हरभूजी – राजस्थान के लोक देवता (3)

Sabal Singh Bhati
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हरभूजी। यह वीरवर हड़बू अथवा हरभजम के नाम से भी पुकारे जाते हैं। यह प्रसिद्ध मेहाजी मांगलिया (साँखला) के पुत्र थे । अपने पिता की भाँति यह भी चिर यश के भागी बने । अपने पिता मेहाजी के वीरता और मान मर्यादा पालन के सभी गुण इनमें भी थे।

अपने पिता मेहाजी के वीरगति पाने के बाद हरभू ने भू डेली गाँव छोड़कर हरभजनलाल गाँव में अपना डाल दिया । यह स्थान फलोदो कस्बे के गांव चाख से पाँच कोस की दूरी पर स्थित था । अपने नए स्थान पर आने के बाद उनको भेंट रामदेवजी तँवर (रामशाह पोर) से हुई ।

रामदेव जी इनके मौसेरे भाई कहे जाते थे । रामदेवजी ने गुरु बालनाथ जी हरभू ने दीक्षा लेकर उपदेश ग्रहण किया । हरभू संसार से विरक्त होकर सन्त का सा जीवन बिताने को तैयार हो गए।

हरभूजी – राजस्थान के लोक देवता (3)

 हरभूजी – राजस्थान के लोक देवता (3)

हरभू ने अपने शस्त्रों का त्याग कर दिया और स्थान बदलकर लोलरे गांव प्राकर साधू जीवन बिताने लगे । यहाँ पर अपाहिजों और निर्बलों के वे सहारा बन गए । उनकी शरण में आकर अनेक जीव प्राश्रय और अभयदान पाने लगे। कहा जाता है कि राव जोधाजी ने भी अपने संकट के दिन हरभूजी के पास रहकर बिताए थे ।

राव जोधाजी जब हरभूजी की सतसंग छोड़कर जाने लगे तब इन्होंने राव जोधाजी को यह अर्शीवाद दिया था कि जब तक तुम्हारे पेट में, यहां के खाए मूंग रहेंगे तब तक जितनी भूमि पर तुम घोड़ा फेर सकोगे, उतनी भूमि पर तुम्हारे वंश का राज्य रहेगा।

राव जोधा को यह आर्शीवाद फला तब हरभूजी को बेहंगटी गांव भेंट ( सांसण ) में प्राप्त हुआ जो हरभूजी का वंश भोगता रहा । यह वेहंगटी गांव फलौदी से पश्चिम में पांच कोस और पोकरण से दस कोस की दूरी पर है । हरभूजी श्रौर रामदेवजी के आपस में बहुत सतसंग होता था। दोनों में आपस में बहुत स्नेह था ।

रामदेव जी ने जब समाधि ली तो उन्होंने भविष्यवाणी की कि यहीं पर पास में ही एक खड्डा और खोद रखो क्योंकि आठ दिन पश्चात संत हरभूजी भी यही समाधि लेंगे । उनकी यह बात भी सच निकली ।

वीरवर हरभूजी क्षत्रिय वंश में जन्म लेकर अपना क्षत्रिय धर्म पालते रहे और जब बालनाथजी से दीक्षा ली तो फिर भजन करके पूर्ण सन्त महात्मा बन गए | अपने शरीर का अन्त हरि स्मरण करते समाधि लेकर किया । हरभूजी अपने साधु जीवन में पंगु गायों के लिए घास भर कर गाड़ी में दूर-दूर से लाते थे । उनको यह गाड़ी आज भी फलौदी के पास बेहंगटी गांव में पड़ी है और पूजी जाती हैं ।

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