महात्मा गाँधी – जन्म से मृत्यु तक | Mahatma Gandhi – Biography

Kheem Singh Bhati
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महात्मा गाँधी – स्वतन्त्र हुआ भारत

15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ परन्तु उसका दो स्वतन्त्र राष्ट्रों में विभाजन हुआ। भारत-पाकिस्तान विभाजन के साथ ही रक्तपात का दौर आरम्भ हो गया। लाखों लोग बेघर हो गये। अनेक लोग अपने प्रियजनों को खोकर अनाथ हो गये। पूर्व बंगाल में नोआखाली और ‘तिप्पेरा’ में हिन्दुओं का जो कत्ल हुआ और स्त्रियों पर जो अमानुष अत्याचार हुए यह मानवता पर कलंक था। बर्बरता का साम्राज्य फैला था।

ऐसी भयावह स्थिति में महात्मा गाँधी ने शान्ति दूत बनकर उन क्षेत्रों में जाने का निर्णय लिया। राजनीतिक उन्माद और धर्मान्धता क्रूरता की सीमा तक पहुँच चुकी थी। महात्मा गाँधी हिन्दू-मुस्लिमों में शान्ति स्थापित करने का निश्चय किया। गाँधीजी 78 वर्ष की आयु में गाँव-गाँव पैदल गये। दुःखी, पीड़ित लोगों को आशा और हिम्मत बँधाई।

नोआखाली जाकर वहाँ फैले दानवी आग बुझाने का प्रयास किया। पंजाब में ज्वालामुखी फूट पड़ा था। कल्लेआम जारी था। पंजाब की आग शान्त करने के लिए गाँधीजी नोआरवाली से पंजाब के लिए चल पड़े। दिल्ली पहुँचने पर आपने देखा कि दिल्ली की गलियों में खून की होली शुरू हो गई थी। जवाहरलाल ने महात्मा गाँधी से दिल्ली में ही ठहरने का आग्रह किया। दिल्ली का रक्तपात देखकर महात्मा गाँधी ने आमरण अनशन की घोषणा कर दी।

तीन-चार दिन के अनशन के बाद ही दिल्ली में उपद्रव बन्द हो गये। गाँधीजी के इस त्याग से कुछ लोग प्रसन्न हुए लेकिन कुछ अप्रसन्न थे। गाँधीजी की अहिंसा उन्हें पसन्द नहीं थी। लाखों लोग पंजाब से दिल्ली आते थे और महात्मा गाँधी से अपने दुःखों को बताते। तब लोगों से गाँधीजी कहते थे-“सब कुछ मेरे हाथ में नहीं है, मेरे वश में हो तो में वायसराय भवन में निराश्रितों को बसने को कह दूँ।”

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