महात्मा गाँधी के साथ कुछ अमानवीय घटनाएँ
महात्मा गाँधी नेटाल राज्य के डरबन के एक न्यायालय में वहाँ का वातावरण देखने के लिए अब्दुल्ला सेठ के साथ गये थे। उन्हें गुजराती पगड़ी बाँधे देखकर गोरा न्यायाधीश चिढ़ गया और उन्हें पगड़ी उतारने का आदेश दिया। गाँधीजी ने पगड़ी उतारना अस्वीकार कर दिया और न्यायालय के बाहर निकल आये। दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी को यह पहला अपमान सहना पड़ा। यह घटना अखबारों में निकल गई। इसकी खूब चर्चा हुई। चार-पाँच दिनों में ही गाँधीजी का नाम वहाँ के हर एक की जुबान पर था।
एक सप्ताह के बाद महात्मा गाँधी प्रथम श्रेणी के टिकट पर यात्रा कर रहे थे । गाड़ी नेटाल की राजधानी मोरित्सवर्ग स्टेशन पहुँची। कड़ाके की ठंडी रात थी। ऐसे में एक रेलवे अधिकारी गाँधीजी के पास आया।
उसने गाँधीजी से कहा-“आपको दूसरे दर्जे में जाना होगा।”
“क्यों? मेरे पास पहले दर्जे का टिकट है।”
गाँधीजी ने कहा। “मैं डरबन से इसी डिब्बे में बैठा हूँ और बैठा रहूँगा।”
“कोई बात नहीं। तुम्हें उतरना ही होगा।”
“तुम नहीं उतरोगे तो सिपाही आकर उतार देगा।”
“सिपाही आकर भले ही उतार दे, मैं अपने-आप नहीं उतरूँगा।” महात्मा गाँधी धीजी नहीं उतरे। तभी सिपाही आया। उसने गाँधीजी का सामान उठाकर प्लेटफार्म पर फेंक दिया। उन्हें धक्के मारकर नीचे उतार दिया। वहीं स्टेशन पर बैठ गये। गाड़ी आगे बढ़ गई। वे रात भर ठिठुरते रहे। महात्मा गाँधी अपने अपमान पर देर तक विचारों में डूबे रहें।
दुख से उनका हृदय भर गया। दूसरे दिन उन्होंने अपनी आधी यात्रा घोड़ा गाड़ी पर सवार होकर और थोड़ी यात्रा रेलगाड़ी में बैठकर पूरी की। सिर्फ यूरोपियन लोग ही घोड़ा-गाड़ी के अन्दर बैठकर यात्रा करते थे। महात्मा गाँधीउनके पास नहीं बैठ सकते थे। वे गाड़ीवान के पास बाहर बैठे। थोड़ी देर बाद उन्हें पायदान पर बैठने का आदेश दिया गया। गाँधीजी के लिए यह अपमान असहनीय था।
उन्होंने आदेश मानने से इन्कार कर दिया। गाड़ी के अंग्रेज निरीक्षक ने महात्मा गाँधी को चाबुक से पीटना शुरू कर दिया। गाँधीजी प्रहार सहन करते रहे लेकिन अपनी जगह से हिले नहीं। अन्त में यात्रियों ने निरीक्षक को रोका। वहाँ पर कदम-कदम पर कुली कहकर अपमानित करने वाले लोग मौजूद थे।
यूरोपियन की दृष्टि में सभी भारतीय कुली थे। जो व्यापारी थे वे ‘कुली व्यापारी’, बैरिस्टर महात्मा गाँधी ‘कुली बैरिस्टर’ माने जाते थे। भारतीयों को ‘गिरमिटिया’ और समी इन अपमानजनक शब्दों से भी उनको बुलाया जाता था। ‘गिरमिटिया’ उन लोगों को कहा जाता था जो ‘एग्रीमेन्ट’ पर भारत से अंग्रेजों के साथ यहाँ कार्य करने आए थे।
‘गिरमिट’ ‘एग्रीमेन्ट’ का बिगड़ा हुआ रूप था। गिरमिटिया एक प्रकार से अपने मालिकों की सम्पत्ति होते थे। वे नौकरी छोड़कर दूसरी जगह नहीं जा सकते थे।
प्रीटोरिया पहुँचने पर महात्मा गाँधी को कोई भी होटलवाला अपने यहाँ ठहराना नहीं चाहता था। अन्त में एक नीग्रो की सिफारिश पर उन्हें एक होटल में रहने की जगह मिली। एक बार महात्मा गाँधी को रात नौ के बाद बाहर रहने के कारण गश्त देने वाले सिपाही ने मारा था । अंग्रेजों की निगाह में भारतीय मानव नहीं समझे जाते थे।
वहाँ रहने वाले हजारों भारतीयों की इस प्रकार यह जीवन-मृत्यु की समस्या थी। यह आत्म-सम्मान की समस्या थी। सारे भारतीय इस लज्जास्पद व्यवहार को मूक होकर सहन करते थे।