महात्मा गाँधी का भारत छोड़ो आन्दोलन
कांग्रेस ने एक बार फिर अंग्रेजी सरकार से पूर्ण स्वाधीनता की माँग की। सरकार ने इस माँग को ठुकरा दिया। महात्मा गाँधी ने एक बार फिर देश की बागडोर हाथ में ली। 8 अगस्त, 1942
बम्बई में कांग्रेस के अधिवेशन में विचार-विमर्श कर 9 अगस्त 1942 के दिन ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव कांग्रेस ने स्वीकार कर लिया।
अगले दिन ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का संघर्ष शुरू हो गया। देश में आग लग गई। यह स्वाधीनता का अन्तिम युद्ध था। अन्य सत्याग्रह-युद्धों की तरह यह पूर्ण रूप से अहिंसात्मक नहीं था। गाँधीजी ने ‘करो या मरो’ नारे के साथ भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में एक नई जान फूंक दी। सारा देश गाँधीजी के नेतृत्व में जाग उठा। सरकार ने गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया। कांग्रेस के अन्य बड़े नेताओं को पकड़कर जेलों में ठूंस दिया गया।
लेकिन आजादी के दीवाने संघर्ष करते रहें। उनके कदम आगे बढ़ते रहे। विवश होकर अंग्रेजी सरकार ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। हजारों निर्दोष मारे गये, लाखों घायल हुए और हजारों को जेलों में ठूंस दिया गया।
इतना सब होते हुए भी जनता की आवाज न दबी। जेल-यात्रा के पहले सप्ताह में ही 15 अगस्त, सन् 1942 के दिन महादेव भाई के निधन पर महात्मा गाँधी को बहुत दुःख हुआ। उधर आगा खाँ महल में कैद महात्मा गाँधी अपने देशवासियों पर हो रहे अत्याचारों की खबरें सुन बहुत दुःखी थे। गाँधीजी ने अत्याचारों से दुःखी होकर 10 फरवरी, सन् 1943 को इक्कीस दिन के उपवास की घोषणा कर दी। उनके स्वास्थ्य में निरन्तर गिरावट आने लगी। लेकिन उन्होंने उपवास न तोड़ा। उसे पूर्ण किया ।
गाँधीजी की देखभाल करने गई श्रीमती कस्तूरबा स्वयं बीमार हो गई। इलाज का उचित प्रबन्ध न होने के कारण अन्ततः 22 फरवरी सन् 1944 को सायं सात बजकर पच्चीस मिनट पर उनका निधन हो गया।
6 मई, 1944 को गाँधीजी को जेल से रिहा कर दिया गया। जेल से रिहा होने के बाद गाँधीजी ने देखा कि पूर्ण स्वाधीनता के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट मि. जिन्ना थे। मि. जिन्ना ने मुसलमानों के लिए ‘पाकिस्तान’ का राग अलापना शुरू कर दिया था। अंग्रेजों ने भी ‘मुस्लिम लीग’ संस्था की स्थापना की। महात्मा गाँधी स्वयं जिन्ना से मिलने बम्बई गये।
उन्होंने जिन्ना को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं माने। अन्त में देश के नेता हिन्दुस्तान को दो भागों में खण्डित करना मान गये। महात्मा गाँधी इसके सख्त विरोधी थे लेकिन अपने अनुयायी नेताओं के आगे वे कुछ नहीं बोले। उन्होंने कहा-“जो व्यवस्था मेरे सहयोगियों को पसन्द है।
उसके विरुद्ध मैं अनशन नहीं करूँगा।”
2 दिसम्बर, 1946 को कांग्रेस ने अन्तरिम सरकार बनाई। इस सरकार के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू बने, जो वायसराय के ही अधीन थे। मुस्लिम लीग के नेताओं ने देश में साम्प्रदायिक दंगे शुरू कर दिये। कलकत्ता में इस मंत्रिमण्डल के विरोध में मुसलमानों ने भयंकर रक्तपात प्रारम्भ कर दिया। जगह-जगह हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो रहे थे। महात्मा गाँधी दंगा प्रभावित स्थानों पर जाते थे। और जनता को प्रेम, शान्ति एवं अहिंसा का सन्देश देते थे।
3 जून, 1947 को भारत और इंग्लैण्ड के मध्य एक घोषणा की गई कि भारत और पाकिस्तान दो स्वतन्त्र देश होंगे जिसे ब्रिटेन की संसद ने निर्विरोध पास कर दिया।