विश्वनाथ प्रताप सिंह – उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री का जीवन परिचय

Kheem Singh Bhati
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विश्वनाथ प्रताप सिंह राजा बहादुर राय गोपाल सिंह मण्डा के सुपुत्र थे। उनका जन्म 25 जून, 1931 को एक राजपरिवार में हुआ था। उनका विवाह 25 जून (उनके जन्म दिन) को 1955 में देवगढ़ राजस्थान की राजकुमारी सीता कुमारी के साथ सम्पन्न हुआ था। ये उत्तर-प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री के अलावा भारत के आठवें प्रधान मंत्री भी थे। विश्वनाथ प्रताप सिंह अपने विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हो गये।

विश्वनाथ प्रताप सिंह – उत्तर-प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री का जीवन परिचय

1957 में उन्होंने भूदान आन्दोलन में अहम् भूमिका निभाने के साथ ही अपनी पूर्व रियासत की जमीनें भी दान दे दी। इसको लेकर पारिवारिक विवाद भी हुआ था। राजनीति में उनका संबंध भारतीय कांग्रेस पार्टी के साथ था। 1969 में वे उत्तर प्रदेश विधान सभा पहुंचे और 09 जून, 1980 से 28 जून, 1982 तक राज्य के मुख्य मंत्री रहे।

तदुपरान्त वे राज्य सभा पहुँचे और 29 जनवरी, 1983 को केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री और 31 दिसम्बर, 1984 को भारत के वित्त मंत्री बने। इस दौरान उनका राजीव गांधी के साथ विदेशी बैंको में भारतीयों के जमा काले धन और बोफोर्स सौदे में तथाकथित 60 करोड़ रुपये के कमीशन को लेकर टकराव पैदा हो गया। 1987 में विश्वनाथ प्रताप सिंह को कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया।

02 अक्टूबर 1987 को विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपना पृथक मोर्चा गठित कर लिया। बोफोर्स काण्ड के सुर्खियों में रहते हुए 1989 के आम चुनाव भी आ गये। वी.पी.सिंह और विपक्ष ने इनको चुनावी मुद्दों के रूप में पेश किया। भारत की जनता के जेहन में यह बात स्पष्ट रूप से घर कर गई कि दाल में जरूर कुछ काला है और सरकार में शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त है।

नतीजन चुनाव में विश्वनाथ प्रताप सिंह की छवि एक ऐसे राजनीतिज्ञ की बन गई जिसकी ईमानदारी और कर्तव्य-निष्ठा पर कोई शक नहीं किया जा सकता था। इसका फायदा उठाते हुए इन्होंने कांग्रेस को तोड़ना शुरू कर दिया।

शाहबानो के मामले ने स्थिति को राजीव गांधी के लिए और चिंताजनक बना दिया। बदलती परिस्थितियों का सही आकलन कर मौके का फायदा उठाते हुए 11 अक्टूबर, 1988 को राष्ट्रीय मोर्चे का विधिवत गठन कर लिया गया।

1989 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र 197 सीटें मिलीं तो वी. पी. सिंह के राष्ट्रीय मोर्चे को 146, भाजपा को 86 और वामदलों के पास 52 सांसद थे। इस तरह कुल मिलाकर राष्ट्रीय मोर्चे को 248 सांसदों का समर्थन मिल गया। विश्वनाथ प्रताप सिंह 02 दिसम्बर, 1989 को भारत के आठवें प्रधान मंत्री बने और देवीलाल उप प्रधानमंत्री ।

विश्वनाथ प्रताप सिंह को विदेशों में जमा कालेधन का पता लगाने, बोफोर्स तोपों के सौदे में दिये कमीशन के खिलाफ उनकी लड़ाई और मण्डल आयोग के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। 27 नवम्बर, 2008 को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उनका निधन हुआ।

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