मारवाड़ के राजाओं का परिचय

Kheem Singh Bhati
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मारवाड़ के राजाओं का परिचय – चूण्डा ने अपना राज्य फैलाया। उसके अधिकार में मंडोर के अलावा खाटू, डीडवाना, सांभर, नाडौल भी थे। चूण्डा को जैसलमेर के भाटियों तथा नागौर के मुसलमान शासक के साथ संघर्ष करना पड़ा। सन् 1424 में चूण्डा भाटियों व सांखलों की संयुक्त सेना से, जिसे मुल्तान का सूबेदार सलीम सहायता कर रहा था, लड़ता हुआ मारा गया।

चूण्डा ने अपने जीवन काल में मारवाड़ में राठौड़ शासन स्थापित करने में बड़ी सफलता प्राप्त की। राठौड़ों का वह प्रथम शक्तिशाली शासक था। चूण्डाजी की इच्छा के अनुसार उसका छठा पुत्र कान्हा राजगद्दी पर बैठा। उसने विद्रोही सरदार पुणपाल सांखला को मारकर उसका जांगलू क्षेत्र अपने राज्य में मिला लिया लेकिन नागौर क्षेत्र उसके कब्जे से निकल गया।

इस लेख का पिछला हिस्सा पढे —– मारवाड़ में राठौड़ राजवंश की स्थापना

शमसखां के पुत्र फीरोज ने नागौर पर कब्जा कर लिया। कान्हा ने लगभग ग्यारह महीने राज्य किया। उसके पश्चात् उसका बड़ा भाई सत्ता राजगद्दी पर बैठा लेकिन शीघ्र ही 1427 में उसके बड़े भाई रणमल ने उसे पदच्युत कर दिया।

रणमल चूण्डा का ज्येष्ठ पुत्र था लेकिन वह अपने पिता की आज्ञा से राज्याधिकार छोड़कर 1407 में जोजावर जाकर बस गया और बाद में मेवाड़ चला गया। मेवाड़ के महाराणा ने उसे धणला गाँव सहित कुछ गाँव जागीर में दिये। मेवाड़ में रहते उसकी बहन हंसा बाई का विवाह महाराणा लाखा से हो गया, जिससे बाद में पुत्र मोकल जन्मा।

रणमल ने महाराणा को प्रसन्न कर लिया था अतः उसकी मृत्यु के पश्चात् वह अपने भानजे का संरक्षक बन गया। रणमल ने राज्य के प्रमुख पदों पर अपने विश्वसनीय व्यक्तियों को नियुक्त कर दिया। मेवाड़ का वह वास्तविक शासक बन गया। यह मेवाड़ के सरदारों को अच्छा न लगा। मेवाड़ में रहते वह मारवाड़ के शासन में भी हस्तक्षेप करने लगा।

उसने अपनी शक्ति बढ़ा कर मण्डोर पर आक्रमण कर दिया। इस समय राव सत्ता मण्डोर का शासक था। रणमल का सामना राव सत्ता के पुत्र नरवद ने किया लेकिन वह हार गया। रणमल का 1428 में मण्डोर पर कब्जा हो गया। मण्डोर का शासक बनने के पश्चात् भी रणमल मेवाड़ के शासन में हस्तक्षेप करता रहा।

मारवाड़ के राजाओं का परिचय

इससे मेवाड़ के सरदार ज्यादा ही परेशान हो गये, तभी महाराणा मोकल की दासी पुत्रों चाचा व मेरा’ ने हत्या कर दी। उस समय रणमल मण्डोर में ही था । वह तत्काल मेवाड़ पहुँचा और महाराणा के हत्यारों को मार डाला और नये महाराणा कुंभा के संरक्षक के रूप में मेवाड़ में रहने लगा। महाराणा कुंभा को कई विजयों में सहायता की।

