सोजत का किला – मारवाड़ का सीमावर्ती दुर्ग

Kheem Singh Bhati
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सोजत का किला। सोजत का किला मारवाड़ का सीमावर्ती दुर्ग है जो जोधपुर से लगभग 110 कि०मी० पर स्थित है। मारवाड़ और मेवाड़ के लगभग मध्य में स्थित होने के कारण विगत युद्ध और संघर्ष के काल में इसका विशेष सामरिक महत्त्व था । गोड़वाड़ क्षेत्र पर निगरानी रखने तथा मेवाड़ की ओर से किसी भी संभावित आक्रमण का मुकाबला करने के लिए मारवाड़ (जोधपुर) रियासत की सेना का एक सशक्त दल यहाँ तैनात रहता था।

सूकड़ी नदी के मुहाने पर बसा सोजत (शुधदंती) एक प्राचीन स्थान है जो लोक है में तांबावती (त्रंबावती) नगर के नाम से भी प्रसिद्ध था। मारवाड़ रा परगनां री विगत में इस आशय का उल्लेख मिलता है-

सासत्र नांव सुधदंती छे। आगे केहीक दिन त्रंबावती नगरी । त्रंबसेन राजा हुतौ तिण राजा री सोझत…. 

इतिहासकार डॉ० दशरथ शर्मा ने लिखा है कि सोजत से पुरातत्ववेत्ताओं को मानव सभ्यता के प्रारंभिक काल के अवशेष मिले हैं जिनमें आदिम मानव द्वारा प्रयोग किये जाने वाले ताम्र उपकरण व हथियार प्रमुख हैं। इससे इस स्थान की प्राचीनता का ज्ञापन होता है ।

सोजत का किला - मारवाड़ का सीमावर्ती दुर्ग
सोजत का किला – मारवाड़ का सीमावर्ती दुर्ग (सोजत का किला)

सोजत के प्रारंभिक इतिहास के बारे में क्रमबद्ध और प्रामाणिक जानकारी का अभाव है। ऐसा अनुमान है कि सोजत पर पहले परमारों का आधिपत्य था । यथा “उनमान कर जाणीजै छै आबू नै अजमेर बीच कीराडु लुईवा पूंगल सारी धरती पंवार हुता। ते जाणीजै छै सोझत ही पंवार हीज हुसी।

मारवाड़ राज्य के इतिहास में उल्लेख है कि तांबावती नगरी के नाम से प्रसिद्ध यह कस्बा उजड़ जाने पर हूल क्षत्रियों ने वि० संवत 1111 में पुन: सेजल माता के नाम पर इसे बसाया था। इससे इसका नाम सोजत पड़ा।

उपलब्ध साक्ष्यों के अनुसार सोजत पर विभिन्न कालों में पंवार, हूल, सोनगरा चौहान, सींधल, सोलंकी, मेवाड़ के सिसोदिया, राठौड़ तथा मुगल बादशाहों का अधिकार रहा। मुँहणोत नैणसी ने सोजत पर शासन करने वाले प्रमुख राजवंशों और शासकों का विस्तृत उल्लेख किया है ।

सोजत का किला - मारवाड़ का सीमावर्ती दुर्ग
सोजत का किला – मारवाड़ का सीमावर्ती दुर्ग (सोजत का किला)
सोजत का किला – मारवाड़ का सीमावर्ती दुर्ग

ज्ञात इतिहास के अनुसार हूल क्षत्रियों के बाद सोजत पर जालौर शाखा के सोनगरा चौहानों का आधिपत्य रहा तथा तत्पश्चात यह सींधलों के अधिकार में आ गया। मंडोर के शासक सव रणमल ने सींधलों को परास्त कर सोजत पर राठौड़ों का अधिकार स्थापित किया। राव रणमल की मृत्यु के पश्चात सोजत पर कुछ अरसे के लिए मेवाड़ के राणा कुम्भा का आधिपत्य हो गया किन्तु रणमल के यशस्वी पुत्र जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने वि०सं० 1512 में मेवाड़ से सोजत वापस ले लिया।

राव जोधा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र नीम्बा को सोजत में नियुक्त किया। संभवत: उसी ने नानी सीरड़ी नामक डूंगरी पर 1460ई० (वि०सं० 1517) में सोजत के वर्तमान दुर्ग का निर्माण करवाया। जोधपुर राज्य की ख्यात’ में राव मालदेव को सोजत के किले का निर्माता माना गया है।

