विपक्षी दलों को एकजुट करने की नीतीश की मुहिम में महाराष्ट्र में आसान हो सकती है राह

Sabal SIngh Bhati
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मुंबई, 30 अप्रैल ()। लोकसभा चुनाव 2024 की उल्टी गिनती शुरू हो गई है और सभी राष्ट्रीय विपक्षी पार्टियां राज्यों में अलग-अलग मोर्चो और स्तरों पर एकता बनाने में जुट गई हैं।

इस बार, जनता दल (यू) के अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एकजुट विपक्ष तैयार करने का बीड़ा उठाया है ताकि वह नौ साल से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन का मुकाबला कर सके।

विपक्षी दलों के अपने जोड़-घटाव के साथ एक साथ कई इंद्रधनुष वाली स्थिति के बावजूद नीतीश की राह मुश्किल है नामुमकिन नहीं।

कांग्रेस के अलावा किसी भी बड़े विपक्षी दल की अपने क्षेत्र विशेष से बाहर उपस्थिति, प्रभाव या राष्ट्रव्यापी विश्वसनीयता नहीं है – चाहे वह नीतीश की खुद की पार्टी जदयू हो या दिल्ली, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों की पार्टियां।

हालांकि, किसी भी विपक्षी मोर्चे के लिए महाराष्ट्र एक महत्वपूर्ण कारक होगा क्योंकि यहां 48 लोकसभा सीटें हैं जो उत्तर प्रदेश के बाद देश में सबसे अधिक है। यहां कई दल हैं जिनमें कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना (उद्धव गुट) की महाविकास अघाड़ी और वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) तथा अन्य छोटे दल शामिल हैं।

राज्य में मुख्य विपक्षी दलों के अपने गढ़ हैं और उनके समर्पित मतदाता हैं तो वहीं, वीबीए के पास लगभग 6-7 प्रतिशत और समाजवादी समूह के पास 7-8 प्रतिशत वोटर हैं। कम्युनिस्ट भी यहां शक्तिशाली हैं, हालांकि चुनिंदा इलाकों में ही उनके समर्थक हैं। यदि ये सभी मिलकर एक हो जाएं तो भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं।

प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता अतुल लोंधे आशावादी दिखते हैं। उन्होंने दावा किया, हिमालय का मार्ग सह्याद्री के रास्ते प्रशस्त होगा। महाराष्ट्र एक महत्वपूर्ण राज्य है और भाजपा हर जगह नीचे खिसक रही है। एमवीए के खाते में कम से 40 सीटें आएंगी। शुरुआत कर्नाटक से होगी।

राकांपा के मुख्य प्रवक्ता महेश तापसे ने कहा कि राज्य में एमवीए के तहत विपक्ष पहले से ही मजबूती से एकजुट है और कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने के बाद लोकसभा चुनावों के लिए केवल बारीकियां तय की जानी हैं।

तापसे ने कहा, हमेशा की तरह, बदलाव की बयार इसी राज्य से उठेगी। बेहद जरूरी बदलाव के लिए भाजपा को चुनौती देने के लिए एकजुट विपक्षी मंच का हिस्सा होगा।

शिवसेना (यूबीटी) के राष्ट्रीय प्रवक्ता किशोर तिवारी ने कहा कि केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में भाजपा विश्वसनीयता खो चुकी है क्योंकि उसका दृष्टिकोण सांप्रदायिक रूप से विभाजनकारी, गरीब-विरोधी और किसान विरोधी है और वह खुले तौर पर उद्योगों का समर्थन करती है।

तिवारी ने कहा, देश ने नौ साल तक चुपचाप झेला है और अब भाजपा के लिए बोरिया-बिस्तर बांधने का समय आ गया है। जनता की भावनाएं एक संयुक्त विपक्ष की चुनौती के माध्यम से राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बदलाव के पक्ष में हैं।

जद (यू) के राष्ट्रीय महासचिव कपिल पाटिल ने कहा कि नीतीश कुमार मई के मध्य में महाराष्ट्र पहुंचेंगे और शरद पवार, उद्धव ठाकरे, प्रकाश अंबेडकर सहित सभी विपक्षी दलों के शीर्ष नेताओं से मुलाकात करेंगे और उनके विचार जानेंगे तथा सहयोग की मांग करेंगे। .

पाटिल ने कहा, उन्होंने पहले ही कुछ सकारात्मक सुझाव दिए हैं – जैसे कम से कम 500 (कुल 543 में से) लोकसभा सीटों पर बीजेपी को एक-एक की चुनौती, कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं है और सभी दलों से व्यापक राष्ट्रीय हित के लिए समायोजन/बलिदान करने की अपेक्षाएं हैं।

उन्होंने नीतीश के दर्शन को दोहराया कि सिर्फ भाजपा या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने का विचार नहीं है, बल्कि यह संविधान की रक्षा, लोकतांत्रिक मूल्यों की जीत सुनिश्चित करने, समाजवादी औश्र क्षेत्रीय ताकतोंे और संघीय ढांचे की मजबूती और अंतिम व्यक्ति तक न्याय पहुंचाकर भारतीय लोकतंत्र के भविष्य को मजबूत करने की बात है।

पाटिल ने कहा, अगर महाराष्ट्र में सभी दल हाथ मिलाते हैं, तो यह निश्चित रूप से राष्ट्रीय स्तर के प्रयासों पर बड़ा असर डालेगा।

चुनावों के बाद 1977 की तर्ज पर खिचड़ी बनने की संभावना पर, कुछ नेताओं/समूहों के पाला बदलने की आशंकाओं पर पाटिल ने मुस्कुराते हुण् कहा कि अनेकता में एकता भारतीय प्रजातंत्र की पहचान है।

जद (यू) नेता ने कहा कि खिचड़ी देश के लोकतांत्रिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होगी और हालांकि यह काल्पनिक प्रश्न है, उन्होंने विश्वास जताया कि सब लोग मिलकर देश की भलाई के लिए काम करेंगे।

एकेजे

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