एवं कलात्मक धरोहर के कारण भी विशिष्ट महत्त्व रखता है ।

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