लेकिन मेवाड़ के सरदार र्णमल के विरुद्ध ही रहे। उन्होंने कुंभा को बहका कर रणमल के विरुद्ध कर दिया, तब रणमल चित्तौड़ दुर्ग में तथा उसका पुत्र जोधा तलहटी के महलों में रहते थे। एक दिन जब रणमल शराब के नशे में था तब उसे खाट पर बांधकर मार डाला। जोधा को जब यह पता लगा तो वह भागकर मण्डोर पहुँचा। यह घटना सन् 1438 की है ।

रणमल एक वीर व कुशल प्रशासक था। उसने बड़ी कुशलता व ईमानदारी से मेवाड़ का शासन चलाया था। लेकिन महाराणा कुम्भा ने अपने सामन्तों के बहकाने से उन्हें मरवा दिया। रणमल के 26 राजकुमार थे जिनमें से ज्येष्ठ पुत्र अखैराज था जिसे बगड़ी की जागीर दी।

उसके जोधपुर राज्य का त्याग करने के कारण उनके परिवार को जोधपुर शासक का राज्याभिषेक करने पर तिलक करने का अधिकार दिया गया जो अब तक चला आया है। द्वितीय पुत्र जोधा था जो बाद में उसका उत्तराधिकारी बना।

चित्तौड़ से जोधा अपने 700 सैनिक लेकर मारवाड़ की ओर रवाना हुआ। मेवाड़ की सेना ने राठौड़ों का पीछा किया । कपासन के पास दोनों दलों के बीच युद्ध हुआ लेकिन राठौड़ सामना न कर पाने के कारण वहाँ से भाग निकले। जोधा किसी प्रकार मण्डोर पहुंच गया। वहाँ वह सैनिक एकत्र कर बीकानेर की ओर चला गया और काहूनी गाँव को अपना आधार केम्प बनाया।

मेवाड़ की सेना ने मण्डोर पर कब्जा कर लिया। महाराणा कुंभा ने कोसाणा तथा चौकड़ी में सुरक्षा चौकियां स्थापित की। उसने चूण्डा के पौत्र तथा सहसमल के पुत्र राघव राठौड़ को सोजत तथा नरवद सतावत को कायलाना सहित कई गाँवों की जागीर दी। मेवाड़ी सेना ने काहुनी पर भी आक्रमण किया ताकि जोधा शांति से बैठा न रह सके।

जोधा ने धैर्य रखा और उसने हड़बू सांखला का बैंगटी जाकर आशीर्वाद प्राप्त कर कुछ सेना इकट्ठी कर मण्डोर पर कब्जा कर लिया। जोधा ने चौकड़ी, कोसाणा, मेड़ता, सोजत, अजमेर, नाडौल आदि पर भी आक्रमण किया। सन् 1453 में उसकी महाराणा कुंभा से संधि हो गई। संधि के अनुसार बावल वाली भूमि जोधपुर की तथा आंवल वाली भूमि महाराणा के अधिकार में मानी गयी।

सन् 1453 में जोधा ने मण्डोर दुर्ग में अपना राजतिलक किया।’ मंडोर को राज्य की सुरक्षा हेतु उचित न मानकर राव जोधा ने 12 मई 1459 को मंडोर से 9 किलोमीटर दक्षिण में पचेटिया पहाड़ की चिड़िया टूंक पर नये किले की नींव रखी और वहाँ दुर्ग बनाकर उसकी तलहटी में अपने नाम से जोधपुर नगर बसाया।

सन् 1461 में उसने अपने पुत्रों-बरसिंह और दूदा को मेड़ता पर अधिकार करने के लिये भेजा। तब मेड़ता पर अजमेर के सूबेदार का अधिकार था। उन्होंने मेड़ता व उसके आसपास के 360 गाँवों पर अधिकार कर लिया। सन् 1465 में जोधा के पुत्र बीका ने उत्तर में जांगलू की ओर जाकर एक नये राज्य की स्थापना की जो बीकानेर राज्य कहलाया।

सन् 1467 में राव जोधा ने फतेखां से नागौर जीत लिया। फतेखां झुंझुनूं की ओर चला गया। सन् 1474 में राव जोधा के पुत्र बीदा ने छापर द्रौणपुर पर कब्जा कर लिया। जोधा के अधिकार क्षेत्र में मंडोर, जोधपुर के अलावा फलौदी, पोकरण, महेवा, भाद्राजून, सांभर, अजमेर और नागौर का काफी क्षेत्र था।