जैसा सींधल से पशुधन के मामले में उत्पन्न विवाद के कारण हुए संघर्ष में उसे मारने के दौरान लगे घावों से नीम्बा की कंवरपदे ही मृत्यु हो गयी 13 तत्पश्चात राव गांगा जब जोधपुर की गद्दी पर बैठा तब जोधपुर के प्रमुख सामन्तों ने उसके भाई वीरमदेव को सोजत दिलाया ताकि उनमें पारस्परिक सद्भाव बना रहे। जोधपुर राज्य की ख्यात’ में इस आशय का एक दोहे का उल्लेख हुआ है-

इल वांटे अणभंग, बहसी घाती बंधवै ।
गढ़ जोधाणे गंग, वीरभदे सोजत बसे ।।

लेकिन रावगांगा ने वीरमदेव के प्रमुख सहयोगी मुँहता रायमल को मारकर सोजत पर अधिकार कर लिया। तदनन्तर जोधपुर के पराक्रमी शासक राव मालदेव ने सोजत के चारों ओर सुदृढ़ परकोटे का निर्माण करवाया तथा अन्य विविध उपायों द्वारा इसकी सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ किया ।

सोजत का किला - मारवाड़ का सीमावर्ती दुर्ग
सोजत का किला – मारवाड़ का सीमावर्ती दुर्ग

तत्पश्चात सोजत पर जोधपुर के स्वाभिमानी और स्वतन्त्रताप्रिय शासक राव चन्द्रसेन का अधिकार रहा। तदनन्तर बादशाह अकबर ने चन्द्रसेन से छीनकर राव मालदेव के पुत्र राम को सोजत इनायत किया। उसका बनवाया हुआ रामेलाव तालाब आज भी सोजत के किले के पर्वतांचल में विद्यमान है। इसके बाद सोजत मोटा राजा उदयसिंह को जागीर में मिला ।

वि०संवत 1664 में बादशाह जहाँगीर ने इसे राव करमसेन को इनायत किया तथा फिर अधिकांशत: सोजत पर राठौड़ों का ही अधिकार रहा। सोजत का किला एक लघुगिरि दुर्ग है जो सम्प्रति भग्न और खण्डित अवस्था में है। किले के प्रमुख भवनों में जनानी ड्योढ़ी, दरीखाना, तबेला, सूरजपोल तथा चांदपोल प्रवेश द्वारा इत्यादि उल्लेखनीय हैं। इसके भीतर अधिकांश भवन कालप्रवाह और मानवीय प्रकोप से धूल धूसरित हो गये हैं।

सोजत का किला - मारवाड़ का सीमावर्ती दुर्ग
सोजत का किला – मारवाड़ का सीमावर्ती दुर्ग

किले की सुदृढ़ बुजें तथा विशेषकर उसका सूरजपोल प्रवेशद्वार बहुत सुन्दर और आकर्षक लगता है । मारवाड़ रा परगनां री विगत में मुँहणोत नैणसी ने सोजत के किले का वृतान्त दिया है। यथा –

“छोटी सी भाषरी ऊपर छोटो सो कोट छै । मांहे सादा सा घर मुलगा हुता । घोड़ा 10 बांधै तिसड़ी पायगां री ठौड़ हुती । गढ़ री प्रोल 1 छै । इतरी तो नींबा जोधावत री कराई छै । तिण गढ़ हेठे परकोटो छै। सु तो तुरकां करायो छै । परकोटा री प्रोल ऊपर दीवांणषानों छै । हेठै कोठार छै। कोट मांहे बावड़ी छी सो बुरी पड़ी छै। “

अतीत में सोजत एक सुदृढ़ परकोटे के भीतर बसा हुआ था। शहरपनाह के सात प्रवेश द्वारों के नाम जोधपुरी दरवाजा, राज दरवाजा, जैतारण दरवाजा, नागौरी दरवाजा, चांवड पोल, राम पोल तथा जालौरी दरवाजा मिलते हैं। एक पुरानी ख्यात में सोजत के कोट, दरवाजों और कंगूरों की विगत दी गयी है –

44 बुरजा, 35 सफीलां, 2792 कांगरा नै 7 (सात) दरवाजा। 

जोधपुर के महाराजा विजयसिंह द्वारा सोजत के पुराने कोट की मरम्मत करवाने तथा एक अन्य पहाड़ी पर नयाकोट (नरसिंहगढ़) बनवाने का उल्लेख मिलता है । उनकी पासवान गुलाबराय ने एक नया शहर बसाने के इरादे से वहाँ एक परकोटा भी बनवाया था जिसके भग्नावशेष आज भी विद्यमान हैं।

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