महात्मा गाँधी – जन्म से मृत्यु तक | Mahatma Gandhi – Biography

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महात्मा गाँधी और बोअर युद्ध

अंग्रेज गोरों के हाथ से इतने अत्याचार सहने के बाद भी गाँधीजी ने 1899 के ‘बोअर युद्ध’ में अंग्रेजी साम्राज्य का साथ दिया। क्योंकि अफ्रीका के मूल निवासी बोअर ने अनीतिपूर्ण ढंग से अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध कर दिया था। गाँधीजी ने घायल अंग्रेजी सिपाहियों की सेवा के लिए भारतीयों का एक दल बनाया।

इस दल ने युद्ध के मैदान में जाकर जान को जोखिम में डालकर सेवा का काम किया। घायलों को डोली में रखकर दूर ले जाना और दवा-दारू करना इस दल का काम था। यह मानवता के प्रति गाँधीजी का पहला कर्तव्य था।

अब धीरे-धीरे गोरे-काले का भेदभाव मिटता जा रहा था। इस सेवा कार्य करने के बाद दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों का सम्मान होने लगा। छह सप्ताह तक सेवा कार्य चलता रहा। इस प्रकार गाँधीजी ने वहाँ अपनी कार्यकुशलता का ऐसा परिचय दिया कि जनता को ही नहीं बल्कि सरकार को भी उनके सामने झुकना पड़ा।

स्वदेश वापसी गाँधीजी जब भारत वापस आ रहे थे तो भारतीयों ने गाँधीजी को बहुत-सी कीमती चीजें भेंट में दी। गाँधीजी ने उन सब चीजों को बेचकर जो धन आया उसे जन-सेवा के लिए एक संस्था को दान कर दिया।

इन भेंटों को वापस करने पर कस्तूरबा से कहा-सुनी हो गई। श्रीमती कस्तूरबा भेंट में मिली सोने की कंठियाँ और हीरे की अंगूठियों को वापस करने के पक्ष में नहीं थी। लेकिन गाँधीजी ने भाले जैसे तीखे तानों को सहते हुए सब चीजें वापस कर दी। इस प्रकार गाँधीजी खाली हाथ दक्षिण अफ्रीका गए थे और उसी प्रकार खाली हाथ लौट आए।

स्वदेश वापस आकर गाँधीजी अधिकांश समय भ्रमण करते रहे। उन्होंने देखा कि भारत में भी स्वतन्त्रता संग्राम में तेजी आ चुकी है। गाँधीजी ने देशपाण्डे, सर फिरोजशाह मेहता, बालगंगाधर तिलक, भण्डारकर तथा गोखले आदि स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों से भेंट की।

इन सब महानुभावों से मिलकर गाँधीजी बहुत ही प्रसन्न हुए। सभी ने उन्हें पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया। यहाँ भी गाँधीजी भाषणों के द्वारा अपना विचार प्रकट करते थे और दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के प्रति हो रहे अमानवीय व्यवहार की चर्चा करते।

गाँधीजी ने बम्बई में रहकर अपने बैरिस्टरी की शुरुआत की। कुछ ही दिनों में उनका काम चल निकला। क्योंकि दक्षिण अफ्रीका की गतिविधियों के कारण अब गाँधीजी अपरिचित व्यक्ति नहीं रह गये थे।

कुछ ही दिनों बाद उन्हें से दक्षिण अफ्रीका से बुलावा आ गया कि-“चेम्बरलेन यहाँ आ रहे हैं, तुम शीघ्र यहाँ आ जाओ।” वे बुलावा पाते ही शीघ्र दक्षिण अफ्रीका रवाना हो गये ।

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