बीकानेर और छापर द्रौणपुर पर उसके पुत्रों का अधिकार था। उसके राज्य की सीमा पश्चिम में जैसलमेर, दक्षिण में अरावली तथा उत्तर में हिसार तक थी। राव जोधा द्वारा जोधपुर नगर में राणीसर तालाब तथा चार बावड़ी बनवाई गई। सन् 1460 में जोधपुर दुर्ग में चामुण्डा मन्दिर बनवाया गया।

राव जोधा की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र सातल राजगद्दी पर बैठा। उसको फलौदी के पास कुण्डल का क्षेत्र उसके ससुर ने दिया। वह अजमेर केसूबेदार मल्लूखां की सेना से लड़ता हुआ कोसाना के युद्ध में घायल होकर सन् 1491 में स्वर्ग सिधारा ।’

राव सातल अपने छोटे भाई सूजा के तृतीय पुत्र नरा को गोद लेना चाहता था लेकिन सूजा ने नरा को फलौदी की जागीर दे दी और स्वयं राजगद्दी पर बैठ गया। उधर नरा को पोकरण के राठौड़ों ने बाड़मेर के राठौड़ों की सहायता से मरवा दिया। इस कारण सूजा ने अपने पुत्र की हत्या का बदला लेने के लिए बाड़मेर, कोटड़ा आदि को लूटा।

इसी बीच बीकानेर का राव बीका, जिसे राव जोधा ने उसके स्वतंत्र राजा होने के कारण राज चिह्न आदि देने का वायदा किया था, उन्हें लेने के लिये मारवाड़ पर चढ़ आया । तब सरदारों ने दोनों भाइयों के बीच समझौता करा दिया और बिना किसी रक्तपात के बीका राजचिह्न लेकर लौट गया। राव सूजा की मृत्यु सन् 1515 में हुई।

राव सूजा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र युवराज बाघा को उसकी मृत्यु के समय यह वायदा किया था कि उसकी मृत्यु के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र वीरम को राजगद्दी पर बैठाया जावेगा लेकिन सूजा की मृत्यु के बाद जब वीरम का राजतिलक होना था, तब सरदारों ने वीरम से कुछ कारणों से नाराज होकर बाघा के छोटे पुत्र गांगा को राजगद्दी पर बैठा दिया। तब से ही मारवाड़ में यह कहावत प्रचलित हो गई-

‘रिड़मलां थापिया तिके राजा’ अर्थात् रिड़मल के वंशज सरदारों ने जिसे गद्दी पर बिठा दिया वही राजा हो गया।

राव गांगा ने राजगद्दी पर बैठने से पूर्व मेवाड़ के महाराणा सांगा की सहायता गुजरात के सुल्तान के विरुद्ध की थी। राजगद्दी पर बैठने के पश्चात् भी सन् 1517 में उसने गुजरात के मुजफ्फरशाह के विरुद्ध सहायता की थी। सन् 1520 में भी उसने महाराणा सांगा की सहायतार्थ 700 घुड़सवार निजामुल्मुल्क के विरुद्ध भेजे थे।

इसी सहायता के कारण ईडर की राजगद्दी राव रायमल को मिल सकी। सन् 1527 में उसने बाबर के विरुद्ध लड़ने को महाराणा सांगा की सहायतार्थ 4000 घुड़सवार भेजे थे। उसका बड़ा भाई वीरम जब सोजत में उपद्रव करने लगा तब गांगा ने उसका दमन कर सोजत को जब्त कर लिया। गांगा सन् 1531 में अफीम के नशे में महलों से नीचे गिरने से मर गया ।’

गांगा ने गांगेलाव तालाब और गांगा की बावड़ी बनवाई थी। उसकी रानी पद्मावती ने, गंगश्याम की मूर्ति अपने पीहर सिरोही से लाकर गंगश्यामजी के मन्दिर का निर्माण कराकर स्थापित की थी ।

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