गोभक्त तेजाजी – राजस्थान के लोक देवता

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तेजा ने नीलड़ी को रुकने का इशारा किया। उसके हृदय में दुष्टों को दण्ड देने की भावना सदैव से प्रबल रही थी। अन्याय के विरुद्ध सर्वस्व न्यौछावर कर देना मानो उसके संस्कारी गुरग थे ।

ग्राज अपनी शक्ति का परिचय देने का उसे सुग्रवसर प्राप्त हुग्रा था । कर्त्तव्य की पुकार उसने सुनी । गायों पर आई हुई विपत्ति को देख उसका हृदय द्रवीभूत हो गया । गाय-चोरों के गिरोह को समाप्त करने का उसने दृढ़ संकल्प किया । घोड़े से उतर कर हीरा गुजरी को उसने आश्वस्त किया ।

गूजरी, तुम्हारी गायों को दुष्टों से जब तक मुक्त नहीं कर दूंगा, तब तक दम नहीं लूंगा और यहां किसी का भी अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगा । तुम निश्चित होकर घर जाओो । तेजा के रहते कोई किसी पर अत्याचार नहीं कर सकता । बछड़ों को उनकी माताओं से मिलाऊंगा । तेरे गुवाड़े को पुनः गायों से भर दूंगा।

तेजा उस दिशा की ओर रवाना हो गया जिधर मीणा लोग हीरा गूजरी की गायों को लेकर भागे थे।

पलक मारते ही नीलड़ी ने मीरणों का रास्ता रोक लिया । अभी तक इन दुष्टों ने पनेर का कांकड़ भी पार नहीं किया था कि तेजा की निर्भय ललकार ने सबको भयभीत कर दिया। तेजा के हाथ में चमचमाती हुई नंगी तलवार दुष्टों को घूर रही थी। तेजा की ग्रांखों से अग्नि सफुल्लग झड़ रहे थे। उसकी वाणी में वीरत्व का ज्वार उमड़ रहा था।

बहुत देर तक उनकी घिघियां बंधी रहीं । अन्त में सासण बटोर कर उन्होंने तेजा से कहा तू अभी दूधमु हा बालक है । बीसी पर भी नहीं पहुंचा है। क्यों व्यर्थ ही हमारे हाथों प्राण देकर अपनी नवेली नार को दुहागिन बनाने को प्रातुर हो रहा है। तेरे रूप और अवस्था को देखकर हमें दया प्राती है । अभी भी मौका है, लोट जा, हमारे काम में बाधक मत बन |

तेजा इन शब्दों को सुनकर आग बबूला हो गया। प्रांखों में खून उबलने लगा, भुजाएं फड़फड़ाने लगीं । नसों में रक्त खौल उठा, तलवार ने प्रहार का रास्ता अपना लिया। एक का अनेक से घमासान युद्ध हुग्रा । सवा घड़ी तक भीषण युद्ध होता रहा। तेजा आगे बढ़ कर वार कर रहा था। परिणामस्वरूप शत्रुघ्रों ने मैदान छोड़ दिया। हाथ से तलवारें गिर गईं।

एक एक कर मीणे भागने लगे। तेजा आश्वस्त होकर गायों को मोड़ने लगा। इसी बीच एक मीणा अपने साथ एक उठती उम्र के दो दांतिये बछड़े को ले भागा | तेजा को यह ध्यान भी नहीं रहा कि भागते समय वे किसी बछड़े को भी साथ ले गये हैं। विजय स्वरूप मदमस्त चाल से तेजा गायों को लिए हुए हीरा गूजरी के पास आया ।

तेजा का युद्ध क्लांत शरीर विश्राम का इच्छुक था। हीरा गुजरी ने गायों को सम्भाल कर कहा जीजा, मेरा वह बछड़ा तो रह गया जो मुझे बहुत प्यारा था। उसके बिना तो मेरा गुवाड़ा ही सूना है। तुम्हारी वीरता तो इसी में है कि तुम मेरा वह बछड़ा भी लाकर दो। तेजा को लगा जैसे मोणे उसकी प्रांख में धूल झोंक गये ।

वह क्रोध से फुफकारता हुआ उन्हीं पैरों लौट चला । वह चोरों के खोज देखता हुआ, कोसों दूर निकल गया था। मार्ग तय कर रहा था कि उसे झाड़ में लगी आग में एक सांप जलता हुआ दिखलाई पड़ा। तेजा के लिए यह देखना प्रसा था । उसने दया द्रवित होकर जलते सांप को अपनी तलवार की नोंक से बाहर निकाल लिया ।

सांप ज्यों ही अग्नि से बाहर गिरा त्यों ही क्रोध से फुफकार उठा और बोला, तूने मेरी जलती हुई देही को दाग लगा दिया है। यदि मैं जल जाता तो इस योनि से छुटकारा पा जाता । अब मैं तुझे किसी भी अवस्था में नहीं छोडूंगा |

