बाड़मेर. जिस धरती को कभी लोग बंजर और पिछड़ा कहते थे, वही अब समृद्धि की नई गाथा लिख रही है। नर्मदा नहर के पानी और भूमिगत जल ने मरुस्थल में हरी-भरी क्रांति ला दी है। बाड़मेर-बालोतरा का किसान अब केवल बारिश पर निर्भर नहीं, बल्कि रबी-खरीफ फसलों के साथ बागवानी में भी आगे बढ़ रहा है। करोड़ों की उपज देने वाले जीरे और अनार ने यहां की पहचान बदल डाली है। पहले यहां का जीवन पशुपालन और वर्षा आधारित खेती तक सीमित था। लूणी नदी के किनारे ही किसान रबी फसल बो पाते थे। लेकिन समय ने करवट ली।
नर्मदा नहर गुड़ामालानी तक पहुंची और सीमा से जुड़े गांवों में नलकूपों से पानी मिलने लगा। नतीजा यह हुआ कि चौहटन, शिव, सेड़वा, धनाऊ और धोरीमना जैसे इलाके भी खेती की मुख्य धुरी बन गए।