तुम्हारी तरफ से कोई मरे या जीये, भूखा रहे या प्यासा रहे, तुम्हें क्यों चिंता होने लगी। भाभी ने जब अपने देवर को इस प्रकार उत्तेजित होते देखा तो उससे भी न रहा गया। भाभी ने भी प्राक्रोश भरे स्वरों में कहा – मैं कौन ठाली बैठी रहती हूं या पलंग पर सोये रहती हूं।
मुंह अधेरे उठकर चक्की चलाती हूं, बीस श्रादमियों के लिए दस सेर आटे का लोथड़ा सेकती हूं। पानी के बेबडे भर भर कर लाती हूं । गायों की गोबर बुहारी करती हूं । उपले थापती हूं। यह तो मैं ही हूं जो तुम्हारे कठोर और तीखे बोल सुन रही हूं। भाभी के ही शब्दों में देखिये –
घड़ियां जी पीस्यो घड़ियां पोयो मोती देवरिया रे,
घड़ियां जी पीस्यो घड़ियां पोयो रे ।
कोई सारे तो घर को रे पाणीड़ो ढोयो एकली,
मण भर जी दूयो मण भर बिलोयो मोती देवरिया रे ।
भागीजी दोड़ी मैं ल्याई थारी छाक रें।
कोई बिना चूची भतीजो रै छोड्याई लंरां रोवतो ।
मैं तो पराई नार हूं जो कहते हो सुन लेती हूं। अपनी लुगाई को तो पीहर में छोड़ रखा है जहां वह अपने मां बाप के राज में चैन की बांसुरी बजाती है और मैं अपने हाड़ मांस गाळ कर भी तुम्हारी तीखी बातों को सुनने यहां पड़ी हूं। ऐसा ही रोश उतारना हो तो अपनी लुगाई को ले आओ और फिर उसे सुनाना ।
मैं तो जी मैं तो नार छू बिराणी मोती देवरिया है,
मैं तो जी मैं तो नार छू बिराणी है।
कोई थारी तो ब्यायोड़ी रे बा गोबर गेरू बाप के
ल्यावो जी ल्यावो थारी परण्योड़ी ने जाय मोती देवरिया रं
ल्यावो जी ल्यावो थारी व्यायोड़ी ने जाय रे ।
तेजा को काटो तो खून नहीं। भाभी की बात तीर की तरह उसे बेध गई । आग-बबूला हो गया, किसका खेत किसकी फसल । वह तो उसी समय हल, बैलों को खेत में छोड़ कर लौट आया। उस समय तेजा की मां अपने पोते को खिला रही थी। तेजा का मौन और क्रोध से भरा लाल चेहरा देखकर वह सहम गई। तेजा और अधिक गर्म हो गया। माँ ने कारण पूछा।
तेजा बहुत देर तक क्रोध के कारण बोल नहीं पाया। उसने भाभी के साथ हुए वार्तालाप को तो मां के सम्मुख नहीं रखा लेकिन यह पूछने से नहीं रुका कि मेरा ससुराल कहां है? मेरी शादी कब और किससे हुई ? अब तक भी मां तेजा के किसी निश्चय को नहीं समझ सकी थी। उसने सहज भाव से कहा बेटा तेरा विवाह तो जब तू छोटा था, तभी कर दिया गया था।
पनेर में तेरा ससुराल है। वहां का पटेल जो जात विरादरी का मुखिया है, तेरा ससुर है। अब जल्दी ही तेरा गौणा करने वाली हूं। श्राज ही पण्डित से पूछा था कि गौणे के लिए शुभ मुहूर्त कब का है ? पण्डित ने अगले महीने के लिए कहा है। तेजा ने तो मन में कुछ और ही संकल्प कर रखा था। रह रह कर भावज के बोल उसे साल रहे थे।
वह तो कल के सूरज को ससुराल में उगते देखना चाहता है । अपनी मां के पास से चुपचाप उठकर पिछोड़े में गया और अपनी नीली घोड़ी पर जीरण कसने लगा। चाकर चिमनिया को घोड़ी को दाना पानी देने के लिए उसने आदेश दिया चिमनिया ने जब घोडी को दाना डाला तो घोड़ी पीछे हट गई।
चाकर भयभीत मन से तेजा के पास आया और अनुनय करने लगा कि मालिक घोड़ी को दाना डालने पर वह पीछे हट गई है। यह अपशकुन है । इस लिए आप आज जाने का अपना निश्चय बदल ही डालिये। घोड़ी ने पैर पीछे हटा लिए हैं और यदि आपको विश्वास न हो तो किसी पण्डित को बुलाकर इसका फल पूछ लो | तेजा स्वयं पण्डित के यहां गया ।
पण्डित ने चिमनिया की बात पर मोहर कर दिया कि यदि इस समय यात्रा की गई तो नक्षत्रों के दुष्प्रभाव के कारण तेजा की मृत्यु का योग है। लगा दी। साथ में यह भी एक ओर मौत, तो दूसरी ओर भाभी के तीखे एवं कटु वचन तेजा के मानस में अन्तर्द्वन्द का तूफान उठाने लगे। रह रह कर उसका पूर्व निश्चय ही आकार ग्रहण करता गया ।
अपने संकल्पों के सामने उसे मृत्यु का भय भी भयभीत न कर सका । उसने अपना निश्चय दोहराया। मृत्यु या जीवन, सफलता या असफलता कुछ भी हाथ लगे मैं अपने निश्चय से एक तिल भी नहीं हटूंगा | चिमनिया को घोड़ी सजा कर दरवाजे पर खड़ी करने का हुक्म दिया और स्वयं मां का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए घर में गया ।
मां ने पुत्र का दृढ़ निश्चय जान कर इतना ही कहा, हे बेटा, तुम्हारी प्रतीक्षा कब तक करती रहूं? मुझे कोई निश्चित सहारा बता जाग्रो | तेजा ने लापरवाही के साथ पीपल के पत्तों की ओर संकेत करके कहा इन पत्तों को गिन लो और मां के चरण स्पर्श कर बिजली की तरह पोली से बाहर निकल पड़ा ।
नीलड़ी घोड़ी पे छलांग मार कर बैठ गया। घोड़ी हवा से बातें करने लगी । सिर पर पेचा और तुर्रा, कमर पर भूलती हुई तलवार उसके वीरत्व का बखान कर रही थी। दूल्हे के भेष में तेजा नीलड़ी को थ्रेड लगा रहा था। नीलड़ी की नस नस में बिजली भर गई थी। वह भी लगाम की ढील और खींच के संकेतों को प्राणपण से समझ रही थी।
रास्ते में दायीं ओर रोते गीदड़ मिले। रेंकते हुए गधे मिले और सुहाग चिन्हों से रहित चिन्हों से रहित गांव गांव में औरतें फलसों पर ही दिखाई दीं।
पणिहारिने खाली घड़े लिए हुए आती मिलीं। ग्राम की सीमा पर बाई ओर से आता हुआा एक भारी भरकम सांप मिला। तेजा ने इन अपशकुनों को ध्यान से दूर रखा और अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर बढ़ता ही गया । दिन ढलता जा रहा था, पनेर गांव के पेड़ निकटतम ग्राते जा रहे थे।