कृष्णा कुमारी: जिनकी आत्महत्या ने दो राज्यों (जोधपुर और जयपुर) का युद्ध रोका

Kheem Singh Bhati
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उदयपुर के महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णा कुमारी की सगाई जोधपुर के महाराजा भीमसिंह के साथ की गई थी, लेकिन विवाह के पूर्व ही महाराजा भीमसिंह की मृत्यु हो जाने के कारण उसकी सगाई जयपुर नरेश जगतसिंह के साथ कर दी गई। इसी समय पोकरण ठाकुर सवाईसिंह की पुत्री का भी विवाह होने वाला था ।

विवाह का आयोजन जयपुर में करने के उद्देश्य से वे जयपुर चले गये तथा वहीं विवाह की तैयारियाँ करने लगे। महाराजा मानसिंह को यह उचित प्रतीत नहीं हुआ, अतः उन्होंने सवाईसिंह के इस कार्य को अनुचित ठहराते हुए उसे सूचित किया कि उसे जोधपुर में ही अपनी पुत्री के विवाह का आयोजन करना चाहिये।

इस पर सवाईसिंह ने प्रत्युत्तर भिजवाया कि उसकी पुत्री का विवाह जयपुर में करना इसलिये अनुचित नहीं है कि उसका भाई जयपुर के गीजगढ़ का ठाकुर है तथा उसकी जयपुर स्थित हवेली में विवाह होगा।

कृष्णा कुमारी: जिनकी आत्महत्या ने दो राज्यों (जोधपुर और जयपुर) का युद्ध रोका
कृष्णा कुमारी: जिनकी आत्महत्या ने दो राज्यों (जोधपुर और जयपुर) का युद्ध रोका

अतः यह अनुचित अथवा अपमानजनक नहीं है, लेकिन महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णा कुमारी का सम्बन्ध पहले महाराजा भीमसिंह के साथ कर दिया गया था तथा अब उसका सम्बन्ध जयपुर नरेश जगतसिंह के साथ किया जा रहा है, यह मारवाड़ के लिये अपमानजनक है।

मानसिंह ने इस सम्बन्ध में जाँच करवाई और सवाईसिंह की बात को सत्य पाकर उसने महाराणा भीमसिंह से कहलाया कि राजकुमारी कृष्णा कुमारी का सम्बन्ध जयपुर नरेश जगतसिंह के साथ नहीं किया जाय। महाराणा भीमसिंह ने मानसिंह की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया तथा जयपुर के लिये टीका भेज दिया। मानसिंह ने टीका लेकर जाने वाले दल को रोकने के लिये अपनी सेना भेज दी।

टीका ले जाने वाला दल शाहपुरा पहुँचा। उधर सवाईसिंह ने जयपुर नरेश को उत्तेजित किया। उसने बताया कि टीका लौट जाने से जयपुर घराने का घोर अपमान होगा। इस प्रकार जयपुर नरेश को मानसिंह के विरुद्ध उत्तेजित करने में सवाईसिंह सफल हो गया। शाहपुरा नरेश की मध्यस्ता के कारण टीका ले जाने वाले दल के साथ राठौड़ों का युद्ध नहीं हुआ और टीका पुनः उदयपुर लौट गया।

सवाईसिंह ने अब टीका लौट जाने के प्रसंग को लेकर जयपुर नरेश जगतसिंह को उत्तेजित करना आरम्भ किया। उसने बताया कि टीका लौट जाने से जयपुर घराने का अत्यधिक अपमान हुआ है, अतः इस अपमान का बदला लिया जाना चाहिये।

उसने अब धौंकलसिंह का प्रश्न भी जगतसिंह के सम्मुख रखा व बताया कि यदि जगतसिंह धौंकलसिंह को सहयोग देकर उसे उसका अधिकार दिलवा देते है तो वह कृष्णा कुमारी के विवाह का कोई विरोध नहीं करेगा तथा साथ ही अनेक राठौड़ सरदार भी जयपुर के पक्ष में हो जाएँगे, इससे वह मानसिंह से अपने इस अपमान का बदला भी ले सकेगा।

जगतसिंह ने सवाईसिंह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है,  इस समय अमीरखाँ पिण्डारी का दल राजस्थान में काफी प्रभावी हो गया था। जयपुर व जोधपुर के शासकों ने युद्ध में उसे अपनी ओर मिलाने का प्रयत्न आरम्भ किया। जयपुर नरेश जगतसिंह अमीरखाँ को अपने पक्ष में करने में सफल हो गया।

