ऊंटाला युद्ध – मेवाड़ी वीरों की ऊंटाला दुर्ग पर ऐतिहासिक विजय

Jaswant singh
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ऊंटाला युद्ध - मेवाड़ी वीरों की ऊंटाला दुर्ग पर ऐतिहासिक विजय

ऊंटाला युद्ध का रोचक वर्णन :- मुगल सिपहसालार कायम खां ऊंटाला दुर्ग में तैनात था। इस युद्ध को मेवाड़ के इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है। इसका सबसे अहम कारण था चुण्डावतों व शक्तावतों में हरावल में रहने की होड़।

मेवाड़ की हरावल अर्थात सेना की अग्रिम पंक्ति में रहकर लड़ने का अधिकार चुण्डावतों को प्राप्त था। जब महाराणा अमरसिंह ने ऊंटाला दुर्ग पर आक्रमण करने की बात दरबार में की, तब वहां मौजूद महाराज शक्तिसिंह के पुत्र बल्लू सिंह शक्तावत ने महाराणा से अर्ज किया कि

“हुकम, मेवाड़ की हरावल में रहने का अधिकार केवल चुंडावतों को ही क्यों है, क्या हम शक्तावत किसी मामले में पीछे हैं ?”

तभी दरबार में मौजूद रावत कृष्णदास चुंडावत के पुत्र रावत जैतसिंह चुंडावत ने कहा कि “मेवाड़ की हरावल में रहकर लड़ने का अधिकार चुंडावतों के पास पीढ़ियों से है।”

महाराणा अमरसिंह के सामने दुविधा खड़ी हो गई, क्योंकि वे दोनों को ही नाराज नहीं कर सकते थे। सोच विचारकर महाराणा अमरसिंह ने इस समस्या का एक हल निकाला।

महाराणा अमरसिंह ने कहा कि “आप दोनों शक्तावतों और चुंडावतों की एक-एक सैनिक टुकड़ी का नेतृत्व करो और अलग-अलग रास्तों से ऊंटाला दुर्ग में जाने का प्रयास करो। दोनों में से जो भी ऊंटाला दुर्ग में सबसे पहले प्रवेश करेगा, वही हरावल में रहने का अधिकारी होगा”

ऊंटाला युद्ध - मेवाड़ी वीरों की ऊंटाला दुर्ग पर ऐतिहासिक विजय
ऊंटाला युद्ध – मेवाड़ी वीरों की ऊंटाला दुर्ग पर ऐतिहासिक विजय

महाराणा अमरसिंह ने खुद इस महायुद्ध का नेतृत्व किया। महाराणा के नेतृत्व में 10,000 मेवाड़ी वीरों ने ऊंटाला गांव में प्रवेश किया, जहां मुगलों से लड़ाई हुई।

इस लड़ाई में सैंकड़ों मुगल मारे गए। मुगल सेना ने भागकर ऊंटाला दुर्ग में प्रवेश किया। मेवाड़ी सेना ने ऊंटाला दुर्ग को घेर लिया।

दुर्ग में प्रवेश करने के लिए बल्लू जी शक्तावत दुर्ग के द्वार के सामने आए और अपने हाथी को आदेश दिया कि द्वार को टक्कर मारे पर लोहे की कीलें होने से हाथी ने द्वार को टक्कर नहीं मारी। ऊपर से हाथी मकुना अर्थात बिना दांत वाला था।

बल्लू जी द्वार की कीलों को पकड़ कर खड़े हो गए और महावत से कहा कि हाथी को मेरे शरीर पर हूल दे। हाथी ने बल्लू जी के टक्कर मारी, जिससे बल्लू जी नुकीली कीलों से टकराकर वीरगति को प्राप्त हुए। द्वार टूट गया और द्वार के साथ-साथ बल्लू जी भी किले के भीतर गिर पड़े। बल्लू जी के इस बलिदान के बावजूद वे हरावल का अधिकार नहीं ले सके।

रावत जैतसिंह चुण्डावत सीढियों के सहारे ऊपर चढ रहे थे। ऊपर पहुंचते ही मुगलों की बन्दूक से निकली एक गोली रावत जैतसिंह की छाती में लगी, जिससे वे सीढ़ी से गिरने लगे, तभी उन्होंने अपने साथियों से कहा कि मेरा सिर काटकर दुर्ग के अन्दर फेंक दो। साथियों ने ठीक वैसा ही किया।

इस तरह ऊंटाला किले में पहले प्रवेश करने के कारण हरावल का नेतृत्व चुण्डावतों के अधिकार में ही रहा।

महाराणा अमरसिंह ने अपने हाथों से कायम खां को मारा और मेवाड़ी वीरों ने ऊंटाला दुर्ग पर ऐतिहासिक विजय प्राप्त की। इस युद्ध में कई मुगल मारे गए व महाराणा अमरसिंह ने बचे खुचे मुगलों को कैद किया।

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Jaswant singh Harsani is news editor of a niharika times news platform