तेजा ने अपनी भूल स्वीकार की कि उसने अनजाने में किसी जीव का अपराध कर दिया है। पश्चात्ताप स्वरूप उसे अपने अपराध का दण्ड तो पाना ही था, अतः उसने कहा हे नागदेव ! अपराध का प्रायश्चित्त करने को मैं तैयार हूँ, किन्तु हीरा गूजरी को मैंने वचन दिया है कि मैं उसका बछड़ा चोरों से छुड़ा कर उसे लाकर दूंगा ।

मुझे मेरा वचन पूरा कर लेने दो । बछड़ा सौंपकर मैं तुम्हारे पास पुन: ग्राऊंगा, तब तुम मुझे डस लेना । सर्प ने शर्त को स्वीकार करते हुए कहा मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में जिन्दा रहूगा ।

तेजा मीनों को पकड़ने चल पड़ा । थोड़ी दूर ही उनका आमना-सामना हुआ। पुन: भीषण युद्ध हुआ । अब की बार तेजा का शरीर घावों से क्षत-विक्षत हो गया था, फिर भी मीनों को उसने मार भगाया। हीरा गुजरी का बछड़ा अपने कब्जे में कर पनेर की ओर रवाना हुआ। उसके शरीर से खून टपक रहा था।

गूजरी को बछडा सौंप कर वह लौटने लगा। हीरा और सुन्दरी ने ऐसे वीर पाहुने को रोकने का असफल प्रयत्न किया। तेजा ने इतना ही कहा गूजरी, मैं वचनबद्ध हूँ। एक सांप को मैंने वचन दिया है कि तुम्हारा काम करके मैं अपनी जिन्दगी उसे सौंप दूंगा । इसलिए अब मुझे अपने दूसरे वचन को पूरा करने दो ।

तेजा हीरा से विदा लेकर सांप के पास पहुंचा। तेजा ने सांप से कहा मैं ग्रा गया हूं। जहां चाहो वहीं पर डस लो । सांप ने उसके क्षत-विक्षत शरीर को देखकर कहा, तुम्हारा शरीर कहीं से भी घावविहीन नहीं है।

बोल मैं कहां डसू तेजा समझ गया कि सांप घायल अंगों को नहीं डसा करता है। इसलिए वचनबद्ध तेजा ने अपनी जीभ की ओर संकेत करते हुए कहा तुम्हारे डसने के लिए मेरा यह अंग निर्घाव है। तुम यहां डस लो। सर्प ने तेजा की जीभ को डस लिया ।

तेजा विष के कारण अपनी चेतना खोने लगा। देखते देखते उसका तेजयुक्त शरीर नीला पड़ गया । जब तक हीरा, सुन्दरी तथा पनेर के ग्रन्य निवासी वहां तक पहुंचे, तेजा परलोक सिधार गया था। सुन्दरी दहाड़ मार कर अपने पति के शव से लिपट गई । सभी उपस्थित लोग तेजा की मृत्यु पर आठ आठ आंसू बहाने लगे ।

दाह क्रिया के लिए चंदन की चिता तैयार की गई। सुन्दरी तेजा के सर को गोद में लेकर बैठ गई । प्रश्न चिता को प्रज्वलित करने का आया। सती सुन्दरी के ससुराल का गोती पनेर गांव में एक भी नहीं था। और शास्त्रानुकूल पीहर का गोती सती की चिता को प्रज्वलित नहीं कर सकता था ।

सुन्दरी प्राग की प्रतीक्षा करती रही । दिन का देवता सर पर आ गया था । सुन्दरी ने सूर्य भगवान से प्रार्थना करते हुए कहा- पिता, अब मैं तुम्हारी ही शरण में हूं, यदि में पतिपरायण सच्ची स्त्री हूं तो हे पिता, तुम स्वयं अपनी उष्ण किरणों से मेंरी चिता को प्रज्वलित करो । देखते देखते सती सुन्दरी की चिता प्रज्वलित हो उठी ।

तेजा की घोड़ी जो कि खून से भीग रही थी अपने मालिक के गांव की प्रोर चल पड़ी । संध्या समय व्यतीत हो चला था । रात के अंधेरे में नीलड़ी अपने सवार के घर पर जाकर खड़ी हुई । घोड़ी की हिनहिनाहट सुनकर तेजा की मां ने तेजा को आया जान लपक कर दरवाजा खोला ।

दरवाजे पर घोड़ी नीची गर्दन किये हुए पत्थर की मूर्ति-सी खड़ी थी । घोड़ी की खाली पीठ देखते ही तेजा की मां चक्कर खा कर दरवाजे की देहली में गिर गई ।

तेजा के वीर कर्म पर रीझी हुई जनता ने उसे लोक देवताओं में स्थान दिया और उसका देहुरा बना कर उसे पूजने लगी । तेजा अब तेजाजी बन कर भादवा सुदी दसमी के दिन विशेष पूजा ग्रहरण करता है और प्राधिव्याधि, सर्प दंश इत्यादि से लोकजीवन को मुक्त करता है ।

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kheem singh Bhati is a author of niharika times web portal, join me on facebook - https://www.facebook.com/ksbmr
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