मानसिंह ने सिंधिया व होल्कर से भी सहायता प्राप्त करने का प्रयत्न किया, लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली। जगतसिंह को इस समय अमीरखाँ, हैदराबाद के मीर मकदृज बाजिदखाँ, खुदाबक्श तथा बीकानेर नरेश सुरतसिंह आदि का सहयोग प्राप्त था। सवाईसिंह के पक्ष के अनेक राठौड़ भी जगतसिंह के पक्ष हो गये थे। अब यह विशाल सेना लेकर जगतसिंह जोधपुर की ओर बढ़े।

गिंगोली नामक स्थान पर दोनों सेनाएँ आमने सामने पहुँच गईं। यहाँ ज्योंही लड़ाई आरम्भ हुई कि मानसिंह की सेना के अनेक सरदार जगतसिंह के पक्ष में हो गये। इस पर विवश होकर मानसिंह जोधपुर लौट आया। यहाँ से जालौर भागने का निश्चय किया, लेकिन कुछ सरदारों के आग्रह से उसने जोधपुर में ही रुकने का निर्णय लिया।

जगतसिंह भी अपने विशाल दल सहित 30 मार्च सन् 1807 (संवत् 1863) को जोधपुर पहुँच गये। जोधपुर शहर पर अधिकार कर लिया गया तथा धौंकलसिंह को जोधपुर का शासक घोषित कर दिया गया ।

मानसिंह ने इन्द्रराज सिंघी आदि को कारवास में डाल रखा था। अब उन्हें मुक्त किया गया। इन्द्रराज के द्वारा मानसिंह ने सवाईसिंह को समझाने का प्रयत्न किया । इन्द्रराज सवाईसिंह को समझाने के लिये पहुँचा, लेकिन उसका कोई फल नहीं निकला। अब इन्द्रराज व भण्डारी गंगाराम ने परबतसर पहुँच कर वहाँ अधिकार कर लिया। इधर अमीरखाँ को जगतसिंह से पूर्व वायदे का धन प्राप्त नहीं हो रहा था।

अवसर का लाभ उठाते हुए इन्द्रराज ने अब अमीरखाँ को अपने पक्ष में करने की सफलता प्राप्त कर ली। अमीरखाँ का सहयोग पाकर अब इन्द्रराज ने जयपुर की ओर प्रयाण किया। फागी नामक स्थान पर युद्ध हुआ, जिसमें जयपुर सेना पराजित हुई। जगतसिंह घबरा गये। सवाईसिंह का भी अब घेरा उठा कर भागने के लिये बाध्य होना पड़ा। सवाईसिंह व धोकलसिंह नागौर चले गये।

इस प्रकार मानसिंह सम्भावित हानि से बच गये। इस समस्त कलह का मूल सवाईसिंह था। मानसिंह ने अमीरखाँ को अब उसकी हत्या के लिये प्रेरित किया। अमीरखाँ उसकी हत्या करने में सफल हो गया।’ सवाईसिंह की हत्या के उपरान्त उसके पुत्र सालिमसिंह ने उत्पात करना आरम्भ किया, लेकिन शीघ्र ही वह मानसिंह के पक्ष में हो गया। मानसिंह ने उसे दुनाड़ा, मजूल आदि ग्राम जागीर में दे दिये ।

कृष्णा कुमारी की हत्या-

कृष्णा कुमारी के कारण जयपुर व जोधपुर के मध्य तनाव बढ़ा हुआ था। अमीरखाँ ने महाराणा को सूचित किया कि या तो वह कृष्णा कुमारी का विवाह मानसिंह से कर दे अथवा उसकी हत्या कर दे अन्यथा वह ( अमीरखाँ) उसके प्रदेश को उजाड़ देगा।

अमीरखों का यह प्रस्ताव लेकर चंडावत अजीतसिंह महाराणा के पास पहुँचा। चंडावत-शक्तावत संघर्ष के कारण मेवाड़ की दशी अत्यन्त दयनीय हो गई थी. अतः 21 जुलाई 1810 को राजकुमारी ने स्वयं आत्महत्या कर ली और खूनखराबा रुक गया।

नोट – यह आलेख महेंद्र सिंह नगर द्वारा लिखित “मारवाड़ के राजवंश की सांस्कृतिक परम्पराएं” से लिया गया है। 

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